By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jul 29, 2022
नयी दिल्ली| केंद्र सरकार ने बृहस्पतिवार को बताया कि छह राज्यों द्वारा सहमति ना दिए जाने के कारण केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की जांच की मांग करने वाले 221 अनुरोध लंबित हैं, जिनमें सर्वाधिक 168 अनुरोध महाराष्ट्र से हैं और इनमें सन्निहित राशि 29,000 करोड़ रुपये हैं। राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मत्रालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने दी।
उन्होंने कहा कि सीबीआई जांच की मांग करने वाले कुल अनुरोधों में 30, 912,.28 करोड़ रुपये के मामले हैं।
इनमें 27 अनुरोध पश्चिम बंगाल से हैं जिनमें 1,193.80 करोड़ रुपये के मामले हैं, नौ अनुरोध पंजाब से हैं और इनमें 255.32 करोड़ रुपये के मामले हैं। उन्होंने बताया कि इसी प्रकार सात अनुरोध छत्तीसगढ़ से हैं, जिनमें 80.35 करोड़ रुपये और चार राजस्थान से हैं, जिनमें 12.06 करोड़ रुपये की राशि सन्निहित हैं।
सिंह ने बताया कि 30 जून 2022 की स्थिति के अनुसार सबसे अधिक 168 अनुरोध महाराष्ट्र से हैं, जिनमें 29,040.18 करोड़ रुपये की राशि शामिल है।
महाराष्ट्र के लंबित मामलों का ब्योरा देते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि 91 अनुरोध छह महीने से कम की अवधि से, 38 अनुरोध छह महीना और एक साल के बीच की अवधि से और 39 अनुरोध एक साल से अधिक समय से लंबित हैं।
उन्होंने बताया कि 30 जून, 2022 की स्थिति के अनुसार केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पास भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 17 (क) के तहत कुल 101 अनुरोध लंबित हैं, जिनमें 235 लोक सेवक संलिप्त हैं।
एक अन्य सवाल के जवाब में सिंह ने बताया कि सीबीआई की जांच करने की शक्तियां दिल्ली पुलिस विशेष स्थापन अधिनियम (डीएसपीई), 1946 से निर्गत होती हैं और इस अधिनियम की धारा दो केवल संघ राज्य क्षेत्रों में ही जबकि अधिनियम की धारा तीन के तहत अधिसूचित अपराधों की जांच का क्षेत्राधिकार डीएसपीई में निहित करती है।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा अधिनियम की धारा 5(1) के अधीन डीएसपीई का क्षेत्राधिकार रेलवे क्षेत्रों और राज्यों सहित अन्य क्षेत्रों तक विस्तारित किया जा सकता है, बशर्ते की अधिनियम की धारा 6 के तहत राज्य सरकार सहमति प्रदान करें।
सिंह ने कहा कि डीएसपीई की धारा 6 के अनुसार केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को संबंधित राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में जांच करने के लिए उनकी सहमति प्रदान करना आवश्यक है।
अधिनियम की धारा 6 के प्रावधानों की शर्तों के तहत कुछ राज्य सरकारों ने सीबीआई को विनिर्दिष्ट श्रेणियों के व्यक्तियों के विरुद्ध विनिर्दिष्ट प्रकार के अपराधों की जांच के लिए सामान्य सहमति प्रदान कर दी है ताकि सीबीआई मामलों को दर्ज कर उनकी जांच कर सके।
उन्होंने बताया कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों द्वारा भी जांच के लिए मामले सीबीआई को सौंपे जाते हैं और ऐसे मामलों में अधिनियम की धारा 5 अथवा धारा 6 के अधीन सहमति संबंधी किसी अधिसूचना की आवश्यकता नहीं होती है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सीबीआई के पास गंभीर प्रकृति के अपराधों अथवा राष्ट्र विरोधी गतिविधियों से संबंधित मामलों सहित मामलों की जांच करने की क्षमता, योग्यता एवं समय-समय पर जारी दिशानिर्देशों के माध्यम से निर्धारित किया गया एक मजबूत कार्य तंत्र है।
उन्होंने कहा कि उन राज्यों में जहां सामान्य सहमति प्रदान नहीं की गई है अथवा जहां सामान्य सहमति उस विशिष्ट मामले में लागू नहीं होती है, वहां अधिनियम की धारा 6 के तहत राज्य सरकार की विशिष्ट सहमति की आवश्यकता होती है।
उन्होंने कहा कि केवल राज्य सरकार की सहमति प्राप्त होने के पश्चात ही डीएसपीई अधिनियम की धारा 5 के प्रावधानों के तहत सीबीआई के क्षेत्राधिकार के विस्तार पर विचार किया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि मिजोरम, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र, केरल, झारखंड, पंजाब और मेघालय ने मामलों की जांच करने के लिए सीबीआई से सामान्य सहमति वापस ले ली है।