जनता नहीं, नेताओं की हिम्मत पस्त हो गयी थी इसीलिए खंडित भारत स्वीकार कर लिया

By राकेश सैन | Aug 15, 2021

देश स्वतन्त्रता के 75वें साल में प्रवेश करने जा रहा है। केंद्र सरकार ने इस अवसर पर अनेक योजनाएं घोषित की हैं और इस मौके पर देश भर में अनेक स्थानों पर कार्यक्रम, गोष्ठियां, विचार चर्चाएं होने वाली हैं। देश पौनी सदी के सफर का मूल्यांकन करेगा, इसी दौरान हमें यह भी सोचना है कि हमें आजादी के 75 साल होने के साथ-साथ विभाजन के भी इतने ही साल हो गए हैं। क्या 74 साल पहले हुआ विभाजन अब स्थाई हो गया या फिर इसका उन्मूलन भी हो सकता है ? देश के सामने यह प्रश्न खड़ा होना चाहिए, अखण्ड भारत की चर्चा केवल खण्डित भारत की भूमि में ही नहीं बल्कि उन क्षेत्रों में भी होनी चाहिए जो हमसे बिछड़ गए हैं।

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पहले आओ जानें कि अखण्ड भारत क्या है ? आजकल भारत कहने पर भी एक विशेषण लगाना पड़ता है ‘अखण्ड भारत’। जैसे ‘आदमी है’ इतना कहना पूरा नहीं पड़ता, ‘जिंदा आदमी है’ यह कहना पड़े। वैसे ही भारत कहने के बाद ‘अखण्ड भारत’। दूसरा शब्द है ‘खंडित भारत’। सामान्य लोगों की समझ में आए, इसलिए हम इस प्रकार के शब्द प्रयोग करते हैं। लेकिन भारत के विखंडन की बात वही मान सकते हैं जो भारत को केवल मात्र एक भौगोलिक इकाई मानते हैं।


भारत एक भौगोलिक इकाई मात्र नहीं है। वेदों में वर्णन है कि ‘हिमालय अपनी दोनों बाहु फैलाकर सारे भूमण्डल को अपने स्नेहपाश में बान्ध रहा है यानी हिमालय के दोनों ओर पूर्व और पश्चिम में जाएंगे तो उसकी भुजाएं दूर जाकर दक्षिण में मुड़ती हैं और सागर को स्पर्श करती हैं वहां तक की भूमि भारत है, भारत माता है।’


हम कहते हैं भारत माता हमको बनाने वाली है, सब-कुछ उसका दिया हुआ है। क्या यह मात्र एक भौगोलिक इकाई है ? हमारे लिए भारत ज़मीन का टुकड़ा नहीं है। हमारे लिए वह माता है और यह केवल तर्क की बात नहीं है। हमारे यहां महापुरुषों की परम्परा है जो जीवंत राष्ट्र को अनुभव करते हैं। यह जीता-जागता राष्ट्रपुरुष है। स्वामी रामतीर्थ कहते थे, ‘जब मैं चलता हूँ तो भारत चलता है।’ वह अपने शरीर के अंगों में भारत के अंगों का अनुभव करते थे। जिस दिन से भारत का विभाजन हुआ उस दिन से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक श्री गुरुजी जी के दोनों कन्धों में जो वेदना शुरू हुई वह आखिर तक बनी रही। यह कोई संयोग नहीं है कि वह कंधे का दर्द 15 अगस्त, 1947 से शुरू हो और अन्त तक कायम रहे। मातृभूमि से जो मन का तादात्म्य हुआ, उसके चिन्मय चेतनस्वरूप का अनुभव होने के नाते उसका निजी दुख बन जाता है।

