Gyan Ganga: चाणक्य और चाणक्य नीति पर डालते हैं एक नजर, भाग-5

By आरएन तिवारी | Nov 08, 2024

चाणक्य एक सुयोग्य पुत्र का महत्व बताते हुए कहते हैं–


एकेनापि सुवृक्षण दह्यमानेन गन्धिना।

वासितं तद्वर्न सवै कुपुत्रेण कुलं यथा ।।


जिस तरह सारा वन केवल एक ही पुष्प एवं सुगंध भरे वृक्ष से महक जाता है, उसी तरह एक ही गुणवान पुत्र पुरे कुल का नाम बढाता है।


Meaning- As a whole forest becomes fragrant by the existence of a single tree with sweet-smelling blossoms in it, so a family becomes famous by the birth of a virtuous son.


एकेन शुष्कवृक्षेण दह्यमानेन वन्हिना।

दह्यते तद्वनं सर्व कुपुत्रेण कुलं यथा 


जिस प्रकार केवल एक सूखा हुआ जलता वृक्ष सम्पूर्ण वन को जला देता है, उसी प्रकार एक ही कुपुत्र सारे कुल के मान, मर्यादा और प्रतिष्ठा को नष्ट कर देता है।

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: चाणक्य और चाणक्य नीति पर डालते हैं एक नजर, भाग-4

Meaning- As a single withered tree, if set aflame, causes a whole forest to burn, so does a rascal son destroy a whole family.


एकेनापि सुपुत्रेण विद्यायुक्तेन साधुना।

आल्हादितं कुलं सर्व यथा चन्द्रेण शर्वरी ।।


विद्वान एवं सदाचारी एक ही पुत्र के कारण सम्पूर्ण परिवार वैसे ही खुशहाल रहता है, जैसे चन्द्रमा के निकालने पर रात्रि जगमगा उठती है।


Meaning- As night looks delightful when the moon shines, so is a family gladdened by even one learned and virtuous son.


किं जातैर्बहुभिः पुत्रैः शोकसन्तापकारकैः ।

वरमेक कुलालम्बी यत्र विश्राम्यते कुलम् ।।


ऐसे अनेक पुत्र किस काम के जो दुःख और निराशा पैदा करे। इससे तो वह एक ही पुत्र अच्छा है जो सम्पूर्ण घर को सहारा और शान्ति प्रदान करें।


Meaning- What is the use of having many sons if they cause grief and vexation? It is better to have only one son from whom the whole family can derive support and peacefulness.


लालयेत्पञ्चवर्षाणि दश वर्षाणि ताडयेत् ।

प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत् ।


पांच साल तक पुत्र को लाड एवं प्यार से पालन करना चाहिए, दस साल तक उसे डराना धमकाना चाहिए लेकिन जब वह 16 साल का हो जाए तो उससे मित्र के समान व्यवहार करें।


Meaning- Fondle a son until he is five years of age, and use the stick for another ten years, but when he has attained his sixteenth year treat him as a friend.


मूर्खा यत्र न पुज्यन्ते धान्यं यत्र सुसञ्चितम्।

दाम्पत्ये कलहो नास्ति तत्र श्रीः स्वयमागता ॥


धन की देवी लक्ष्मी स्वयं वहां चली आती है जहाँ ...

1. मूर्खों का सम्मान नहीं होता,

2. अनाज का अच्छे से भंडारण किया जाता है.

3. पति, पत्नी में आपस में लड़ाई झगड़ा नहीं होता है।


Meaning- Lakshmi, the Goddess of wealth, comes of Her own accord where fools are not respected, grain is well stored up, and the husband and wife do not quarrel.


आयुः कर्म च वित्तञ्च विद्या निधनमेव च ।

पञ्चैतानि हि सृज्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिनः ।।१।।


निम्नलिखित बातें माता के गर्भ में ही निश्चित हो जाती है....

१. व्यक्ति कितने साल जियेगा

२. वह किस प्रकार का काम करेगा

३. उसके पास कितनी संपत्ति होगी

४. उसकी मृत्यु कब होगी


Meaning- These five: the life span, the type of work, wealth, learning and the time of one's death are determined while one is in the womb.


यावत्स्वस्थो ह्ययं देहो यावन्मृत्युश्च दूरतः ।

तावदात्महितं कुर्यात् प्राणान्ते किं करिष्यति।


जब आपका शरीर स्वस्थ है और आपके नियंत्रण में है उसी समय आत्मसाक्षात्कार का उपाय कर लेना चाहिए क्योंकि मृत्यु हो जाने के बाद कोई कुछ नहीं कर सकता है।


Meaning- As long as your body is healthy and under control and death is distant, try to save your soul; when death is imminent what can you do?


कामधेनुगुण विद्या ह्यकाले फलदायिनी ।

प्रवासे मातृसदृशी विद्या गुप्तं धनं स्मृतम् ।।


विद्या अर्जन करना यह एक कामधेनु के समान है। जो हर मौसम में अमृत प्रदान करती है। वह विदेश में माता के समान रक्षक अवं हितकारी होती है। इसीलिए विद्या को एक गुप्त धन कहा जाता है।


Meaning- Learning is like a cow of desire. It, like her, yields in all seasons. Like a mother, it feeds you on your journey. Therefore learning is a hidden treasure.


एकोऽपि गुणवान् पुत्रो निर्गुणैश्च शतैर्वरः ।

एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति न च ताराः सहस्त्रशः ।।


सैकड़ों गुणरहित पुत्रों से अच्छा एक गुणी पुत्र है क्योंकि एक चन्द्रमा ही रात्रि के अन्धकार को भगाता है, असंख्य तारे यह काम नहीं करते।


Meaning- A single son endowed with good qualities is far better than a hundred devoid of them. For the moon, though one, dispels the darkness, which the stars, though numerous, cannot.


शेष अगले प्रसंग में ------

श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । 


- आरएन तिवारी

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