सांस्कृतिक एवं आध्यत्मिक पर्व है मकर संक्रांति

By डॉ. प्रभात कुमार सिंघल | Jan 13, 2021

भारतीय संस्कृति में माघ माह की कृष्ण पंचमी को अर्वाचीन समय से मकर संक्रांति का पर्व न केवल भारत में वरन विदेशों में भी पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ विविध परम्पराओं के साथ मनाया जाता है।  पवित्र नदियों एवं जलाशयों में स्नान व पूजा कर दान करना सौभाग्य वृद्धि का प्रतीक माना जाता है। तिल, गुड़, इनसे बने पकवान, खिचड़ी, वस्त्रों का विशेष रूप से दान दिया जाता है। यह एक पौराणिक पर्व है जिस के बारे में अनेक कथाएं और परंपराएं प्रचलित हैं। इसी दिन मलमास भी समाप्त होने तथा शुभ माह प्रारंभ होने के कारण लोग दान-पुण्य से अच्छी शुरुआत करते हैं। इस दिन को सुख और समृद्धि का माना जाता है। सूर्य पूजा इस पर्व पर करने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है।


हमारे पर्वों में सूर्य-चंद्र की संक्रांतियों और कुम्भ का अधिक महत्व है। सूर्य संक्रांति में मकर सक्रांति का महत्व ही अधिक माना गया है। मकर संक्रांति में 'मकर' शब्द का अर्थ मकर राशि का प्रतीक है जबकि 'संक्रांति' का अर्थ संक्रमण अर्थात प्रवेश करना है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। एक राशि को छोड़कर दूसरे में प्रवेश करने की इस संक्रमण क्रिया को संक्रांति कहा जाता है। सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इस समय को 'मकर संक्रांति' कहा जाता है। हिन्दू महीने के अनुसार पौष शुक्ल पक्ष में मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है। इस दिन सूर्य उत्तरायण में आता है। सूर्य के आधार पर वर्ष के दो भाग हैं। एक उत्तरायन और दूसरा दक्षिणायन। इस दिन से सूर्य उत्तरायन हो जाता है। उत्तरायन अर्थात उस समय से धरती का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है, तो उत्तर ही से सूर्य निकलने लगता है। सूर्य 6 माह सूर्य उत्तरायन रहता है और 6 माह दक्षिणायन। अत: यह पर्व 'उत्तरायन' के नाम से भी जाना जाता है। मकर संक्रांति से लेकर कर्क संक्रांति के बीच के 6 मास के समयांतराल को उत्तरायन कहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायन का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायन के 6 मास के शुभ काल में जब सूर्यदेव उत्तरायन होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है, तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। यही कारण था कि भीष्म पितामह ने शरीर तब तक नहीं त्यागा था, जब तक कि सूर्य उत्तरायन नहीं हो गया।

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महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था इसलिए मकर संक्रांति पर गंगासागर में मेला लगता है।


इस दिन से वसंत ऋतु की भी शुरुआत होती है और यह पर्व संपूर्ण अखंड भारत में फसलों के आगमन की खुशी के रूप में मनाया जाता है। खरीफ की फसलें कट चुकी होती हैं और खेतों में रबी की फसलें लहलहा रही होती हैं। खेत में सरसों के फूल मनमोहक लगते हैं।


भारत वर्ष एवं विदेशों में मकर संक्रांति को विविध रूप में मनाये जाने की परंपराएं है। दक्षिण भारत में पोंगल के रूप में तथा उत्तर भारत में इसे लोहड़ी, खिचड़ी पर्व, पतंगोत्सव आदि कहा जाता है। मध्यभारत में इसे संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति को उत्तरायन, माघी, खिचड़ी आदि नाम से भी जाना जाता है।


हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व ही मनाया जाता है। इस दिन अँधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है। इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियाँ आपस में बाँटकर खुशियाँ मनाते हैं। बेटियाँ घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी माँगती हैं। नई बहू और नवजात बच्चे (बेटे) के लिये लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। इसके साथ पारम्परिक मक्के की रोटी और सरसों के साग का आनन्द भी उठाया जाता है


उत्तर प्रदेश में यह दान का पर्व है। इलाहाबाद में पवित्र नदियों के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है। 14 जनवरी से ही इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है। माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है। समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है। बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी नाम से जाना जाता है। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है।


महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएँ अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नामक हलवे के बाँटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं -"तिळ गूळ घ्या आणि गोड़ गोड़ बोला" अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो। इस दिन महिलाएँ आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बाँटती हैं।

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बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। गंगासागर पर मकर संक्रांति के दिन लाखों हिंदू तीर्थयात्री सहित विदेशों से भी विदेशी यहां पर डुबकी लगाने के लिए इकट्ठा होते हैं और कपिल मुनि मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं। पुराणों में गंगा सागर की उत्‍पत्ति के बारे में बताया जाता है कि कपिल मुनि के श्राप के कारण ही राजा सगर के 60 हजार पुत्रों की इसी स्थान पर तत्काल मृत्यु हो गई थी। उनके मोक्ष के लिए राजा सगर के वंश के राजा भगीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाए और गंगा यहीं सागर से मिली थीं। मान्यता है कि, गंगासागर की पवित्र तीर्थयात्रा सैकड़ों तीर्थ यात्राओं के समान है। शायद इसलिए ही कहा जाता है कि “हर तीर्थ बार–बार, गंगासागर एक बार।”


राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएँ किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं। इस प्रकार मकर संक्रान्ति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है। मकर संक्रांति पर पर्यटन विभाग द्वारा जयपुर में आयोजित पतंग फेस्टिवल राजस्थान का एक अद्वितीय उत्सव है, जिसमें राज्यभर में आसमान में रंग-बिरंगी पतंगे छाई रहती हैं। लोग विभिन्न आकारों व आकृतियों की पतंगें उड़ाने का लुत्फ उठाते हैं। शाम को यह फेस्टिवल अपने चरम पर होता है, जब आसमान में लाइट युक्त पतंगे उड़ाने के साथ-साथ आतिशबाजी भी की जाती हैं लगता है जैसे सैकड़ो जुगनू चमक रहे हैं। संपूर्ण राज्य में मनाया जाने वाले इस त्यौहार की गतिविधियां जयपुर में सर्वाधिक होती हैं। तमिलनाडु में पोंगल, गुजरात एवं उत्तराखंड में उत्तरायण, पंजाब, हिमाचल और हरियाणा में माघी, असम में भोगली बिहू, कश्मीर घाटी में शिशुर सेंकरान्त, पश्चिमी बंगाल में पौष संक्रांति एवं कर्नाटक में मकर संक्रमण के नाम से मनाया जाता है। भारत के बाहर बांग्ला देश, नेपाल, थाईलैंड, लाओस, म्यामार, कम्बोडिया एवं श्रीलंका में भी मकर संक्रांति का पर्व विविध परम्पराओं के साथ मनाया जाता है।


- डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

लेखक एवं पत्रकार 

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