By अनन्या मिश्रा | Mar 10, 2023
माधव राव सिंधिया भारतीय राजनीति के करिश्माई नेताओं में से एक थे। वह एक सरल व्यक्तित्व वाले नेता थे। घुड़सवारी, क्रिकेट और गोल्फ खेलने के शौकीन माधवराज सिंधिया को सामान्य जीवन व्यतीत करना पसंद था। आज के दिन यानी की 10 मार्च को ग्वालियर के राज घराने में उनका जन्म हुआ था। माधवराज सिंधिया के पिता आजादी के पूर्व ग्वालियर के महाराज थे। इसलिए माधवराज सिंधिया को भी समाजसेवा, विनम्रता और संस्कार विरासत में मिले थे। अपनी मां के कारण वह जनसंघ से जुड़े थे। आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर माधवराज सिंधिया की जिंदगी से जुड़ी कुछ बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
ग्वालियर के सिंधिया परिवार में 10 मार्च 1945 माधवराव सिंधिया का जन्म हुआ था। ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया और जीवाजी राव सिंधिया के वह पुत्र थे। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा सिंधिया स्कूल से पूरी की। बता दें कि राजघराने ने सिंधिया स्कूल का निर्माण ग्वालियर में कराया गया था। वहीं अपने आगे की शिक्षा के लिए माधवराव सिंधिया ने ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया।
शादी और परिवार
माधवराव सिंधिया का विवाह राजकुमारी माधवीराजे सिंधिया से हुआ था। उनके दो बच्चे जिनमें बेटा ज्योतिरादित्य सिंधिया और बेटी चित्रांगदा राजे हैं। आपको बता दें कि ज्योतिरादित्य सिंधिया भी राजनीति में सक्रिय हैं। मध्यप्रदेश के चुनिंदा राष्ट्रीय राजनीतिज्ञों में माधवराव सिंधिया का नाम काफी ऊपर था। आपको बता दें कि माधवराज सिंधिया न सिर्फ अपनी राजनीति बल्कि अन्य रुचियों के लिए भी विख्यात रहे थे।
राजनीतिक सफ़र
देश की आजादी के बाद भले ही रियासतों का वजूद खत्म हो चुका हो, लेकिन मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत एक ऐसी रियासत है, जहां पर आज भी राज परिवार के लोग एक साथ खड़े दिखाई देते हैं। फिर चाहे लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का चुनाव हो। अगर प्रत्याशी सिंधिया परिवार से है तो उसकी जीत निश्चित मानी जाती है। ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी करने के बाद माधवराज अपना ज्यादातर समय मुंबई में बिताते थे। लेकिन राजमाता विजया राजे सिंधिया चाहती थीं कि वह जनसंघ से जुड़ जाएं। राजमाता के कारण ही वह जनसंघ में शामिल हुए और अपनी मां की छत्रछाया में राजनीति के दांव-पेंच सीखने लगे।
पहला चुनाव
इस तरह से माधवराज सिंधिया पहली बार चुनाव मैदान में उतरे। साल 1971 के चुनाव में माधवराज के सामने कांग्रेस के नेता डी. के जाधव चुनावी मैदान में उतरे थे। इस चुनाव में माधवराज सिंधिया ने कांग्रेस नेता को करीब 1 लाख 41 हजार 90 मतों से हराकर शानदार जीत को अपने नाम किया। वहीं साल 1977 में वह स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे और इस दौरान उन्होंने लोकदल के जी. एस. ढिल्लन को हराकर जीत हासिल की। इस तरह से वह राजनीति में सक्रिय होते चले गए।
कांग्रेस का साथ
माधवराव सिंधिया ने साल 1980 में कांग्रेस का दामन थामा। जब कांग्रेस से उन्होंने चुनाव लड़ा तो जनता पार्टी के उम्मीदवार नरेश जौहरी को एक लाख से अधिक वोटों से उनको शिकस्त दी थी। जिसके बाद 1984 में माधवराज ने ग्वालिय़र से चुनाव लड़ने का मन बनाया। इस बार वह खुद चुनाव न लड़कर अपने विश्वसनीय महेंद्र सिंह कालूखेड़ा को मैदान में उतारा और जनता को उनका समर्थन भी मिला। महेंद्र सिंह कालूखेड़ा ने भाजपा के उधव सिंह रघुवंशी को भारी मतों से हराया था। इसके बाद अन्य राजनीतिक पार्टियां भी माधवराज सिंधिया की ताकत का अंदाजा लगा चुकी थी।
अटल बिहारी बाजपेयी को मिली हार
हालांकि ग्वालियर उस दौरान ज्यादा चर्चाओं में रहा जब साल 1984 के आम चुनाव में माधवराज में भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी बाजपेयी को करारी शिकस्त दी थी। अटल बिहारी बाजपेयी की यह हार इसलिए और भी चर्चाओं में रही क्योंकि कभी जनसंघ और बीजेपी का गढ़ रहा ग्वालियर अब सिंधिया के गढ़ के रूप में उभरने लगा था। साल 1948 के बाद 1998 तक माधवराज सिंधिया ने सभी चुनाव ग्वालियर से लड़े और उनमें जीत भी हासिल की। जब साल 1996 में उन्होंने कांग्रेस का साथ छोड़ा तो भी उनका जादू जनता पर पहले की तरह ही बरकरार रहा। बता दें कि 14 में से 10 चुनावों में कभी राजमाता तो कभी माधवराज ने अपनी जीत का परचम लहराया था।
मृत्यु
ग्वालियर के महाराजा और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे माधवराज सिंधिया की एक प्लेन क्रैश में मौत हो गई थी। 30 सितंबर 2001 को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में प्लेन क्रैश में उनकी मौत हो गई। बताया गया था कि अधिक बारिश होने के कारण यह दुर्घटना हुई थी। उनकी मौत के बाद राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा थी कि अगर माधवराज सिंधिया जिंदा होते तो मनमोहन सिंह की जगह वह प्रधानमंत्री की कुर्सी पर होते। क्योंकि मनमोहन सिंह से ज्यादा माधवराज सिंधिया लोकप्रिय नेता थे।