Gyan Ganga: चाणक्य और चाणक्य नीति पर डालते हैं एक नजर, भाग-4

By आरएन तिवारी | Nov 01, 2024

चाणक्य कहते हैं--


कस्य दोषः कुलेनास्ति व्याधिना के न पीडितः ।

व्यसनं के न संप्राप्तं कस्य सौख्यं निरन्तरम् ।।


इस दुनिया में ऐसा किसका घर है, जिस पर कोई कलंक न हो, वह कौन है जो पूरी तरह से रोग और दुख से मुक्त हो और सदा सुख किसको मिलता है? कहने का तात्पर्य यह है कि किसी को नहीं। 


Meaning- In this world, whose family is there without blemish? Who is free from sickness and grief? Who is forever happy?


सत्कुले योजयेत्कन्यां पुत्रं विद्यासु योजतेत् ।

व्यसने योजयेच्छत्रु मित्रं धर्मे नियोजयेत् ।।


लड़की का ब्याह अच्छे खानदान में करना चाहिए। पुत्र को अच्छी शिक्षा देनी चाहिए, शत्रु को आपत्ति और कष्टों में डालना चाहिए, एवं मित्रों को धर्म कर्म में लगाना चाहिए।


Meaning- Give your daughter in marriage to a good family, engage your son in learning, see that your enemy comes to grief, and engage your friends in dharma. (Krsna consciousness).


दुर्जनस्य च सर्पस्य वरं सर्पो न दुर्जनः ।

सो दशति काले तु दुर्जनस्तु पदे पदे ।।

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: चाणक्य और चाणक्य नीति पर डालते हैं एक नजर, भाग-3

एक दुर्जन और एक सर्प में यह अंतर है कि साँप तभी डंक मारेगा, जब उसकी जान को खतरा हो लेकिन दुर्जन पग पग पर हानि पहुंचाने की कोशिश करेगा।


Meaning- Of a rascal and a serpent, the serpent is the better of the two, for he strikes only at the time he is destined to kill, while the former at every step.


प्रलये भिन्नमर्यादा भवन्ति किल सागराः।

सागरा भेदमिच्छान्ति प्रलयेऽपि न साधवः ।।


जब प्रलय का समय आता है तो समुद्र भी अपनी मर्यादा छोड़कर किनारों को छोड़ अथवा तोड़ जाते है, लेकिन सज्जन पुरुष प्रलय के समान भयंकर आपत्ति अवं विपत्ति में भी अपनी मर्यादा नहीं छोड़ते।


Meaning- At the time of the pralaya (universal destruction) the oceans are to exceed their limits and seek to change, but a saintly man never changes.


मूर्खस्तु परिहर्त्तव्यः प्रत्यक्षो द्विपदः पशुः ।

भिद्यते वाक्यशूलेन अदृश्य कण्टकं यथा ।।


मूर्खों के साथ मित्रता नहीं रखनी चाहिए उन्हें त्याग देना ही उचित है, क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से वे दो पैरों वाले पशु के समान हैं, जो अपने धारदार वचनों से वैसे ही हृदय को कष्ट देता है जैसे अदृश्य काँटा शरीर में घुसकर दर्द देता है। 


Meaning- Do not keep company with a fool for as we can see he is a two-legged beast. Like an unseen thorn he pierces the heart with his sharp words.


रूपयौवनसम्पन्ना विशालकुलसम्भवाः ।

विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इवकिशुकाः ।।


 रूप और यौवन से सम्पन्न तथा कुलीन परिवार में जन्म लेने पर भी विद्याहीन पुरुष पलाश के फूल के समान है जो सुन्दर तो है लेकिन खुशबू रहित है।


Meaning- Though men be endowed with beauty and youth and born in noble families, yet without education they are like the palasa flower, which is void of sweet fragrance.


कोकिलानां स्वरो रूपं नारीरूपं पतिव्रतम् ।

विद्यारूपं कुरूपाणांक्षमा रूप रपस्विनाम् ॥ 


 कोयल की सुन्दरता उसके गायन में है। एक स्त्री की सुन्दरता उसके अपने परिवार के प्रति समर्पण में है। एक बदसूरत आदमी की सुन्दरता उसके ज्ञान में है, तथा एक तपस्वी की सुन्दरता उसकी क्षमाशीलता में है।


Meaning- The beauty of a cuckoo is in its notes, that of a woman in her unalloyed devotion to her husband, that of an ugly person in his scholarship, and that of an ascetic in his forgiveness.


उद्योगे नास्ति दारिट्य जपतो नास्ति पातकम्।

मौनेनकलहोनास्ति नास्ति जागृतो भयम् ।।११।।


जो उद्यमशील हैं, वे गरीब नहीं हो सकते, जो हरदम भगवान को याद करते हैं उन्हे पाप नहीं छू सकता। जो मौन रहते है वो झगड़ों में नहीं पड़ते। जो जागृत रहते है वो निर्भय होते हैं ।


Meaning- There is no poverty for the industrious. Sin does not attach itself to the person practicing japa (chanting of the holy names of the Lord). Those who are absorbed in maunam (silent contemplation of the Lord) have no quarrel with others. They are fearless who remain always alert.


अतिरूपेण वै सीता अतिगर्वण रावणः ।

अतिदानाब्दलिबध्दो ह्यति सर्वत्र वर्जयेत् ।।


अत्याधिक सुन्दरता के कारण सीताहरण हुआ, अत्यंत घमंड के कारण रावण का अंत हुआ, अत्यधिक दान देने के कारण राजा बलि को बंधन में बंधना पड़ा, अतः सर्वत्र अति का त्याग करना चाहिए।


Meaning- Sitaharan was caused by excessive beauty, Ravana came to an end due to excessive arrogance, King Bali had to be tied due to excessive donations, so one should abandon Ati everywhere.


कोऽतिभार- समर्थानां किं दूरं व्यवसायिनाम्।

को विदेशः सुविद्यानां कः परः प्रियवादिनाम् ।।


शक्तिशाली लोगों के लिए कौन सा कार्य कठिन है व्यापारियों के लिए कौन सी जगह दूर है, विद्वानों के लिए कोई देश विदेश नहीं है और  मधुर भाषियों का कोई शत्रु नहीं।


Meaning- What is too heavy for the strong and what place is too distant for those who put forth effort? What country is foreign to a man of true learning? Who can be inimical to one who speaks pleasingly?


शेष अगले प्रसंग में ------

श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । 


- आरएन तिवारी

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