By अनन्या मिश्रा | Apr 08, 2024
भारत को आजादी दिलाने के लिए कई वीरों ने अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया। आजादी पाने के लिए कई वर्षों कर लड़ाई लड़ी गई। बता दें कि साल 1857 में सबसे पहले अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंकी गई थी। देश के लिए अपने प्राणों की परवाह न करने वाले वीर सपूत में मंगल पांडेय का नाम भी शामिल है। आज ही के दिन यानी की 08 अप्रैल को मंगल पांडेय को फांसी की सजा दे दी गई थी। मंगल पांडेय ने साल 1857 में भारत के पहले स्वाधीनता संग्राम में अहम भूमिका निभाई थी। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर मंगल पांडेय के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में।
जन्म
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में 19 जुलाई 1827 को मंगल पांडेय का जन्म हुआ था। वह ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडेय था। वहीं महज 22 साल की उम्र में मंगल पांडेय का ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना चयन हो गया। इस दौरान वह बंगाल नेटिव इंफेंट्री की 34 बटालियन में शामिल हो गए थे। इस बटालियन में ब्राह्मणों की संख्या अधिक होने के कारण उनका भी इसमें चयन हो गया था।
प्रथम स्वाधीनता संग्राम में भूमिका
साल 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडेय ने अहम भूमिका निभाई दी। बता दें कि जिस बटालियन में मंगल पांडेय का चयन हुआ था। उन्होंने उसी बटालियन के खिलाफ बगावत कर दी थी। दरअसल, उन्होंने चर्बी वाले कारतूस को मुंह से खोलने से इंकार कर दिया था। जिसके कारण उनको गिरफ्तार कर लिया गया था। इसी बगावत ने मंगल पांडेय को मशहूर कर दिया था।
हांलाकि साल 1857 के विद्रोह की शुरूआत एक बंदूक की गोली के कारण हुआ था। लेकिन यह विद्रोह देश की आजादी तक जारी रहेगी। शायद इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। बता दें कि अंग्रेसी शासन ने अपनी बटालियन को एनफील्ड राइफल दी थी। इस राइफल का निशाना अचूक था। लेकिन इसमें गोली भरने की प्रक्रिया काफी पुरानी थी। इस बंदूक में गोली भरने के लिए कारतूस को दांतों से खोलना पड़ता था। जिसका मंगल पांडेय ने विरोध करना शुरूकर दिया। मंगल पांडेय के विरोध का कारण यह था कि ऐसी बात फैल चुकी थी कि इस कारतूस में सुअर व गाय के मांस का उपयोग किया जा रहा है।
मृत्यु
वहीं मंगल पांडेय का विद्रोह अंग्रेजी हुकूमत को पसंद नहीं आया, जिस कारण उनको गिरफ्तार कर लिया गया। वहीं अंग्रेजी हुकूमत ने तय तिथि से 10 दिन पहले 08 अप्रैल 1857 को मंगल पांडेय को फांसी की सजा दे दी। इस खबर के बाद मंगल पांडेय के साथियों ने 10 मई 1857 को मेरठ की छावनी में कोतवाल धन सिंह गुर्जर के नेतृत्व में बगावत कर दी।