By इंडिया साइंस वायर | Jul 30, 2020
भारत में नाइट्रोजन अनुसंधान से जुड़े अग्रणी वैज्ञानिक प्रोफेसर यशपाल अबरोल का मंगलवार को निधन हो गया। वह 84 वर्ष के थे। प्रोफेसर अबरोल का निधन ऐसे समय में हुआ है जब दुनियाभर में नाइट्रोजन अनुसंधान कार्यों पर जोर दिया जा रहा है। ऐसे में, भारतीय नाइट्रोजन अनुसंधान से जुड़े एकप्रमुख वैज्ञानिक के निधन से इस अभियान को क्षति पहुँचना स्वाभाविक है।
प्रोफेसर अबरोल को प्राकृतिक संरक्षण से जुड़े उनके कार्यों के लिए विशेष रूप से याद किया जाएगा। उनके परिवार में उनकी पत्नी और दो बेटे हैं। सोसायटी फॉर कन्जर्वेशन ऑफ नेचर और सस्टेनेबल इंडिया ट्रस्ट जैसी संस्थाओं के संस्थापक के रूप में उन्होंने प्राकृतिक संरक्षण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया है। वह अंत समय तक इन संस्थाओं की देखरेख से जुड़े हुए थे।
सस्टेनेबल इंडिया ट्रस्ट के ट्रस्टी प्रोफेसर एन. रघुराम ने प्रोफेसर अबरोल के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। प्रोफेसर रघुराम ने कहा है कि “प्रोफेसर अबरोल को मुख्य रूप से भारत में नाइट्रोजन अनुसंधान में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए याद किया जाएगा।”
प्रोफेसर अबरोल पादप क्रिया विज्ञान और जैव रसायन विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी वैज्ञानिक के रूप में जाने जाते हैं। वर्ष 1995 में, नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से पादप क्रिया विज्ञान (Plant Physiology) विभाग के प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त होने के बावजूद वह लंबे समय तक वैज्ञानिक गतिविधियों से जुड़े हुए थे।
उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के फेलो के तौर पर काम किया और फिर वर्ष 1996 से 2000 तक वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) से वह एमेरिटस वैज्ञानिक के तौर पर जुड़े रहे। इसके अलावा, भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (इन्सा) में भी उनका जुड़ाव रहा। वर्ष 2001 से वर्ष 2006 तक वह इन्सा में वरिष्ठ वैज्ञानिक के तौर पर जुड़े रहे। अपने आखिरी वक्त तक वह इन्सा के साथ मानद वैज्ञानिक के तौर पर जुड़े थे।
चार राष्ट्रीय अकादमियों– नेशनल एकेडेमी ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज, इंडियन एकेडेमी ऑफ साइंस, इन्सा और नेशनल एकेडेमी ऑफ साइंसेज, इंडिया के फेलो रहे प्रोफेसर अबरोल को कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया है। 23 दिसंबर 1935 को लाहौर (मौजूदा समय में पाकिस्तान) में जन्मे अबरोल ने वर्ष 1963 में यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो से पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। भारत लौटने से पहले उन्होंने पोस्ट डॉक्टरल फेलो के रूप में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में भी काम किया। वह कनाडा की मैकमास्टर यूनिवर्सिटी से विजिटिंग साइंटिस्ट तौर पर जुड़े थे और फूड ऐंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के सलाहकार भी रहे।
प्रोफेसर अबरोल के 150 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किए गए हैं और उन्होंने 15 से अधिक किताबें लिखीं अथवा संपादित की हैं। मुख्य रूप से उन्हें सायनोजेनिक ग्लाइकोसाइड पर उनके उल्लेखनीय काम के लिए जाना जाता है। हरित क्रांति के वर्षों के दौरान रोटी/चपाती के लिए गेहूं की किस्मों की स्क्रीनिंग और गेहूं एवं जौ के लिए उनकी 'नाइट्रोजन' बैलेंस-शीट सुर्खियों में रही, जो भारत में उपयुक्त 'नाइट्रोजन' उर्वरक सिफारिशों का आधार बनी।
इंटरनेशनल नाइट्रोजन इनिशिएटिव के प्रमुख प्रोफेसर रघुराम बताते हैं कि “वर्ष 2017 में इंडियन नाइट्रोजन असेस्मेंट (Indian Nitrogen Assessment) को उनके हालिया योगदान के रूप में याद किया जाएगा, जिसने भारत को सतत् नाइट्रोजन प्रबंधन से संबंधित संयुक्त राष्ट्र के संकल्प में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया है।”
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