पंजाब के त्योहार लोहड़ी को देश-विदेश में बसे पंजाबियों ने ग्लोबल फेस्टिवल बना दिया

By शुभा दुबे | Jan 12, 2021

साल 2021 का लोहड़ी पर्व इस मायने में खास है कि पिछले साल की दुश्वारियों के बाद लोगों को इस साल यह पहला उत्सव और उल्लास मनाने का अवसर प्रदान करेगा। कोरोना काल में साल 2020 के सभी त्योहार प्रतीक रूप में ही मनाये गये लेकिन इस साल कोरोना संक्रमण के गिरते मामलों और वैक्सीन आ जाने की खबर ने लोहड़ी पर्व की मस्ती को और बढ़ा दिया है लेकिन अभी हमें यह ध्यान रखना होगा कि सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। लोहड़ी पर्व के धार्मिक महत्व की चर्चा करें इससे पहले आपको याद दिला दें कि हमें इस पर्व की मस्ती में स्वास्थ्य संबंधी सरकारी सुझावों को नहीं भूलना है और फेस मास्क तथा सोशल डिस्टेंसिंग बनाये रखने का ख्याल रखना होगा।


लोहड़ी पर्व की महत्ता


वैसे तो लोहड़ी पर्व पंजाब में मनाया जाने वाला त्योहार है लेकिन देश-विदेश के कोने-कोने में बसे पंजाबियों ने इसे ग्लोबल फेस्टिवल बना दिया है और हर जगह ढोल, डीजे पर आपको लोहड़ी मनाते हुए सभी संप्रदायों के लोग दिख जाएंगे। लोहड़ी पर्व के मनाये जाने के पीछे एक प्रचलित लोक कथा भी है कि मकर संक्रांति के दिन कंस ने भगवान श्रीकृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल में भेजा था, जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने खेल–खेल में ही मार डाला था। उसी घटना की स्मृति में लोहिता का पावन पर्व मनाया जाता है। सिन्धी समाज में भी मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व 'लाल लाही' के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है। यह भी कहा जाता है कि लोहड़ी पर्व के दिन से ही धरती सूर्य से अपने सुदूर बिन्दु से फिर दोबारा सूर्य की ओर मुख करना प्रारम्भ कर देती है। 

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लोहड़ी पर्व खुशहाली के आगमन का प्रतीक भी है। अन्नदाता यानि किसानों के बीच यह पर्व उत्साह और उमंग का संचार करता है क्योंकि इस पर्व तक उनकी वह फसल जिसे उन्होंने बड़ी मेहनत से बोया, उसको खाद-पानी दिया और उसकी रखवाली की, वह पक कर तैयार हो चुकी होती है। लोहड़ी पर्व के दिन रात को जब लोहड़ी जलाई जाती है तो उसकी पूजा गेहूं की नयी फसल की बालों से ही की जाती है। लोहड़ी पर्व के आगमन से पूर्व ही बाजार भी तमाम तरह के खाद्य उत्पादों से सज जाते हैं।


लोहड़ी पर्व की छटा


लोहड़ी पर्व को मनाने का तरीका आज के आधुनिक समय में पूरी तरह बदल चुका है। गांवों में जहां लोग इसे परम्परागत तरीके से मनाते हैं वहीं शहरों में लोग अपने घरों या होटलों रेस्टोरेंटों में अपने-अपने स्तर पर पार्टी का आयोजन करते हैं। डीजे बजाये जाते हैं और तमाम तरह के पेय इत्यादि परोसे जाते हैं। पंजाब की बात करें तो वहां इस दिन सभी गली मोहल्लों में यह दृश्य आम होता है कि बहुएं लोकगीत गाते हुए घर घर जाती हैं और लोहड़ी मांगती हैं। महिलाएं जो दुल्ला भट्टी के लोकगीत गाती हैं उसके पीछे मान्यता है कि महाराजा अकबर के शासन काल में दुल्ला भट्टी एक लुटेरा था लेकिन वह हिंदू लड़कियों को गुलाम के तौर पर बेचे जाने का विरोधी था। उन्हें बचा कर वह उनकी हिंदू लड़कों से शादी करा देता था। गीतों के माध्यम से उसके प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। लोहड़ी के दिन जगह−जगह युवक एकत्रित होकर ढोल की थाप पर भांगड़ा करते हैं और एक दूसरे को लोहड़ी की बधाइयां देते हैं। महिलाएं भी खेतों की हरियाली के बीच अपनी चुनरी लहराते हुए उमंगों को नयी उड़ान देती हुई प्रतीत होती हैं।


पंजाब में तो महिलाएं इस पर्व की तैयारी कुछ दिन पहले से ही शुरू कर देती हैं और समूहों में एकत्रित होकर एक दूसरे के हाथों में विभिन्न आकृतियों वाली मेहंदी रचाती हैं। पंजाब में नई बहू और नवजात बच्चे के लिए तो लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। इस दिन रेवड़ी और मूंगफली वितरण के साथ ही मक्के की रोटी और सरसों के साग का भोज भी आयोजित किया जाता है। लोहड़ी के दिन विभिन्न गुरुद्वारों में श्रद्धालु प्रातःकाल से ही एकत्रित होना शुरू हो जाते हैं और मत्था टेक कर आशीर्वाद लेने के साथ ही एक दूसरे को लोहड़ी दियां लख-लख बधाइयां दी जाती हैं। शाम को मूंगफली, तिल के लड्डू, रेवड़ी, गजक आदि सामग्री को प्रसाद के रूप में अलाव में डाला जाता है और ईश्वर से आशीर्वाद माँगा जाता है कि सब कुशल पूर्वक रहें और धन-धान्य में वृद्धि हो।


-शुभा दुबे

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