आज के इस सोशल मीडिया युग में जहां लोग अपना अधिकांश समय रील्स देखने में बिताते हैं वहां प्रभु श्रीराम की महिमा को पढ़ने और देखने की होड़ दिखा रही है कि भारतीय सनातन संस्कृति का पुनर्जागरण हो चुका है। जहां तक प्रभु श्रीराम के व्यक्तित्व और उनके जीवन से जुड़ी बड़ी घटनाओं की बात है तो यह सर्वविदित है कि हिन्दुओं के आराध्य श्रीराम भगवान विष्णु के दसवें अवतार माने जाते हैं। अयोध्या के राजा रहे श्रीराम हिन्दुओं के लिए परम आराध्य और धर्मपरायण हैं।
पुराणों के अनुसार, भगवान श्रीराम धर्म के क्षीण हो जाने पर साधुओं की रक्षा, दुष्टों का विनाश तथा पृथ्वी पर शान्ति एवं धर्म की स्थापना करने के लिए अवतरित हुए थे। भगवान श्रीराम ने त्रेतायुग में देवताओं की प्रार्थना सुनकर पृथ्वी का भार हरण करने के लिए अयोध्यापति महाराज दशरथ के यहां चैत्र शुक्ल नवमी के दिन जन्म लिया और राक्षसों का वध कर त्रिलोक में अपनी कीर्ति को स्थापित किया। जब श्रीराम ने जन्म लिया था उस समय राक्षसराज रावण के अत्याचार से धरती कांप रही थी। रावण के आदेश पर राक्षसों की ओर से विभिन्न जगहों पर यज्ञों को बलपूर्वक रोका जा रहा था, पूजन स्थलों को ध्वस्त किया जा रहा था और तपोवनों को जलाया जा रहा था। भगवान श्रीराम ने राक्षसों के आतंक से धरती को मुक्ति दिलाई थी।
भगवान श्रीराम हिन्दू धर्म में परम पूज्य हैं। हिन्दू धर्म के कई त्यौहार जैसे रामनवमी, दशहरा और दीपावली, राम की जीवन−कथा से जुड़े हुए हैं। श्रीराम आदर्श पुत्र, आदर्श भ्राता, आदर्श पति, आदर्श मित्र, आदर्श स्वामी, आदर्श वीर, आदर्श देश सेवक होने के साथ ही साथ साक्षात परमात्मा भी थे। मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में विख्यात श्रीराम का नाम हिन्दुओं के जन्म से लेकर मरण तक उनके साथ रहता है। अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र श्रीराम ने अपने जीवन के माध्यम से नैतिकता, वीरता, कर्तव्यपरायणता के जो उदाहरण प्रस्तुत किये वह बाद में मानव जीवन के लिए मार्गदर्शक का काम करने लगे। महर्षि वाल्मीकि ने अपने महाकाव्य 'रामायण' और संत तुलसीदास जी ने भक्ति काव्य 'श्रीरामचरितमानस' में भगवान श्रीराम के जीवन का विस्तृत वर्णन बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है।
राम प्रजा को हर तरह से सुखी रखना राजा का परम कर्तव्य मानते थे। उनकी धारणा थी कि जिस राजा के शासन में प्रजा दुखी रहती है, वह अवश्य ही नरक का अधिकारी होता है। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में रामराज्य की विशद चर्चा की है। राम अद्वितीय महापुरुष थे। वे अतुल्य बलशाली तथा उच्च शील के व्यक्ति थे।
युवा श्रीराम के जीवनकाल में तब बड़ा परिवर्तन आया जब वह अपने छोटे भाई लक्ष्मण तथा मुनि विश्वामित्र के साथ जनकपुर पहुंचे और वहां श्रीराम ने जनकजी द्वारा प्रतिज्ञा के रूप में रखे शिव−धनुष को तोड़ दिया। जिसके बाद राजा ने साक्षात् लक्ष्मी के अंश से उत्पन्न सीता का विवाह राम के साथ कर दिया तथा दूसरी पुत्री उर्मिला का विवाह लक्ष्मण के साथ कर दिया। इसके बाद महाराज दशरथ ने अपने बड़े पुत्र राम को राज्य करने योग्य देखकर उन्हें राज्य भार सौंपने का मन में निश्चय किया।
राजतिलक संबंधी सामग्रियों का प्रबंध हुआ देखकर महाराज दशरथ की तीसरी पत्नी रानी कैकेयी ने अपनी वशीभूत महाराज दशरथ से पूर्व कल्पित दो वरदान मांगे। उन्होंने पहले वरदान के रूप में अपने पुत्र भरत के लिये राज्य तथा दूसरे वरदान के रूप में श्रीराम को चौदह वर्षों का वनवास मांगा। कैकेयी का वचन मानकर श्रीरामचन्द्र जी सीता तथा लक्ष्मण के साथ दण्डक वन चले गये, जहां राक्षस रहते थे। इसके बाद पुत्र के वियोग जनित शोक से संतप्त पुण्यात्मा दशरथ ने पूर्व काल में एक व्यक्ति द्वारा प्रदत्त शाप का स्मरण करते हुए अपने प्राण त्याग दिये। भाई भरत अपने बड़े भाई श्रीराम को वापस लाने के लिए वन गये मगर उनका प्रेम भी उन्हें वापस लाने में सफल नहीं हुआ। भगवान श्रीराम अपने पिता की ओर से दिये गये वचन का पालन करने की प्रतिज्ञा पर अडिग रहे। भरत बड़े भाई की चरण पादुकाएं लेकर अयोध्या लौटे। अयोध्या का सिंहासन उन पादुकाओं से सुशोभित हुआ और भरत ने नंदिग्राम में तपस्वी जीवन आरम्भ किया।
वनवास के समय, रावण ने सीता का हरण किया था। रावण राक्षस तथा लंका का राजा था। सौ योजन का समुद्र लांघकर हनुमान जी ने सीता का पता लगाया। समुद्र पर सेतु बना। रणभूमि के महायज्ञ में श्रीराम के बाणों ने राक्षसों के साथ कुम्भकर्ण और रावण के प्राणों की आहुति ले ली। भगवान श्रीराम ने रावण को युद्ध में परास्त किया और उसके छोटे भाई विभीषण को लंका का राजा बना दिया। श्रीराम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे और वहां सबसे मिलने के बाद श्रीराम और सीता का अयोध्या में राज्याभिषेक हुआ। अयोध्या में ग्यारह हजार वर्षों तक उनका दिव्य शासन रहा।
युग बदला और विदेशी आक्रांताओं ने भारत में आकर हिंदू धर्म स्थलों को तहस-नहस करना और लोगों को जबरन इस्लाम कबूलवाना शुरू किया। हिंदू आस्था पर चोट करने के अभियान के तहत श्रीराम जन्मभूमि पर बने मंदिर को ध्वस्त कर वहां दूसरे धर्म की प्रार्थना शुरू कराई गयी। लेकिन सैंकड़ों वर्षों तक चला हिंदुओं का आंदोलन आखिरकार रंग लाया और भारत के उच्चतम न्यायालय ने श्रीरामजन्मभूमि पर भव्य श्रीराम मंदिर बनने का मार्ग प्रशस्त किया। मोदी सरकार ने अदालत का फैसला आने के तत्काल बाद एक ट्रस्ट का गठन कर मंदिर निर्माण शुरू करवाया और अब यह कार्य अपने अंतिम चरण में पहुँच चुका है। रामलला 22 जनवरी को शुभ मुहूर्त में गर्भगृह में विराजमान होंगे।