Gyan Ganga: चाणक्य और चाणक्य नीति पर डालते हैं एक नजर, भाग-3

By आरएन तिवारी | Oct 25, 2024

चाणक्य कहते हैं------


मनसा चिन्तितं कार्य वचसा न प्रकाशयेत् ।

मंत्रेण रक्षयेद् गूढं कार्यम चापि नियोजयेत् ।।


अर्थ- मन में सोचे हुए कार्य को किसी के सामने प्रकट न करें बल्कि मनन पूर्वक उसकी सुरक्षा करते हुए उसे कार्य में परिणत कर दें। 


Meaning- Do not reveal what you have thought upon doing, but by wise counsel keep it secret, being determined to carry it into execution.


कष्टम च खलु मूर्खत्वं कष्टम च खलु यौवनम्।

कष्टात कष्टरम चैव परगेहे निवासनम् ।।


अर्थ- मुर्खता दुखदायी है, जवानी भी दुखदायी है, लेकिन इन सबसे कहीं ज्यादा दुखदायी किसी दूसरे के घर जाकर रहना और उसका अहसान लेना है।


Meaning- Foolishness is indeed painful, and verily so is youth, but more painful by far than either is being obliged in another person's house.

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: चाणक्य और चाणक्य नीति पर डालते हैं एक नजर, भाग-2

शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे।

साधवी नहि सर्वत्र चन्दनं न वने वने 


हर पर्वत पर माणिक्य नहीं होते, हर हाथी के सिर पर मणी नहीं होता, सज्जन पुरुष भी हर जगह नहीं होते और हर वन में चन्दन के वृक्ष भी नहीं होते हैं।


Meaning- There does not exist a pearl in every mountain, nor a pearl in the head of every elephant; neither are the sadhus to be found everywhere, nor sandal trees in every forest.

 

[Note: Only elephants in royal palaces are seen decorated with pearls (precious stones) on

their heads].


पुत्राश्च विविधः शीलनियोज्याः सततं बुधः।

नीतिज्ञाः शीलसम्पन्ना भवन्ति कुलपूजिताः ।।


बुद्धिमान पिता वह है जो अपने पुत्रों को शुभ गुणों की सीख देता हो।  क्योंकि नीतिज्ञ और ज्ञानी व्यक्तियों की ही कुल में पूजा होती है।


Meaning- Wise men should always bring up their sons in various moral ways, for children who have knowledge of niti-sastra and are well behaved become a glory to their family.


माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः।

न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये वको यथा ।।


अर्थ- जो माता व पिता अपने बच्चों को शिक्षा नहीं देते है वो तो बच्चों के शत्रु के समान हैं। क्योंकि वे विद्याहीन बालक विद्वानों की सभा में वैसे ही तिरस्कृत किये जाते हैं जैसे हंसो की सभा में बगुले।


Meaning- Those parents who do not educate their sons are their enemies; for as is a crane among swans, so are ignorant sons in a public assembly.


लालनाद् बहवो दोषास्ताडना बहवो गुणाः।

तस्मात्पुत्र च शिष्यं च ताडयेजतुलालयेत् ।।


अर्थ- लाड-प्यार से बच्चों में गलत आदतें ढलती है, उन्हें कड़ी शिक्षा देने से वे अच्छी आदते सीखते है, इसलिए बच्चों को जरूरत पड़ने पर दण्डित करें, ज्यादा लाड ना करें।


Meaning- Many a bad habit is developed through over indulgence, and many a good one by chastisement, therefore beat your son as well as your pupil; never indulge them. ("Spare the rod and spoil the child.")


श्लोकेन वा तदर्धन पादेनकाक्षरेण वा।

अवन्ध्यं दिवसं कुर्याद्दानाध्ययनकर्मभिः ।।


अर्थ- ऐसा एक भी दिन नहीं जाना चाहिए जब आपने एक श्लोक, आधा श्लोक, चौथाई श्लोक, या श्लोक का केवल एक अक्षर नहीं सीखा, या आपने दान, अभ्यास या कोई पवित्र कार्य नहीं किया।


Meaning- Let not a single day pass without your learning a verse, half a verse, or a fourth of it, or even one letter of it; nor without attending to charity, study and other pious activity.


