By अनन्या मिश्रा | Nov 06, 2024
हालांकि बिहार के छठ पर्व को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं। जिसमें से एक मान्यता यह भी है कि सबसे पहले श्रीराम की पत्नी मां सीता ने छठ पूजन किया था। इसके बाद ही इस महापर्व की शुरूआत हुई थी। छठ महापर्व को बिहार का पर्व माना जाता है। बिहार के अलावा अन्य राज्यों में भी छठ पूजा बड़ी-धूमधाम से मनाई जाती है। बिहार के मुंगेर में छठ पूजा का विशेष महत्व होता है। इस पर्व को लेकर कहा जाता है कि मां सीता ने सबसे पहले बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर इस पूजा को संपन्न किया था। इसके बाद छठ पूजा की शुरूआत हुई थी।
मां सीता ने की थी छठ पूजा
वाल्मीकि रामायण के मुताबिक मुंगेर में जहां सीता माता का चरण चिन्ह है, वहीं पर रहकर उन्होंने 6 दिनों तक छठ पूजा की थी। जब चौदह वर्ष के वनवास के बाद प्रभु श्रीराम अयोध्या वापस लौटे, तो उन्होंने रावण के वध से पाप मुक्त होने के लिए उन्होंने राजयज्ञ सूर्य करने का उन्होंने फैसला लिया। राजयज्ञ के लिए उन्होंने मुदग्ल ऋृषियों को आमंत्रित किया गया था, लेकिन ऋषि ने श्रीराम औऱ मां सीता को अपने आश्रम आने का आदेश दिया। ऐसे में जब दोनों आश्रम पहुंचे, तो उन्होंने छठ पूजा के बारे में बताया।
मुद्गल ऋषि ने दिया आदेश
बता दें कि ऋषि मुद्गल ने मां सीता को गंगाजल छिड़कर पवित्र किया था और उन्हें कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने के लिए कहा था। तब वहीं रहकर मां सीता ने 6 दिनों तक सूर्यदेव की उपासना की थी। मान्यता है कि जिस स्थान पर मां सीता ने छठ पूजा संपन्न की थी, आज भी उस स्थान पर उनके पदचिन्ह मौजूद हैं। इस स्थान पर दियारा क्षेत्र के लोगों ने मंदिर बनवा दिया। यह सीता चरण मंदिर के नाम से फेमस है। हर साल यह मंदिर गंगा की वाल में डूबता है और महीनों तक मां सीता के पहचिन्हों वाला पत्थर गंगा के पानी में डूबा रहता है।
महीनों पानी में डूबे रहने के बाद भी पत्थर पर पड़े मां सीता के पदचिन्ह धूमिल नहीं पड़े। इस मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं की गहरी आस्था है। वहीं अन्य राज्यों से भी लोग छठ महापर्व के दौरान इस मंदिर में दर्शन करने आते हैं। माना जाता है कि इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
द्रौपदी ने भी रखा था छठ व्रत
एक कथा के मुताबिक महाभारत काल में छठ पर्व की शुरुआत हुई थी। सबसे पहले इस पर्व की शुरूआत सूर्य पुत्र कर्ण ने पूजा करके की थी। कर्ण सूर्यदेव के बहुत बड़े भक्त थे। वह घंटों पानी में खड़े होकर सूर्य भगवान को अर्घ्य देते थे। सूर्य देव की कृपा से ही कर्ण महान योद्धा बने थे। छठ पर्व में सूर्यदेव को अर्घ्य देने की परंपरा यहां से प्रचलित हुई।
इसके अलावा एक कथा और भी प्रचलित है। कथा के मुताबिक जब जुएं में पांडव अपना सबकुछ हार गए, तो द्रौपदी ने छठ पर्व रखा था। इस व्रत से पांडवों की मनोकामना पूरी हुई और उन्हें अपना राजपाट वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्यदेव और छठी मैया का संबंध भाई बहन का है। इसलिए छठ महापर्व के मौके पर सूर्य देव की आराधना फलदायी मानी जाती है।