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इस बात के कोई इन्कार नहीं कर सकता कि मुस्लिम लीग की गुण्डागर्दी के आधार पर और हमारी नादानी के चलते मातृभूमि का विभाजन हुआ। विभाजन का कारण—मुस्लिम मानसिकता है। जिस प्रकार वे अपने-आप को अलग मानकर इस देश में रहते थे। वही कारण था विभाजन का, लेकिन मुझे लगता है कि भारत विभाजन का कारण हिन्दुओं की कमज़ोरी है। आज हम पर जो आक्रमण हो रहे हैं ये नए हैं क्या ? हज़ारों साल से हमारी लड़ाई चल रही है। लड़ाइयाँ होती रहती हैं, जीत-हार चलती रहती है लेकिन हमने कभी हार नहीं मानी। जीत-हार होने के बाद भी हमने लड़ना नहीं छोड़ा। हमने हार नहीं मानी थी। तो ऐसा क्या हुआ कि 15 अगस्त, 1947 को हमने मान लिया कि हम हार गए।


यह जो भारत है, काबुल-जाबुल के पश्चिम से चिन्हवत नदी के पूर्व तक और तिब्बत के चीन की तरफ ढलान से श्रीलंका के दक्षिण तक की भूमि हमारी अखण्ड मातृभूमि है। उसका सौदा नहीं हो सकता। उसका बंटवारा नहीं हो सकता, परन्तु इस बात को हमने भुला क्यों दिया ? शान्ति के लिए ? विभाजन से शान्ति मिलती है क्या ? विभाजन किसी समस्या का उत्तर होता है क्या ? शान्ति के लिए विभाजन स्वीकार किया और उसी विभाजन के कारण भयंकर हिंसा हुई। अगर हम विभाजन नहीं होने देते तो उससे जो खून-खराबा होता उस से कई हजार गुणा ज्यादा हिंसा विभाजन के कारण हुई। विभाजन के बाद भी चार लड़ाइयां हुईं और अभी तक तकरार चल रही है। विभाजित भारत में भी हिन्दुओं और मुसलमानों के मन में परस्पर अविश्वास बना हुआ है। विभाजन किसी समस्या का उत्तर नहीं। क्यों हमारा दम फूल गया था ? आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले अपने नेताओं ने अपना दम बीच में क्यों छोड़ दिया ? कारण यही कि उनमें राष्ट्र जीवन की स्पष्ट कल्पना नहीं थी।


1876 में अफगानिस्तान भारत से अलग हुआ। 1876 से आज तक वहां का इतिहास देखिए। क्या अफगानिस्तान सुखी रह सका है? कोई भी अंग लीजिए, जो भारत से अलग हुआ, आज उसकी हालत खराब है। पाकिस्तान, बांग्लादेश, तिब्बत, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका, क्या ये सब सुखी हैं ? प्रश्न है कि भारत का अंग भारत से क्यों कटता है ? उत्तर है कि जब देश का कोई भाग हिन्दू भाव से हटता है। बाकी और भी कई कारण होंगे। कई प्रकार का इतिहास उस समय घटा होगा, लेकिन एक बात समान है-


हिन्दू भाव को जब जब भूले, आई विपदा महान। 

भाई टूटे धरती खोई, मिटे धर्म संस्थान।


हिन्दुओं की संख्या घटी या हिन्दुत्व के बारे में जागृति कम हुई तो देश बंटा। हम जात-पात में बंट गए और फिर चौहानों-राठौरों के झगड़े में गौरी ने बाज़ी जीत ली। यह दर्दनाक इतिहास हम क्यों देखते हैं ? हिन्दू भाव को भूलते हैं तब देखते हैं।


और यह हिन्दू भाव क्या है ? हिन्दू भाव है ‘विविधता में एकता’। इसका अर्थ है कि आपका भगवान, आपकी भाषा, रीति-रिवाज, खान-पान अलग होंगे फिर भी हम लोग साथ-साथ रह सकते हैं, क्योंकि एक ही सत्य का वर्णन हम लोग अलग-अलग तरीके से करते हैं। आपके सत्य का मैं सम्ïमान करता हूं और मेरे सत्य पर मैं अटल रहता हूँ। आप भी मेरे सत्य का उतना ही सम्मान करो और अपने सत्य पर अटल रहो तो झगड़ा किस बात का ? 