कान्ता वियोगः स्वजनापमानि।

ऋणस्य शेष कुनृपस्य सेवा ।।

दरिद्रभावो विषमा सभा च ।

विनाग्निना ते प्रदहन्ति कायम् ।।


अर्थ- पत्नी का वियोग होना, अपने ही लोगों से बे-इजजत होना, बचा हुआ ऋण, दुष्ट राजा की सेवा करना, गरीबी एवं दरिदों की सभा ये छह बातें शरीर को बिना अग्नि के ही जला देती हैं।


Meaning- Separation from the wife, disgrace from one's own people, an enemy saved in battle, service to a wicked king, poverty, and a mismanaged assembly: these six kinds of evils, if afflicting a person, burn him even without fire.


नदीतीरे च ये वृक्षाः परगेहेषु कामिनी ।

मंत्रिहीनाश्व राजानः शीघ्रं नश्यन्त्यसंशयम् ।।


अर्थ- नदी के किनारे वाले वृक्ष, दूसरे व्यक्ति के घर में जाने अथवा रहने वाली स्त्री एवं बिना मंत्रियों का राजा, ये सब निश्चय ही शीघ्र नष्ट हो जाते हैं।


Meaning- Trees on a riverbank, a woman in another man's house, and kings without counselors go without doubt to swift destruction.


बलं विद्या च विप्राणां राज्ञा सैन्यबलं तथा।

बलंबित्तञ्चवैश्यानां शूद्राणां परिचर्यिका ।।


अर्थ- एक ब्राह्मण का बल तेज और विद्या है, एक राजा का बल उसकी सेना में है, एक वैशय का बल उसकी दौलत में है तथा एक शुद्र का बल उसकी सेवा परायणता में है।


Meaning- A brahmin's strength is in his learning, a king's strength is in his army, a vaishya's strength is in his wealth and a shudra's strength is in his attitude of service.


निर्धनं पुरुषं वेश्या प्रजा भग्नं नृपं त्यजेत् ।

खगा तिफलं वृक्ष भुक्त्वाचाभ्यागतोगृहम् ।।


अर्थ- वेश्या को निर्धन व्यक्ति को त्याग देती है, पराजित राजा को उसकी प्रजा त्याग देती है, पक्षी फल रहित वृक्षको त्याग देते हैं तथा भोजन करने के पश्चात् अतिथि मेजबान का घर छोड़ देते हैं। 


Meaning- The prostitute has to forsake a man who has no money, the subject a king that cannot defend him, the birds a tree that bears no fruit, and the guests a house after they have finished their meals.


गृहीत्वा दक्षिणां विप्रास्त्यजन्ति यजमानकम् ।

प्राप्तविद्या गुरुं शिष्या दग्धारण्यं मृगास्तथा ।।


अर्थ- ब्राह्मण दक्षिणा मिलने के पश्चात् अपने यजमानों को छोड़ देते है, विद्वान विद्या प्राप्ति के बाद गुरु को छोड जाते हैं और पशु जले हुए वन को त्याग देते हैं।


Meaning- Brahmins quit their patrons after receiving alms from them, scholars leave their teachers after receiving education from them, and animals desert a forest that has been burnt down.


दुराचारी दुरादृष्टिर्दुरावासी च दुर्जनः।

यन्मैत्रीक्रियते पुम्भिर्नर-शीघ्रं विनश्यति ।।


अर्थ- जो व्यक्ति दुराचारी, कुदृष्टि वाले, एवं बुरे स्थान पर रहने वाले मनुष्य केसाथ मित्रता करता है, वह शीघ्र नष्ट हो जाता है।

 

Meaning- He who befriends a man whose conduct is vicious, whose vision impure, and who is notoriously crooked, is rapidly ruined.


शेष अगले प्रसंग में ------

श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । 


- आरएन तिवारी

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