विधानाभा में सत्तापक्ष और विपक्ष के विधायकों के लिए कानून की व्याख्या अलग-अलग क्यों : जयंत चौधरी

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Nov 01, 2022

लखनऊ। राष्‍ट्रीय लोकदल (रालोद) के अध्यक्ष और राज्‍यसभा सदस्‍य जयंत चौधरी ने समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता मोहम्मद आजम खान की विधानसभा सदस्यता निरस्त किये जाने के मुद्दे पर उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर उनके ‘त्वरित न्‍याय की मंशा’ पर सवाल उठाया है। उन्होंने पूछा है कि क्या सत्ताधारी दल और विपक्ष के विधायक के लिए कानून की व्याख्या अलग-अलग तरीके से की जा सकती है? विधानसभा अध्यक्ष को 29 अक्टूबर को जयंत चौधरी के लिखे गये पत्र की प्रति मंगलवार को रालोद ने मीडिया के लिए जारी की।

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अध्यक्ष को संबोधित पत्र में जयंत चौधरी ने लिखा है विशेष एमपी-एमएलए अदालत में नफरती भाषण मामले में आपके कार्यालय द्वारा त्वरित फैसला लेते हुए समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मोहम्मद आजम खान की सदस्यता तत्काल प्रभाव से रद्द कर दी गयी है। उन्‍होंने आगे कहा जनप्रतिनिधित्व कानून लागू करने की आपकी सक्रियता की यद्यपि प्रशंसा की जानी चाहिए, किंतु पूर्व में घटित हुए ऐसे ही मामले में आप निष्क्रिय नजर आते हैं, तो आप जैसे त्वरित न्याय करने वाले की मंशा पर सवाल खड़ा होता है कि क्या कानून की व्याख्या व्‍यक्ति और व्‍यक्ति के मामले में अलग-अलग रूप से की जा सकती है।

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चौधरी ने मुजफ्फरनगर जिले के खतौली विधानसभा क्षेत्र के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक विक्रम सैनी का उदाहरण देते हुए पत्र में कहा है कि इस संदर्भ में आपका ध्यान मैं खतौली (मुजफ्फरनगर) से भाजपा विधायक विक्रम सैनी के प्रकरण की ओर आकृष्ट करना चाहूंगा, जिन्हें 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों के लिए विशेष एमपी-एमएलए अदालत द्वारा 11 अक्टूबर 2022 को जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत दो साल की सजा सुनाई गयी है। उस प्रकरण में आपकी ओर से आज तक कोई पहलकदमी नहीं की गयी है।’’ चौधरी ने पत्र में कहा कि सवाल यह है कि क्या सत्ताधारी दल और विपक्ष के विधायक के लिए कानून की व्याख्या अलग-अलग तरीके से की जा सकती है। यह सवाल तब तक अस्तित्व में रहेगा, जब तक आप भाजपा विधायक विक्रम सैनी के मामले में ऐसी पहलकदमी नहीं करते। उन्‍होंने उम्‍मीद जताते हुए कहा है कि आशा है कि आप मेरे पत्र का संज्ञान लेते हुए न्‍याय की स्‍वस्‍थ परंपरा के लिए विक्रम सैनी के प्रकरण में शीघ्र ही कोई ऐसा निर्णय अवश्‍य लेंगे जो सिद्ध करेगा कि न्याय की लेखनी का रंग एक सा होता है, भिन्‍न-भिन्‍न नहीं। गौरतलब है कि भड़काऊ भाषण मामले में तीन साल की सजा सुनाये जाने के एक दिन बाद शुक्रवार को समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान की उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई। उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय ने यह जानकारी दी। उत्तर प्रदेश विधानसभा के प्रधान सचिव प्रदीप दुबे ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि विधानसभा सचिवालय ने रामपुर सदर विधानसभा सीट को रिक्त घोषित कर दिया है। रामपुर की एमपी/एमएलए अदालत ने सपा नेता आजम खां को भड़काऊ भाषण देने के मामले में बृहस्पतिवार को दोषी करार देते हुए तीन साल कैद और छह हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के मुताबिक दो साल या उससे अधिक की सजा पाने वाले किसी भी व्यक्ति को ऐसी सजा की तारीख से सदन की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा और जेल की सजा पूरी करने के बाद छह साल तक वह अयोग्य रहेगा।

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