By आरएन तिवारी | Jan 14, 2025
आजकल न केवल देश मे बल्कि विदेशों में भी महा कुम्भ की चर्चा सबकी जुबान पर है। उत्तर प्रदेश की संगम नगरी प्रयागराज में महाकुंभ मेले की तैयारियां पूरी हो चुकी है। महाकुंभ मेला दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेलों में से एक है। हमारे हिंदू धर्म में इसको अत्यंत पवित्रतम और उच्चतम धार्मिक समागम माना जाता है क्योंकि यह प्रयागराज में गंगा यमुना और सरस्वती के पवित्र संगम पर आयोजित किया जाता है। धार्मिक शास्त्रों में प्रयागराज को तीर्थराज यानी की तीर्थ स्थलों का राजा कहा गया है। माना जाता है कि ब्रह्म देव ने सबसे पहला यज्ञ प्रयागराज में ही किया था। वहीं यह भी कहा जाता है कि कुंभ मेले में स्नान करने से व्यक्ति की आत्मा शुद्ध हो जाती है और उन्हें जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है। संभावना है कि इस महाकुंभ में देश-दुनिया से करोड़ों लोग शामिल होने के लिए प्रयागराज पहुंचेंगे। महाकुंभ मेले के दौरान प्रयागराज में संगम तट पर नहाने का अपना एक अलग ही महत्व है। प्रयागराज के संगम तट पर स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं।
आइए, जानते हैं कि आखिर इस कुम्भ महोत्सव को इतना दिव्य, भव्य और उच्चकोटि का स्थान क्यों प्राप्त है, तो बता दें कि इसका संबंध समुद्र मंथन से जुड़ा है। जब देवताओं औऱ असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन से अमृत निकाला था तब अमृत को लेकर देवताओं और असुरों में युद्ध छिड़ गया था। छिना झपटी के दौरान अमृत कलश से कुछ बूंदे धरती के चार स्थानों पर हरिद्वार, उज्जैन, प्रयागराज और नासिक में गिरी थीं। अमृत के स्पर्श से ये चारो स्थान अमृत तुल्य हो गए थे। अमृत कुछ और नहीं बल्कि भगवान का ही स्वरूप है। समुद्र मंथन के अवसर पर भगवान के पाँच अवतार परिलक्षित होते हैं।
पहला अमृत के रूप में भगवान का प्राकट्य, दूसरा मंदारचल भी भगवान का ही स्वरूप, तीसरा मंदारचल को धारण करने के लिए भगवान का कच्छप अवतार, चौथा अमृतकुम्भ लेकर धन्वन्तरी के रूप में प्राकट्य और पांचवा अमृत बांटने के लिए मोहिनी रूप धारण करना। जिस अमृतकुंभ को प्राप्त करने के लिए भगवान को पाँच-पाँच अवतार लेने पड़े, वह कुम्भ कितना दिव्य भव्य और पवित्र हो सकता है? यह सोच-समझ कर ही प्राचीन काल में हमारे ऋषि-महर्षियों ने इस महाकुंभ की गौरवशाली परंपरा शुरू की होगी। विशेष तिथि, मुहूर्त और ग्रह नक्षत्र में किए गए स्नान ध्यान और जप तप निश्चित ही मानव जाति को अमरत्व प्रदान करते हैं। हमारे मन में यह भी सवाल उठता है कि हर बारह साल के बाद कुंभ मेले का आयोजन क्यों होता है। हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि देवताओं और असुरों के बीच अमृत कलश को लेकर बारह दिनों तक युद्ध चला था। देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह साल के बराबर माने जाते हैं। इसीलिए हर बारह साल पर महाकुंभ का आयोजन किया जाता है।
आइए देखते हैं स्नान की खास तिथियाँ
13 जनवरी 2025- पौष पूर्णिमा
14 जनवरी 2025- मकर संक्रांति
29 जनवरी 2025- मौनी अमावस्या
3 फरवरी 2025- वसंत पंचमी
4 फरवरी 2025- अचला सप्तमी
12 फरवरी 2025- माघी पूर्णिमा
26 फरवरी 2025- महाशिवरात्रि (आखिरी स्नान)
- आरएन तिवारी