By अभिनय आकाश | Jun 11, 2022
आज कल जब भी कोई नया विवाद उठता है या फिर मुसलमानों के सरोकार की बात होती है तो एक नाम आप जरूर सुनते हैं वो है ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड। ज्ञानवापी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जिला कोर्ट को मामला ट्रांसफर करने और फिर मथुरा, आगरा व दिल्ली के कुतुब मीनार परिसर में मंदिर के अदालत में किए जा रहे दावों के बीच एक बार फिर से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड चर्चा में आया। बोर्ड की तरफ से मस्जिद से जुड़े सभी मुकदमों के लिए एक लीगल कमिटी बनाई जो ये कमिटी इस तरह के मामलों में जरूरी कार्रवाई करेगी। वहीं हाल ही में एआईएमपीएलबी ने उलमा व बुद्धिजीवियों से टीवी डिबेट में शामिल न होने की अपील की हैं। बोर्ड ने ऐसे लोगों से कहा है कि डिबेट में शामिल होकर इस्लाम व मुसलमानों के अपमान की वजह न बनें। ऐसे में आइए जानते हैं कि क्या है ये बोर्ड, इसका गठन कब हुआ और क्यों हुआ? किस तरीके से ये काम करता है।
क्या है मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भारत में मुसलमानों की ऐसी प्रतिनिधि संस्था मानी जाती है जो मुसलमानों के मुद्दों के निपटारे के लिए मुस्लिम कानून या शरीयत की वकालत करती है। भारत में मुसलमानों से जुड़े सिविल मामले मुस्लिम पर्सनल लॉ शरीयत एक्ट 1937 से परिचातित किए जाते हैं। ये मुसलमानों की शादी, मेहर, तलाक, मेंटेनेंस, वक्फ, प्रॉपर्टी और विरासत से जुड़े होते हैं। मुसलमानों के अनुसार शरीयत में इन मुद्दों से जुड़े तमाम सवालों के जवाब दिए गए हैं। इसलिए इनके निपटारे भी शरीयत के जरिये ही होने चाहिए।
क्यों और कैसे हुई इसकी स्थापना?
पर्सनल लॉ बोर्ड की स्थापना साल 1972 में हुई। कांग्रेस की उस वक्त की सरकार की तरफ से बच्चों को गोद लेने के लिए एक कानून संसद के जरिये ला रही थी। कांग्रेस सरकार के कानून मंत्री एचआर गोखले थे। लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ में बच्चे को गोद लेने की कोई वैधता नहीं है। मुसलमानों का कहना था कि परवरिश की नजर से तो बच्चे को गोद लिया जा सकता है, लेकिन गोद लेने वाले माता-पिता का नाम उसे नहीं मिल सकता है। पैतृत संपत्ति में भी इसका कोई अधिकार नहीं बनता। इस संशोधन कानून के बारे में उस समय के उलेमा को लगा कि इसके जरिए इस्लाम धर्म के अनुयायियों पर बच्चे को गोद लेने के प्रावधान लादे जाएंगे जो शरीयत के खिलाफ होगा। मुसलमानों की तरफ से हुकूमत को प्रस्ताव दिया था कि इससे हमें राहत दी जाए। लेकिन जब बात नहीं मानी गई तो मुसलमानों की जितनी बड़ी-बड़ी संस्थाएं थी सब बम्बई में जमा हुए। उस वक्त तो सरकार ने अपने कदम वापस ले लिए थे, लेकिन उसी से यह बात निकली कि शरीयत में हस्तक्षेप करने की कोशिशें आगे भी हो सकती हैं। इसलिए जरूरी है कि कोई ऐसी संस्था हो, जो इस पर सतत निगरानी रखे। तब उन्होंने फैसला किया कि शरीयत को बचाने के लिए एख अपेक्स बॉडी बनानी चाहिए। यह बोर्ड शिया- सुन्नी और सुन्नियों में जितनी शाखाएं हैं, उन सबकी नुमाइंदगी करता है। उनके प्रतिनिधि बोर्ड के सदस्य होते हैं। बतौर सदस्य हाल के वर्षों में इसमें महिलाओं की नुमाइंदगी बढ़ाई गई है। अक्सर विवादों में रहने के बावजूद इसके खाते में कई अच्छे काम भी दर्ज हैं। बोर्ड कन्या भ्रूण हत्या, शादियों में दहेज और दूसरे गैर जरूरी खर्च के खिलाफ जागरूकता अभियान भी चला रहा है।
