पाकिस्तान के लिए खौफ थे मेजर विवेक गुप्ता, कारगिल युद्ध के दौरान तोलोलिंग पर लहराया था तिरंगा

By अंकित सिंह | Jul 24, 2021

26 जुलाई को कारगिल की जंग के 22 साल पूरे हो रहे हैं। मई 1999 की गर्मियों में कारगिल सेक्टर जो कुछ देखा गया उसके बाद से 60 दिनों तक भारत और पाकिस्तान की सेना आमने-सामने रही। कारगिल का वह हिस्सा अब लद्दाख में है। पहले जम्मू कश्मीर में आता था। भारत ने यह जंग अपने जांबाज सुर वीरों की वजह से जीता। भारत ने यह जंग ना सिर्फ जीती थी बल्कि उसने पाकिस्तान को धूल चटाई। लेकिन यह बात भी सच है कि भारत को अपने कई रणबांकुरों की जान गंवानी पड़ी। इन्हीं रणबांकुरे में से एक थे मेजर विवेक गुप्ता जिन्होंने तोलोलिंग पर फिर से कब्जा करने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी।

 

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सामरिक लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण माना जाने वाला तोलोलिंग की चोटी पर पाकिस्तान ने कब्जा जमा लिया था। उस वक्त भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही थी कि वहां से दुश्मनों को कैसे भगाया जाए। यह काम आसान नहीं था क्योंकि ऊपर से दुश्मन देश लगातार गोलियां बरसा रहा था जबकि भारतीय जवानों को दुर्गम रास्तों को होते हुए चढ़ाई करने में काफी मशक्कत करना पड़ रहा था। हालांकि भारतीय जवानों का एकमात्र लक्ष्य तोलोलिंग की चोटी पर अपना कब्जा जमाना था। तोलोलिंग पर नियंत्रण करने के लिए कमान अधिकारी ने दो राजपूताना राष्ट्रीय राइफल्स के मेजर विवेक गुप्ता को सौंपी। पहाड़ियों से दुश्मनों को भगाकर वहां पहुंचने का निर्देश दिया लेकिन इस पर अमल करना इतना आसान नहीं था।

 

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विवेक गुप्ता ने अपनी सूझबूझ और साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तानी घुसपैठियों के खिलाफ चढ़ाई शुरू कर दी। 12 जून की रात को उनके नेतृत्व में तोलोलिंग की चोटी पर नियंत्रण करने गई टीम रवाना हुई थी। दुश्मनों का सामना करते हुए मेजर विवेक गुप्ता ने अपने अदम्य वीरता और साहस का परिचय दिया। दुश्मनों के अधिक ऊंचाई पर होने की वजह से विवेक गुप्ता को 2 गोलियां लगी लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। तीन दुश्मनों को ढेर किया और बंकर पर अपना कब्जा जमा लिया। वहां शान से भारतीय तिरंगा भी लहराया। अंतिम सांस तक में विवेक गुप्ता दुश्मनों से लड़ते रहे और गंभीर घायल होने के बावजूद भी दुश्मनों से लोहा लेते रहे। देश की रक्षा के खातिर 13 जून को शहीद हो गए। उनके इस कार्य के लिए भारत सरकार ने मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया। मेजर गुप्ता देहरादून के रहने वाले थे।


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