By विजयेन्दर शर्मा | Feb 15, 2022
शिमला । वेलेंटाइन-डे की गूंज दुनिया भर में सुनाई दे रही है। लेकिन आज हम आपको एक ब्रिटिश मेम लूसिया पियरसाल की प्रेम कहानी के बारे में भी बताते हैं,जिसने अपने हमसफर के भारत में हुई मौत के बाद अपने वतन वापिस लौटने के बजाये 38 साल का लंबा इंतजार किया ताकि वह अपनी मौत के बाद अपने पति की कब्र के साथ ही अपनी कब्र में दफन हो सके।
यहां बात हो रही है हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला के नाहन में अग्रेंजी हकूमत के समय बनाये गये कब्रिस्तान के उस खास हिस्से की,जो आज भी प्रमियों के लिये किसी मंदिर से कम नहीं है। यहां की वादियों में उस ब्रिटिश मेम की प्रेम कहानी गूंजती है जिसे सुनने वाले भी कह उठते हैं कि प्यार हो तो ऐसा। इस अमर प्रेम कहानी की नायिका उस ब्रिटिश मेम ने अपने पति की कब्र के साथ दफन होने के लिए 38 साल का लंबा इंतजार किया। ये कहानी इतिहास के पन्नों में आज भी दर्ज है। जो आज भी अपने आप में एक मिसाल है।
बताया जाता है कि रियासतकाल में एक अंग्रेज मंडिकल अफसर की पत्नी ने अपने पति के बगल में दफन होने के लिए 38 साल मौत का लंबा इंतजार किया। ब्रिटिश मेम लूसिया पियरसाल अपनी अदभुत प्रेम कहानी को छोड़ कर भले ही आज दुनिया से विदा हो गई हों,लेकिन हर कोई नाहन आने वाला हर शख्स इस कब्रिस्तान को जरूर देखने आता है। जहां दो आत्माओं का मिलन हुआ।
रियासतकाल में लूसिया अपने पति डॉ. इडविन पियरसाल के साथ यहां पहुंची थीं। लूसिया के पति डॉ. इडविन पियरसाल महाराजा के मेडीकल सुपरिटेंडेंट थे। डॉ. पियरसाल ने महाराजा के यहां करीब 11 साल अपनी सेवाएं दीं और 19 नवंबर 1883 में डॉ. इडविन का 50 साल की आयु में देहांत हो गया। पियरसाल को मिलिटरी ऑनर के साथ ऐतिहासिक विला राऊंड के उत्तरी हिस्से में दफन किया। बताया जाता है कि यह जगह पियरसाल ने खुद चुनी थी और कहा था उन्हें यहां दफनाया जाए। उस वक्त लूसिया 49 साल की थीं। उनकी भांति लूसिया भी एक रहम दिल और रियासत में लोकप्रिय महिला थीं। कहते हैं कि पति की मौत के बाद लूसिया वापस इंगलैंड नहीं गईं। अपने अन्य परिवार के सदस्यों को भी छोड़ दिया। बतातें हैं कि पति की मौत के बाद लूसिया इंग्लैंड वापस नहीं लौटी। उसका अपने पति के साथ बेपनाह मोहब्बत का इसी बात से पता लगाया जा सकता था कि 1885 में लूसिया ने भारी धन खर्च कर अपने पति की कब्र को पक्का करवाया। इंग्लैंड न लौटकर अपने परिवार के सदस्यों को भी छोड़ दिया। 19 अक्तूबर 1921 को आखिरकार वह घड़ी भी आ गई जब लूसिया का इंतजार खत्म हुआ और अपने पति को याद करते हुए उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। आज लूसिया व इडविन पियरसाल भले ही हमारे बीच न हों,लेकिन जब भी 14 फरवरी का दिन वेलंटाईन डे के रूप में हमारे सामने आता है तो यह अमर प्रेम कहानी भी हमारी जुबां पर आ जाती है।