दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल

By सुरेश हिंदुस्थानी | Oct 01, 2021

भारत के बारे हमारे देश के महापुरुषों की स्पष्ट कल्पना थी। भारत की जड़ों से बहुत गहरे तक जुड़े हुए थे। आज भारत का जो स्वरूप हमारी आंखों के सामने है, वह भारत के महापुरूषों की मान्यताओं के अनरूप नहीं कहा जा सकता। आज जो बुराई दिखाई देती है, वह अंग्रेजी मानसिकता को अपनाने वाले कुछ लोगों की देन है। ऐसे में सवाल यह भी आता है कि इन लोगों को भारतीय जीवन मूल्यों के बारे में या तो पता नहीं था या फिर जानते हुए भी उसे पुनर्स्थापित नहीं करना चाहते थे।

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भारत को स्वतंत्रता मिलने के पश्चात इस बात पर गहन चिंतन किया गया कि अब कैसा भारत बनाना चाहिए। महात्मा गांधी की इस बारे में स्पष्ट कल्पना थी। वे कहते थे कि मैं एक ऐसे भारत का निर्माण करना चाहता हूँ जिसमें शराब जैसी बुराई का नामोनिशान न हो, जहां समाज में भेदभाव न हो, गौहत्या पाप हो और रामराज्य स्थापित हो। गांधी जी की दृष्टि में भविष्य के भारत की बुनियाद में पुरातन और सांस्कृतिक मानबिन्दुओं का समावेश था। वे जानते थे कि इसके बिना भारत नहीं, क्योंकि भारत का आधार ही राम है।


भारत महात्मा गांधी के इन विचारों को हमारे राजनीतिक दल आत्मसात करने में संकोच कर रहे हैं। कहीं न कहीं इन बातों को एक सांप्रदायिक बताने का खेल भी चल रहा है, लेकिन ऐसा करने में वे भूल जाते हैं कि भारत में रामराज्य की संकल्पना स्वतंत्रता मिलने के बाद की नहीं है और न ही यह केवल महात्मा गांधी का ही विचार है, बल्कि महात्मा गांधी ने उसी बात को आगे बढ़ाने का प्रयास किया, जो भारत में सनातन काल से चल रहा है। भारत के मनीषियों ने जो सांस्कृतिक मूल्य स्थापित किए थे, गांधी जी ने उनका हृदय से अनुगमन किया और आत्मसात किया। इसीलिए वे भारत में इसके स्थापन का प्रयास करते दिखाई दिए।


महात्मा गांधी ने अप्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजों की उस नीति का भी विरोध किया, जो समाज में विभाजन की रेखा खींचती थी। इसलिए वे समाज में भाईचारे के भाव का विस्तार चाहते थे। महात्मा गांधी जैसा चाहते थे, उन्हें वैसा दृश्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में दिखाई दिया। इसलिए वे अपने जीवन के अंतिम दिनों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नजदीक आते जा रहे थे। उन्होंने संघ के वर्धा शिविर में भाग लिया। वहां उन्होंने भेदभाव रहित समाज का दर्शन किया, जो उस समय उनकी कल्पना में अपेक्षित था। गांधी जी जानते थे कि सामाजिक एकता इस देश के लिए कितनी आवश्यक है। वर्तमान में समाज की फूट के चलते अनेक विसंगतियों का जन्म हो रहा है। व्यभिचार बढ़ रहे हैं। जो गांधी जी के विचार के प्रतिकूल है।


गांधी जी भगवान राम को सभी धर्म और संप्रदाय से ऊपर मानते थे। आज भगवान राम को जिस प्रकार से केवल हिन्दू समाज से जोड़कर देखा जाता है, वह दृष्टि महात्मा गांधी की नहीं थी। श्रीराम जी का जीवन एक ऐसा आदर्श है जो सबके लिए उत्थानकारी है। गांधी जी ने राम को भारतीय दृष्टि से देखा। आज के समाज से भी यही अपेक्षा की जाती है कि वह राम जी को संकुचित दायरे से न देखकर भारतीयता की दृष्टि से देखें। ऐसा करेंगे तो उन्हें राम अपने दिखाई देंगे, भारत के दिखाई देंगे।

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महात्मा गांधी का पूरा चिंतन भारत के विकास पर भी केंद्रित रहा। उन्होंने देश में स्वदेशी भावना को जगाने के लिए स्वयं के जीवन से कई उदाहरण दिए। आज बाजार में जिस प्रकार से विदेशी वस्तुओं का आक्रमण हुआ है, उसके कारण हमारे देश का पैसा विदेशी संस्थाओं को आर्थिक रूप से मजबूत कर रहा है। अपने देश का पैसा अपने देश में ही रहे, इसलिए गांधी जी ने स्वदेशी का विचार अपने जीवन में अपनाया और समाज को प्रेरित किया। आज इस भाव को इसलिए भी अपनाने की आवश्यकता है, क्योंकि आज भारत को आत्मनिर्भर बनाने की आवश्यकता है, जो केवल स्वदेशी विचार से ही संभव है। इतना ही नहीं गांधी जी भारत में लघु एवं कुटीर उद्योगों की स्थापना को भी देश के विकास का मजबूत आधार मानते थे। हालांकि अब भारत का समाज स्वदेशी की ओर जाग्रत भाव के साथ अग्रसर हुआ है। महात्मा गांधी गौहत्या पर पूरी तरह से प्रतिबंध चाहते थे। हम जानते हैं गौ हमारे देश का अर्थशास्त्र है। गाय देश की आर्थिक उन्नति से जुड़ी है। देश में जब गौ आधारित खेती होती थी, तब देश धन धान्य से संपन्न था। धरती के सोना उगलने का समय भी यही था। वास्तव में गांधी जी का चिंतन अद्भुत था। उनका हर शब्द भारत की आत्मा ही था। हमें भारत की आत्मा को बचाना है तो गांधी जी विचारों को आत्मसात करना होगा। इसी से भारत की समृद्धि का मार्ग निर्मित होगा और हम आत्मनिर्भर भारत की दिशा में मजबूती के साथ आगे बढ़ेंगे।


- सुरेश हिंदुस्थानी

वरिष्ठ पत्रकार

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