माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर आरएसएस के वो नेता थे जिन्हें लोग गुरूजी कहते थे

By रेनू तिवारी | Jun 05, 2022

माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के दूसरे सरसंघचालक थे। गोलवलकर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सबसे प्रभावशाली और प्रमुख शख्सियतों में से एक माना जाता है। वह "हिंदू राष्ट्र" नामक एक सांस्कृतिक राष्ट्र की अवधारणा को सामने रखने वाले पहले व्यक्ति थे, जिनके बारे में माना जाता था कि यह "अखंड भारत सिद्धांत", भारतीयों के लिए संयुक्त राष्ट्र की अवधारणा में विकसित हुआ था। गोलवलकर भारत के शुरुआती हिंदू राष्ट्रवादी विचारकों में से एक थे। गोलवलकर ने वी ओर आवर नेशनहुड डिफाइंड पुस्तक लिखी। बंच ऑफ थॉट्स उनके भाषणों का संकलन है। के.बी. हेडगेवार के बाद गोलवलकर 1940 से 1973 तक आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक (प्रमुख) बने रहे।

इसे भी पढ़ें: वीर सावरकर ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को नई जान और दिशा प्रदान की थी

माधव सदाशिव गोलवलकर का जन्म 1906 में महाराष्ट्र नागपुर के पास के गांव रामटेक में हुआ था। माधव सदाशिव गोलवलकर के पिता का नाम सदाशिवराव और मां का नाम लक्ष्मीबाई था। माधव सदाशिव गोलवलकर का परिवार समृद्ध था और उन्होंने उनकी पढ़ाई और गतिविधियों में उनका साथ दिया। गोलवलकर अपने नौ भाई-बहनों में एकमात्र जीवित पुत्र थे। अपनी आठ संतानों को खोने के बाद उनके माता पिता के लिए गोलवलकर काफी दुलारे थे। उन्हें ऐसा लगता था कि नियति ने किसी बड़े कार्य को करने के लिए ही जीवित रखा था। वे एक विलक्षण प्रतिभा के धनी थे, नागपुर के हिसलोप कॉलेज से स्नातक डिग्री प्राप्त करने के बाद, उन्होंने विज्ञान में मास्टर डिग्री के लिए वाराणसी के हिंदू विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। इस अवधि के दौरान विश्वविद्यालय के संस्थापक और प्रतिष्ठित हिंदू नेता पंडित मदन मोहन मालवीय ने युवा माधव गोलवलकर को हिंदुओं के लिए काम करने के लिए प्रेरित किया। दिन प्रतिदिन उनका कद बढ़ता जा रहा था। अपनी युवा अवस्था के दौरान उन्होंने कॉलेज में एक प्रोफेसर के रूप में भी काम किया था। यहीं से उन्हें छात्रों ने गुरूजी कहना शुरू कर दिया था। बनारस में वह गुरूजी के नाम से ही मशहूर हो गये थे।

इसे भी पढ़ें: संवेदनशील शासक और धर्मपरायण व्यवस्थापक थीं राजमाता अहिल्यादेवी होलकर

गोलवलकर ने संन्यासी बनने के लिए पश्चिम बंगाल में सरगाछी रामकृष्ण मिशन आश्रम के लिए अपनी वकालत और आरएसएस का काम छोड़ दिया। वह स्वामी अखंडानंद के शिष्य बन गए, जो रामकृष्ण के शिष्य और स्वामी विवेकानंद के भाई भिक्षु थे। 13 जनवरी 1937 को गोलवलकर ने कथित तौर पर दीक्षा प्राप्त की, लेकिन इसके तुरंत बाद आश्रम छोड़ दिया। 1937 में अपने गुरु की मृत्यु के बाद हेडगेवार की सलाह लेने के लिए वे अवसाद और अनिर्णय की स्थिति में नागपुर लौट आए, और हेडगेवार ने उन्हें आश्वस्त किया कि आरएसएस के लिए काम करके समाज के प्रति उनके दायित्व को सबसे अच्छा पूरा किया जा सकता है।


- रेनू तिवारी

प्रमुख खबरें

IPL 2025 Unsold Players List: इन खिलाड़ियों को नहीं मिले खरीददार, अर्जुन तेंदलुकर से शार्दुल ठाकुर तक शामिल

विश्व एथलेटिक्स प्रमुख सेबेस्टियन को भारत में, खेलमंत्री से 2036 ओलंपिक की दावेदारी पर की बात

गुरजपनीत सिंह पर CSK ने खेला दांव, करोड़ों में बिका तमिलनाडु का ये गेंदबाज

13 वर्षीय वैभव सूर्यवंशी ने IPL में रचा इतिहास, राजस्थान रॉयल्स ने 1.10 करोड़ रुपये में खरीदा