By रमेश सर्राफ धमोरा | Nov 12, 2019
रामायण काल में जिस तरह हनुमान जी ने लंका पर विजय पाने में भगवान श्री राम का साथ देकर एक सच्चे साथी की भूमिका निभाई थी। उसी तरह राम जन्मभूमि विवाद में अपनी दमदार दलीलों के बल पर सुप्रीम कोर्ट में रामलला के पक्ष में फैसला कराने वाले वरिष्ठ वकील केशव पराशरण ने भी रामलला भूमि प्रकरण में आज के हनुमान का रोल निभाया है। राम जन्मभूमि में आस्था रखने वाले लोगों की नजरों में पराशरण एक हीरो बनकर उभरे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद मामले में विवादित 2.77 एकड़ जमीन को रामलला विराजमान को देने का फैसला सुनाया है। रामलला के पक्ष में फैसला आने की महत्वपूर्ण कड़ी वरिष्ठ वकील के. पराशरण ही रहे हैं। अपनी अकाट्य व तर्कसंगत दलीलों के बल पर वो कोर्ट में यह साबित करने में सफल रहे कि विवादित 2.77 एकड़ भूमि पर रामलला का ही कब्जा होना चाहिए। तमिलनाडु प्रांत के श्रीरंगम में 9 अक्टूबर 1927 को जन्मे 93 वर्षीय केशव पराशरण अपनी टीम के साथ सुप्रीम कोर्ट में लगातार 40 दिनों तक राम लला के पक्ष में पैरवी करते रहे। सुप्रीम कोर्ट में चली सुनवाई के दौरान वह हर रोज बहुत मेहनत करते थे तथा सुबह से शाम तक कोर्ट में उपस्थित रहते थे। पराशरण अपने युवा वकीलों की टीम के साथ हर बात की चर्चा करने के बाद ही उसे सबूत के रूप में कोर्ट में पेश करते थे।
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कुछ दिनों पूर्व ही पराशरण ने कहा था कि उनकी आखिरी इच्छा है कि उनके जीते जी रामलला कानूनी तौर पर विराजमान हो जाए। आज उनकी यह इच्छा पूरी हो गई अब उनका मन बहुत खुश होगा। आज वे खुशी से फूले नहीं समा रहे होंगे कि उन्होंने अपनी जिंदगी का अंतिम मकसद भी अपनी मेहनत के बल पर पूरा कर दिखाया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार अगले 3 महीनों में केंद्र सरकार अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए एक ट्रस्ट का गठन करेगी जिसकी देखरेख में राम मंदिर बनाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट में चली लंबी सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने उनकी अधिक उम्र को देखते हुए उन्हें कोर्ट ने बैठकर भी दलील पेश करने की बात कही। जिसके जवाब में उन्होंने कहा था कि कोर्ट की परंपरा रही है कि खड़े होकर ही जिरह की जाए और मेरी चिंता परंपरा को लेकर ही है। 40 दिनों तक चली बहस के दौरान उन्होंने कोर्ट में खड़े रहकर ही अपनी दलीलें पेश कीं।
के. पराशरण को हिंदू धर्म के अच्छे ज्ञान के साथ ही भारतीय इतिहास, वेद, पुराण व संविधान का भी व्यापक ज्ञान है। कानून में स्नातक की पढ़ाई करने के दौरान उन्हें हिंदू कानून की पढ़ाई के लिए स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था। सुप्रीम कोर्ट में चली बहस के दौरान उन्होंने स्कंद पुराण के श्लोकों का जिक्र कर राम मंदिर का स्तोत्र साबित करने की कोशिश की थी। सुप्रीम कोर्ट में रामलला विराजमान की ओर से पैरवी करते हुए पराशरण ने दलील के दौरान राम जन्मभूमि को न्यायिक व्यक्तित्व बताते हुए कहा था कि इस कारण इस पर कोई भी कब्जा नहीं कर सकता था क्योंकि यह अविभाज्य है।
कोर्ट में अपनी दलीलों में पराशरण ने जमीन को देवत्व का दर्जा देते हुए कहा था कि हिंदू धर्म में तो मूर्तियों के साथ वृक्ष, नदी, सूर्य को भी देवत्व का दर्जा प्राप्त है। इसलिए जमीन को भी देवत्व का दर्जा दिया जा सकता है। रामलला विराजमान की ओर से पराशरण ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि राम जन्मभूमि खुद ही मूर्ति का आदर्श बन चुकी है और यह हिन्दुओं की उपासना का प्रयोजन है। पराशरण ने पीठ से कहा था कि वाल्मीकि रामायण में तीन स्थानों पर इस बात का उल्लेख है कि अयोध्या में भगवान राम का जन्म हुआ था।
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बाबरी मस्जिद पर भी सवाल उठाते हुये उन्होंने अपनी बहस में कहा था कि बाबरी मस्जिद को इस्लामी कानून के अनुसार बनाई गई मस्जिद नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसको एक धार्मिक स्थान को तोड़कर बनाया गया था। उन्होंने दलील दी थी कि बाबरी मस्जिद को एक मस्जिद के रूप में बंद कर दिया गया था। जिसके बाद से इसमें मुसलमान नमाज नहीं पढ़ते हैं।
अयोध्या में रामलला विराजमान का वकील रहने के अलावा पराशरण सबरीमाला मंदिर मामले में भगवान अय्यप्पा के भी वकील रहे हैं। हिंदू धर्म पर अपनी बहुत अच्छी पकड़ होने के कारण वह खुद को भगवान राम के अनन्य उपासक के रूप में देखते हैं। रामसेतु प्रकरण में भी पराशरण ने सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट से रामसेतु को बचाने के लिए सरकार के खिलाफ जा कर अदालत में केस लड़ा था। 1976 में पराशरण तमिलनाडु सरकार के एडवोकेट जनरल रहे थे। 1983 से 1989 के मध्य पराशरण दो बार इंदिरा गांधी व राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते भारत सरकार के अटार्नी जनरल पद पर भी रह चुके हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने भी उन्हें संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए बनाई गई ड्राफ्टिंग एवं एडिटोरियल कमेटी में शामिल किया था। भारत सरकार द्वारा उन्हें 2003 में पद्मभूषण व 2011 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा चुका है। 2012 से 2018 तक वो राज्यसभा के नामित सदस्य रह चुके हैं। राज्य सभा सदस्य के रूप में उन्हें 2014 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का सदस्य नियुक्त किया गया था।
-रमेश सर्राफ धमोरा
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)