साक्षात्कारः अर्जुन ने कहा- महाभारत के दोबारा प्रसारण ने रिश्तों की तहजीब को सिखाया

By डॉ. रमेश ठाकुर | Aug 17, 2020

बीते लम्हों का दीदार चाहे जैसे भी हो, चित्रों से हो, किताबों से हो, या फिर टेलीविजन के पर्दे के जरिए, बड़ा आनंदित करता है, मन प्रफुल्लित हो जाता है। आज से तीन-चार दशक पहले जब जमाना ठहरा हुआ था, तब लोगों ने हजारों वर्षों की घटना को महाभारत के रूप में टीवी पर देखा। उस समय टीवी के पर्दे रंगीन नहीं, बल्कि ब्लैक एंड-व्हाइट ही थे। महाभारत का वही पुराना चित्रण लॉकडाउन-कोराना संकट में भी दिखाया गया। देखकर ऐसा लगा कि मानो जैसे बीता युग फिर से लौट आया हो। महाभारत में अर्जुन का किरदार निभाने वाले फिरोज खान उर्फ कुंती पुत्र भी उन दिनों को याद करके भावुक हो जाते हैं। अर्जुन के चरित्र को पर्दे पर अमर कर देने वाले फिरोज खान से डॉ. रमेश ठाकुर की बातचीत।

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प्रश्न- अर्जुन का किरदार आपको कैसे मिला, जबकि ये महाभारत का सबसे प्रमुख रोल था?


उत्तर- चोपड़ा साहब की एक ही डिमांड थी, अर्जुन के रोल में अर्जुन जैसा ही फेस चाहिए। आप ताज्जुब करेंगे इसके लिए उन्होंने कई हजार कलाकारों को रिजेक्ट किया। खुदा की ऐसी कृपा हुई जब मेरा ऑडिशन हुआ, उन्हें तुरंत मेरा चेहरा भा गया। उससे पहले तक मैंने कई हिंदी फिल्में की थीं, इसलिए चेहरा जाना पहचाना-सा हो गया था। चोपड़ा साहब चाहते थे, अर्जुन का चेहरा थोड़ा शर्मीला हो, शांत हो, देखने में आर्कषण से भरपूर हो। अल्ला का रहम हुआ, उनकी खोज मेरे चेहरे पर आकर थम गई। इस तरह से मेरा अर्जुन के रोल के लिए सेलेक्शन हुआ।


प्रश्न- कोरोना संकट में महाभारत का फिर से प्रसारण, निश्चित रूप से हमें अपनी संस्कृति से रूबरू कराने जैसा है?


उत्तर- इसमें कोई दो राय नहीं कि मौजूदा पीढ़ी निश्चित तौर पर हमारी असल संस्कृति भूलती जा रही है। अपने से बड़ों और गुरुओं का आदर मान-सम्मान आज की पीढ़ी नहीं करती। महाभारत ने रिश्तों की अहमियत को बताया। संस्कार और संस्कृति की रक्षा कैसे की जाती है उसे बताया और समझाया। महाभारत की चर्चा युगों-युगों तक होती रहेगी। जब भी सांझी संस्कृति और विरासत की बातें होंगी, महाभारत का जिक्र किया जाएगा। महाभारत की जब शूटिंग होती थी, तब अभिनय करने वाले कलाकार खुद भावुक हो जाया करते थे। मैं स्वयं को किस्मत वाला समझता हूं जो इस कार्यक्रम का हिस्सा बना। 


प्रश्न-महाभारत के दोबारा प्रसारण से क्या लोगों ने कुछ सीखा-समझा?


उत्तर- मेरे लिहाज से सीखना चाहिए। कुछ सीखा भी होगा। हिंदुस्तान का शायद ही कोई ऐसा घर बचा हो, जहां महाभारत को नहीं देखा गया। लोगों ने अपने बच्चों को दिखाया और बीती संस्कृति का बोध कराया। हम कलाकारों को भी फायदा हुआ। महाभारत में काम करने वाले उन तमाम कलाकारों को जितनी पहचान उस वक्त नहीं मिली, उससे कहीं ज्यादा अब जाकर मिली। महाभारत में एक बात सिखाई गई थी कि रिश्तों की कदर किस तरह करनी चाहिए। बेशक, एक ही परिवार के बीच महाभारत हुई हो, लेकिन अदब, आदर, प्यार-दुलार की अलग परिभाषा को रेखांकित किया गया। पर दुख इस बात का है कि आज इन सभी के मायने बदल गए हैं।

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प्रश्न- महाभारत की शूटिंग के वक्त का माहौल बताएं कैसा होता था?


