By अनन्या मिश्रा | Mar 27, 2023
भारतीय लेखिका, कार्यकर्ता और हिन्दी साहित्य की प्रमुख कवयित्री महादेवी वर्मा को कविताएं लिखने का बहुत शौक था। वह बचपन से ही कविताएं सुनना पसंद करती थीं। यह बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि की थीं और मां सरस्वती की कृपा इन पर हमेशा रही। आज के दिन यानि की 26 मार्च को महादेवी वर्मा का उत्तर प्रदेश के फ़र्रुख़ाबाद में हुआ था। कई पीढ़ियों के बाद बेटी का जन्म होने पर उनके पिता की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा था। उनके दादा ने उनका नाम महादेवी रखा था। आइए उनके जन्मदिन के मौके पर जानते हैं महादेवी वर्मा के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें...
जन्म और शिक्षा
उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में 26 मार्च 1907 में महादेवी वर्मा का जन्म हुआ था। महादेवी के पिता का नाम गोविन्द सहाय वर्मा था। वह इन्दौर के एक कॉलेज में अध्यापक थे। महादेवी वर्मा की माता हेमरानी धर्मपरायण महिला थीं। महादेवी की शुरूआती शिक्षा इन्दौर में ही पूरी हुई थी। इसके बाद उन्होंने प्रयागराज विश्वविद्यालय से बीए और एमए की परीक्षा पास की थी।
विवाह
महज 9 साल की उम्र में महादेवी वर्मा का स्वरूप नारायण वर्मा के साथ विवाह हो गया था। लेकिन उनका शादीशुदा जीवन कभी खुशहाल नहीं रहा। उनके ससुर महिलाओं की शिक्षा के खिलाफ थे। विवाह होने के बाद महादेवी की पढ़ाई छूट गई थी। हालांकि महादेवी की मां धर्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। इस कारण उन्हें घर में रामायण-महाभारत कथाएं सुनने का पर्याप्त अवसर मिला। जिसके कारण बचपन से ही महादेवी वर्मा के मन में साहित्य के प्रति आकर्षण पैदा हो गया और वह बचपन से ही काव्य की रचना करने लगी थीं।
महादेवी को पढ़ाई का काफी शौक था। वह प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्य नियुक्त हुईं और लंबे समय तक इस पद पर कार्यरत रहीं। इसके बाद वह कुछ सालों तक यूपी विधानसभा की मनोनीत सदस्य भी रह चुकी हैं। महादेवी वर्मा की की साहित्यिक रचनाओं से प्रभावित होकर भारत सरकार ने साल 1956 में उन्हें पद्म भूषण अलंकार से सम्मानित किया। उन्हें साल 1982 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
रचनाएं
महादेवी वर्मा को आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है। वह न सिर्फ एक प्रसिद्ध कवियत्री थीं बल्कि वह समाज सुधारक भी थी। महिलाओं को उनका अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए थे। महादेवी वर्मा ने 'नीहार', 'रश्मी', 'नीरजा', 'यामा', 'सान्ध्य गीत', 'दीपशिखा' आदि काव्य रचनाएं की हैं। उन्हें यामा और दीपशिखा के लिए पुरुस्कार भी मिले थे। इसके अलावा महादेवी वर्मा ने गद्य की भी रचनाएं की हैं। जिनमें 'अतीत के चलचित्र', 'शृंखला की कड़ियाँ', 'स्मृति की रेखाएं' आदि प्रमुख हैं।
निधन
जीवन के अन्तिम समय तक महादेवी वर्मा ने एक संन्यासी की तरह जीवन बिताते हुए इलाहाबाद में 11 सितम्बर 1987 को अंतिम सांस ली।