प्रश्न है कि हिन्दुत्व की उतकृष्ट विचारधारा होने के बावजूद अपना देश बंटा क्यों ? जवाब है कि देश की जनता की नहीं, लड़ने वाले सेनानियों की हिम्मत पस्त हो गई थी। खण्डित भारत हमारी उसी दुर्बलता का परिणाम है। हमने उन लोगों का कहना कैसे मान लिया जो कहते थे हमारा ही सही है, बाकी सब गलत हैं। एक होने के लिए एकरूपता आवश्यक है। विविधता में एकता नहीं चलती। हमने कैसे इसको मान लिया ? इस जीवन का उपभोग ही सब कुछ है और उसके लिए चाहे जो करो, भूमि को जीतो, दूसरों की महिलाओं का अपमान करो। ऐसा जिनका आचरण था ऐसे लोगों के सामने हमने सिर क्यों झुकाया ? उनके हाथों में हमने अपने पश्चिम व पूर्व के भाइयों को कैसे दे दिया ? विभाजन के समय डॉ. अम्बेडकर कह रहे थे कि यदि देश का बंटवारा करना ही है तो पहले हिन्दुस्थान में सब हिन्दुओं को इधर ले आओ और सब मुसलमानों को उधर भेजो, नहीं तो खूनखराबा होगा। हमारे नेताओं ने नहीं माना और खूनखराबा हुआ।

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मोल-भाव में जितना मनवा सकते थे, उतना हमने ले लिया; अगले साठ साल लड़ने का हमारा दम रहता तो क्या होता ? साठ साल की ज़रूरत नहीं थी। पूजनीय श्री गुरुजी ने गांधीजी को बताया था कि विभाजन के लिए आप छह महीना ‘हां’ मत भरिए। बाकी हम देख लेंगे। छह महीने की बात थी। पर हमारे नेताओं ने दम छोड़ दिया। उसका ही यह परिणाम है। भारत के कटे सभी अंग स्वयं भी दुख में जी रहे हैं और भारत के लिए भी सिर-दर्द बने हैं।


भारत क्यों टूटा? हिन्दुओं की दुर्बलता के चलते अलगाववादी मुसलमानों की नीतियां सफल हुईं। मुसलमानों की ये मनोवृत्तियां तो पूर्वगत एक हज़ार साल से मौजूद थीं लेकिन वे कुछ नहीं कर पाईं। जिस दिन हम हिन्दू दुर्बल हुए उस दिन वे सफल हुए। हिन्दुओं को संख्यात्मक और गुणात्मक दृष्टि से दुर्बल नहीं रहना चाहिए। हिन्दुकुश पर्वत के उस पार से या तिब्बत के उस पार से या चिन्हवत नदी के उस पार से जो एकाधिकारवादी आसुरी मनोवृत्तियां हैं, उनके आक्रमण का सामना करने के लिए हिन्दू को तो सुदृढ़ होकर खड़ा होना ही होगा।


पाकिस्तान सैटल फैक्ट नहीं, सैटल फैक्ट वह होता है जिसे भगवान ने बनाया है। गुण्डागर्दी के आगे घुटने टेक कर विभाजन स्वीकार कभी नहीं करने के सत्य को हम भूल गए। खून खराबे के भय से असत्य को मान लिया। अब जो हो रहा है उसे पिछले 74 सालों से देख रहे हैं। सत्य की धर्म भूमि पर आरूढ़ होकर निर्भय रूप से भारत माता की जय का उद्घोष करते हुए हिन्दू समाज जीने लगे और संपूर्ण अखण्ड भारत के भू-भागों में और समाजों में इस प्रकार की भूमिका बने तो अखण्ड भारत का सत्य अवतरित होगा। यह भारत सहित दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए और संपूर्ण दुनिया के लिए भी अच्छा होगा। देश उस दिन वास्तविक स्वतन्त्रता का अनुभव कर पाएगा।


- राकेश सैन

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