महाराष्ट्र सरकार पर मंडरा रहे संकट के बादल, क्या अपने विधायकों को संभाल पाएंगे एकनाथ शिंदे ?

By अनुराग गुप्ता | Sep 03, 2022

मुंबई। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकर के नेतृत्व वाली सरकार का तख्तापलट कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने एकनाथ शिंदे की अगुआई में नई सरकार का गठन किया। इस नई सरकार को अभी तीन महीने भी नहीं हुए हैं कि एकनाथ शिंदे सरकार मुश्किलों में घिर गई है। कहा जा रहा है कि शिंदे खेमे के कुछ विधायक पाला बदल सकते हैं। आपको बता दें कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के कुछ विधायकों ने बागी तेवर दिखाते हुए उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी सरकार को गिराया था और अब उन्हीं में से कुछ विधायक एकनाथ शिंदे से नाराज बताए जा रहे हैं।

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9 विधायकों ने ली थी शपथ

हाल ही में मंत्रिमंडल विस्तार के दौरान एकनाथ शिंदे खेमे के 9 विधायकों ने मंत्रिपद कि शपथ ली थी। ऐसे में एकनाथ शिंदे खेमे के 31 अन्य विधायक भी मंत्री बनने की लालसा में बैठे हुए हैं। इसी वजह से पार्टी दूसरी बार मंत्रिमंडल विस्तार नहीं कर पा रही है क्योंकि सभी विधायकों को मंत्री बनाना मुमकिन नहीं है। ऐसे में कई एकनाथ शिंदे खेमे को अलविदा कहते हुए वापस से मातोश्री के प्रति अपना समर्थन जता सकते हैं।

मुश्किल में एकनाथ शिंदे

आपको बता दें कि असली शिवसेना बनाम नकली शिवसेना की लड़ाई भी अभी चल रही है। मामला सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग में लंबित है। ऐसे में अगर एकनाथ शिंदे खेमे से कुछ विधायक छिटक गए तो दलबदल कानून का खतरा पैदा हो सकता है। दरअसल, शिवसेना के कुल 54 विधायक हैं और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में करीब 40 विधायकों ने तत्कालीन सरकार को आंख दिखाते हुए पाला बदल लिया था। ऐसे में अगर 3-4 विधायक एकनाथ शिंदे का साथ छोड़ते हैं तो दलबदल कानून का खतरा हो जाएगा। इस वजह से मामला सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग से हल होने तक एकनाथ शिंदे को विधायकों को अपने पाले में जमाए रखना होगा।

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राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज हो गई है कि एकनाथ शिंदे खेमे के कई विधायक वापस से मातोश्री लौट सकते हैं और अगर ऐसा हुआ तो एकनाथ शिंदे की मुश्किलें बढ़ना स्वभाविक है। चर्चा इस बात की भी है कि विधायकों की नाराजगी को देखते हुए ही दूसरा मंत्रिमंडल विस्तार नहीं हो पा रहा है क्योंकि एकनाथ शिंदे यह जानते हैं कि सभी को मंत्री नहीं बनाया जा सकता है। दूसरी तरफ एकनाथ शिंदे का सहयोग कर रही भाजपा को भी मंत्रिमंडल विस्तार से काफी उम्मीदें हैं। भाजपा के कई विधायकों को उम्मीद है उन्हें मंत्रिपद मिल सकता है इसके अलावा छोटी सहयोगी पार्टियां भी मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी चाहती हैं।

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