अंग्रेज और मुगल, दोनों ही कभी नहीं जीत पाये लोहागढ़ दुर्ग को

By डॉ. प्रभात कुमार सिंघल | Dec 09, 2019

लोहागढ़ दुर्ग एक किला है जो राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित है। दुर्ग का निर्माण भरतपुर के जाट वंश के (जाटो का प्लेटो अथार्त जाटों का अफलातून) तब कुंवर महाराजा सूरजमल ने 19 फरवरी 1733 ई. में करवाया था। यह भारत का एकमात्र अजेय दुर्ग है। इसके चारों ओर मिट्टी की दोहरी प्राचीर बनी हैं। अतः इसको मिट्टी का दुर्ग भी कहते हैं। किले के चारों ओर एक गहरी खाई हैं, जिसमें मोती झील से सुजानगंगा नहर द्वारा पानी लाया गया हैं। इस किले में दो दरवाजे हैं। इनमें उत्तरी द्वार अष्टधातु का बना है। खास के रूप में प्रयुक्त कचहरी कला का उदाहरण हैं। भरतपुर राज्य के जाट राजवंश के राजाओ का राज्यभिषेक जवाहर बुर्ज में होता था। इस किले पर कई आक्रमण हुए हैं, लेकिन इसे कोई भी नहीं जीत पाया। इस पर कई पड़ोसी राज्यों, मुस्लिम आक्रमणकारियों तथा अंग्रेजो ने आक्रमण किया, लेकिन सभी असफल रहे। 1803 ई. में लार्ड लेक ने बारूद भरकर इसे उड़ाने का असफल प्रयास किया था। यहां पर फतेह बुर्ज का निर्माण ब्रिटिश सेना पर विजय को चिरस्थायी बनाने के लिए करवाया गया था।

 

मिट्टी से ढंकी इस किले की दीवार में तोप के गोले धंस जाते थे। इस किले के प्रमुख दरवाजे का वजन 20 टन है। अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के दौरान चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी ने 25 अगस्त 1303 को दासियों के साथ जोहर कर लिया था। इसके बाद गुस्से में आए अलाउद्दीन खिलजी ने मेवाड़ इलाके में बेरहमी से मारकाट और लूटपाट की। इसी दौरान वह चित्तौड़गढ़ किले से बेशकीमती अष्टधातु गेट को उखाड़ कर ले गया था। जिसे उसने दिल्ली के लाल किले में ले जाकर लगा दिया था।

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वर्ष 1765 में भरतपुर के महाराजा जवाहर सिंह ने अपने पिता महाराजा सूरजमल की मौत का बदला लेने के लिए दिल्ली के शासक नजीबुद्दौला पर आक्रमण कर दिया था। उन्हें चित्तौड़ के अपमान गेट के बारे में जानकारी हुई तो वे अष्टधातु का दरवाजा भी उखाड़कर भरतपुर ले आए।

 

यहां आने के बाद महाराजा जवाहर सिंह ने चित्तौड़ के शासक को संदेश भेजा कि यदि वे चाहें तो अपनी राजपूती शान के प्रतीक दरवाजे को ले जा सकते हैं। वहां से कोई इसे लेने नहीं आया तो महाराजा ने यह ऐतिहासिक दरवाजा भरतपुर के किले के उत्तर द्वार पर  लगा दिया। ये दरवाजा आज भी जाट वीरों की बहादुरी और जिंदादिली की कहानी सुनाता है। अष्टधातु का दरवाजा करीब 20 टन वजन का है। इसमें करीब 6 टन मात्रा में अष्टधातु लगी है। चूंकि अष्टधातु में सोना भी शामिल होता है इसलिए इसकी सुरक्षा के लिए पुरातत्व विभाग ने लोहे की सुरक्षा जाली लगा रखी 

 

इस किले में जाट राजा शासन करते थे। इन्होंने इसे इतनी कुशलता के साथ डिजाइन किया था कि दूसरे राजा इन पर हमला कर दें तो उनकी सारी कोशिशें नाकाम हो जाए। किले की दीवारें मिट्टी से ढंकी थी, जिससे दुश्मनों की तोप के गोले इस मिट्टी में धंस जाते थे। यही हाल बंदूक की गोलियों का भी होता था। 

 

बताया जाता है कि इस किले की दीवारों में आज भी तोप के गोले धंसे हुए हैं। अंग्रेजों ने इस किले को अपने साम्राज्य में लेने के लिए 13 बार हमले किए। इन आक्रमणों में एक बार भी वो इस किले को भेद न सके। किले के चारों तरफ जाट राजाओं ने सुरक्षा के लिहाज से एक खाई बनवाई थी, जिसमें पानी भर दिया गया था। इतना ही नहीं कोई दुश्मन तैरकर भी किले तक न पहुंचे इसलिए इस पानी में मगरमच्छ छोड़े गए थे। एक ब्रिज बनाया गया था जिसमें एक दरवाजा था यह दरवाजा भी अष्टधातु से बना था।

 

लोहागढ़ किले में महल खास, कामरा महल और बदन सिंह का महल के नाम तीन महल शामिल हैं। इस किले संरचना में अन्य स्मारक जैसे किशोरी महल, महल खास और कोठी खास भी शामिल हैं। इसके साथ यहां पर जवाहर बुर्ज और फतेह बुर्ज जैसे टावर भी स्थित हैं। इन टावरों को मुगलों और ब्रिटिश सेना पर जाट की विजय की याद में बनाया गया था। महल खास का निर्माण सूरज मल द्वारा करवाया गया था जो 1730 और 1850 के दौरान किले में जाटो द्वारा बनाये गए तीन महलों में से एक था। इस महल खास में घुमावदार छत और बालकनी भी है जो शानदार नक्काशी से बनी है और जाट शैली की विशेषता है।

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कामरा पैलेस किले की एक खास जगह है जो किले के सभी कवच और खजाने को संग्रहीत करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था लेकिन अब इसको एक सरकारी संग्रहालय में बदल दिया गया है। संग्रहालय में जैन मूर्तियां, एक यक्ष की नक्काशी मूर्ति, शिव की नटराज मूर्ति, लाल बलुआ पत्थर का शिवलिंग, हथियारों का संग्रह, कई पांडुलिपियां हैं जो अरबी और संस्कृत में लिखी गई हैं विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। इस पैलेस में छोटे कक्ष और अलंकृत पत्थर की खिड़कियां हैं, जिसमें सुंदर पैटर्न के संगमरमर के फर्श हैं। महल के मध्य अनेक संरचनाएं दर्शनीय हैं।

 

- डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

 

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