एआईएमपीएलबी का नेतृत्व कौन करता है
पर्सनल लॉ बोर्ड का दावा है कि यह भारत में बसे सभी मुसलमानों (विदेशी अशरफ और स्वदेशी पसमांदा) की प्रतिनिधि सभा है। जो शरिया द्वारा निर्धारित उनके व्यक्तिगत और सामाजिक मूल्यों की देखभाल करने के लिए काम करती है। इसके अलावा बोर्ड मुसलमानों की ओर से न केवल देश के बाहरी और आंतरिक मामलों पर अपनी राय देता है, बल्कि राष्ट्रव्यापी आंदोलन, सेमिनार और बैठकों के माध्यम से उन्हें लागू भी करता है। यदि हम संगठनात्मक संरचना को देखें, तो AIMPLB ने मसलकों (एक ही संप्रदाय के तहत विभिन्न समूहों / विचारधाराओं) और फ़िरक़ा (विभिन्न संप्रदायों) के बीच अंतर को स्वीकार किया है और उनकी आबादी के आधार पर, विभिन्न मसलकों के उलेमाओं (विद्वानों) को प्रतिनिधित्व दिया है। हालांकि बोर्ड के अध्यक्ष हमेशा सुन्नी संप्रदाय के देवबंदी/नदवी स्कूल से आते हैं। यह भारत में सर्वविदित है कि सुन्नी इस्लाम का सबसे बड़ा संप्रदाय हैं और देवबंदी/नदवी समुदाय सबसे प्रभावशाली हैय़ हालांकि वे बरेलवी सुन्नियों से अधिक नहीं हैं। बोर्ड के उपाध्यक्ष हमेशा शिया संप्रदाय से होते हैं, हालांकि शिया सुन्नी संप्रदाय के सबसे छोटे फ़िरक़ा से कम संख्या में हैं। लेकिन वैचारिक रूप से शियाओं को सुन्नियों के बराबर माना जाता है।
कौन-कौन इससे जुड़े
मौजूदा वक्त में एआईएमपीएलबी को एक अध्यक्ष, 5 उपाध्यक्ष, एक महासचिव, 4 सचिव, एक कोषाध्यक्ष और 39 सदस्य मिलकर चलाते हैं। संस्था मॉडल निकाहनामा भी लागू कर चुकी है। संस्था के मौजूदा अध्यक्ष मौलाना राबे हसनी नदवी के अलावा उपाध्यक्ष, सचिव और सदस्य के रूप में मौलाना कल्बे सादिक, एडवोकेट जफरयाब जिलानी, असदउद्दीन औवेसी, कमाल फारुकी, मौलाना महमूद मदनी और मौलाना राशिद फिरंगी महली भी जुड़े हुए हैं।
सीएए से लेकर कोर्ट के फैसलों तक पर उठाते हैं सवाल
समान नागरिक संहिता और परिवार नियंत्रण कार्यक्रम अमली जामा नहीं पहन सका है। यह लोग अयोध्या पर कोर्ट के फैसले पर उंगली उठाते हैं तो हिजाब पर कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसले पर भी सियासी रंग चढ़ा देते हैं। यही लोग सीएए और एनआरसी के खिलाफ लोगों को बरगलाते हैं। हाल ही में हिजाब को लेकर बवाल भी ऐसी सोच वालों की ही देन थी। देश के मुसलमान अपने धार्मिक रीति-रिवाजों के मामले में वर्ष 1857 और 1947 से भी ज्यादा मुश्किल हालात से गुजर रहे हैं। ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने देश के सभी जिलों में दारुल कजा यानी शरिया अदालत खोलने की बात कही थी। जहां इस्लाम के कानून यानी शरीयत के हिसाब से मामलों को सुना जाएगा।