उत्तर- फिल्मों और धार्मिक कार्यक्रमों की शूटिंग का वातावरण भिन्न होता है। महाभारत के करीब सौ से डेढ़ सौ एपिसोड हम लोगों ने किए। प्रत्येक एपिसोड में हम सभी कलाकारों ने जानें झोंकी। जब शूटिंग स्टेज पर होते थे, तो हमें खुद को ऐसा बनाना होता था, ताकि हममें लोगों को भगवान दिखाई पड़ें। हर एक सीन में डूब जाया करते थे। एक-एक दृश्य को बड़ी बारीकियों से सजाते थे। महाभारत की शूटिंग लगभग सालों तक चली। घर-परिवार सब छूट गए थे। रहने को टाट-तंबू ही हम कलाकारों का घर बन गए थे। चोपड़ा साहब काम के साथ कभी समझौता नहीं करते थे। उन्हें काम में शत-प्रतिशत प्यूरिटी चाहिए होती थी। कड़क मिज़ाज के थे, इसलिए सभी उनसे डरते भी थे।  


प्रश्न- ब्लैक एंड-व्हाइट के बाद जब टीवी का पर्दा रंगीन हुआ। उसके बाद कई धार्मिक प्रोग्राम बने। पर, दर्शकों ने महाभारत की तरह पसंद नहीं किया?


उत्तर- देखिए, सच कहूं तो अब न पहले जैसे निर्देशक रहे और न ही कलाकार। नए जितने भी कार्यक्रम बनें उनमें इतिहास और शास्त्रों को बदला गया। जबकि, रामायण और महाभारत दो ऐसे अमर धार्मिक कार्यक्रम बने जो पूर्णता शास्त्र खंडों पर आधारित रहे। आजकल हो क्या रहा है, जो नए किस्म के कार्यक्रम बनते हैं उनमें निर्देशक नया करने के चक्कर में बहुत-सी बातें भूल जाते हैं। बीआर चोपड़ा द्वारा निर्मित महाभारत एक अध्याय है और हम कलाकारों के लिए एक तप-तपस्या जैसा। वैसी महाभारत बननी अब शायद संभव नहीं? 


प्रश्न- आपका सिनेमाई कॅरियर तो ठीक-ठाक ही रहा?


उत्तर- महाभारत के बनने से पहले और बाद में नियमित फिल्में कर रहा हूं। अभी तक तकरीबन ढाई सौ के आसपास हिंदी फिल्में की हैं। कई महत्वपूर्ण भूमिकाएँ कीं, जिसमें अलग-अलग तरह के रोल निभाने का मुझे मौका मिला। लेकिन इन सबके इतर मुझे अर्जुन नाम ने जो पहचान दी, वह किसी और में नहीं मिली? अर्जुन के रोल को मैं आज भी मिस करता हूं। इसके लिए मैं हमेशा चोपड़ा जी का ऋणी रहूंगा।


प्रश्न- अब कैसे व्यतीत हो रहा है आपका जीवन?


उत्तर- सच कहूं, तो उस दौर के कलाकारों की हालात आज भुखमरी जैसी है। केंद्र सरकार नए-नए फरमान थोप रही है। 65 वर्ष के ऊपर के कलाकार कलाकारी नहीं कर सकते हैं जैसे बेहूदा नियम-कानून लागू करने की बात हो रही है। कलाकारों को न पेंशन दी जाती और ना अन्य कोई सुविधाएं। बीते पांच महीनों से हम सभी कलाकार घरों में कैद हैं। कैसे गुजारा हो रहा है ये सिर्फ हम ही जानते हैं।


-जैसा डॉ. रमेश ठाकुर से कहा।

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