Vitthala Mauli । महाराष्ट्र के पंढरपूर में विठ्ठल के रूप में पूजे जाते हैं भगवान श्रीकृष्ण, निकाली जाती है धार्मिक यात्रा, जाने क्यों?

By एकता | Jun 29, 2023

आज देवशयनी एकादशी, जिसे हरिशयनी या आषाढ़ी एकादशी भी कहते हैं, मनाई जा रही है। हिन्दू धर्म में, देवशयनी एकादशी विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। वहीं, महाराष्ट्र राज्य के सोलापूर जिले के पंढरपूर में आषाढ़ी एकादशी के दिन भगवान विठ्ठल, जो भगवान भगवान श्रीकृष्ण के एक रूप थे, उनकी भव्य तरीके से पूजा की जाती है। इतना ही नहीं सोलापूर में भगवान की धार्मिक पालखी यात्रा, जिसे पंढरपूर वारी भी कहते हैं, निकाली जाती है। आषाढ़ी एकादशी के मौके पर आज हम आपको भगवान श्रीकृष्ण के विट्ठल बनने की कहानी बताने जा रहे हैं।

 

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श्री कृष्ण कैसे बने भगवान विट्ठल?

पुंडलिक एक वफादार और धार्मिक ब्राह्मण था, जो अपने बुजुर्ग माता-पिता के साथ पवित्र शहर पंढरपुर के पास रहता था। पुंडलिक अपने माता-पिता के प्रति इतना समर्पित था कि वह दिन-रात उनकी सेवा करने के लिए अपनी जरूरतों को एक तरफ रख देता था। पुंडलिक की अपने माता-पिता के प्रति भक्ति को देखकर, श्रीकृष्ण अत्यधिक प्रभावित हुए। एक बार भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी रुक्मिणी उनसे नाराज हो गयी और दिंडीखन (महाराष्ट्र का प्राचीन नाम) आ गयी। श्रीकृष्ण अपनी नाराज पत्नी को मनाने के लिए उनके पीछे-पीछे दिंडीखन आ पहुंचे। उन्होंने रुक्मिणी को समझाया। इस दौरान वापस लोटते समय उन्हें अपने भक्त पुंडलिक की याद आई। पुंडलिक को दर्शन देने, वे उनके घर पहुंचे।

 

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भगवान श्रीकृष्ण पुंडलिक के घर प्रकट हुए। लेकिन पुंडलिक अपने माता- पिता की सेवा मे इतने व्यस्त थे कि उन्हें श्रीकृष्ण के आने का पता ही नहीं लगा। ऐसे मे जब श्रीकृष्ण ने उने पुकारा तब वे आए और भगवान की ओर ईट रखते हूए बोले कि भगवान इस ईट पर प्रतीक्षा कीजिए, मैं थोडी देर में अपने माता-पिता की सेवा करके आता हूँ। ऐसा बोलकर वह फिर से अपने माता पिता की सेवा में लग गए। पुंडलिक की सेवा भावना से खुश होकर भगवान श्रीकृष्ण अपने कमर पर हाथ रखकर ईट पर खड़े हो गए। बाद में, जब भगवान ने पुंडलिक से वरदान माँगने को कहा तो उन्होंने श्रीकृष्ण से इसी रुप में हमेशा के लिए रह कर भक्तों को दर्शन देने का निवेदन किया। इस निवेदन को भगवान ने स्वीकार कर लिया और ईट पर स्थापित हो गए। इस तरह भगवान श्रीकृष्ण विट्ठल के रूप में भक्तों के मन मे बसे और पुंडलिक की वजह से यह स्थान पुंडलिकपूर कहलाया जो आगे जाकर पंढरपूर हो गया।

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