By अनन्या मिश्रा | Jan 27, 2024
भारत मां को वीर सपूतों की जननी कहा जाता है। इन वीर सपूतों ने देश को आजाद कराने के लिए अपनी जान की परवाह किए बिना अपने प्राणों का बलिदान दिया। ऐसे में ही एक स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय थे। लाला लाजपत राय को 'शेर-ए-पंजाब' भी कहा जाता है। देश को आजादी दिलाने के साथ ही लाला लाजपत राय मे लक्ष्मी बीमा कंपनी और पंजाब नेशनल बैंक की स्थापना की थी। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक थे। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर लाला लाजपत राय के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
पंजाब के फिरोजपुर में 28 जनवरी 1865 को लाला लाजपत राय का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम मुंशी राधा कृष्ण आजाद था और वह फारसी और उर्दु के महान विद्वान थे। वहीं उनकी मां गुलाब देवी धार्मिक प्रवत्ति की महिला थी। शुरूआत से ही वह लेखन और भाषण में काफी रुचि लेते थे। लाला लाजपत राय ने कुछ समय हरियाणा के रोहतक और हिसार आदि शहरों में वकालत की। आपको बता दें कि उनको 'शेर-ए-पंजाब' नाम से सम्मानित किया था और उनको गरम दल का नेता माना जाता था। वह स्वावलंबन से स्वराज्य लाना चाहते थे।
अंग्रेजों के खिलाफ बगावत
आपको बता दें कि साल 1897 और 1899 में देश में अकाल पड़ गया था। इस दौरान लाला लाजपत राय ने तन, मन और धन से पीड़ितों की सेवा की थी। जब देश में भूकंप और अकाल के दौरान ब्रिटिश शासन की तरफ से कोई व्यवस्था नहीं की गई, तो उन्होंने स्थानीय लोगों की मदद से अनेकों जगहों पर अकाल में शिविर लगाकर लोगों की सेवा की। वहीं साल 1905 में बंगाल विभाजन के दौरान लाला लाजपत राय, सुरेंद्रनाथ बनर्जी और विपिनचंद्र पाल जैसे आंदोलनकारियों ने ब्रिटिश शासन की नाक में दम कर दिया।
लाल-बाल और पाल की इस तिकड़ी को जनता का समर्थन मिल रहा था। साथ ही इस तिकड़ी ने देश को आजाद कराने के लिए जो नए-नए प्रयोग किए थे वह सब अपने आप में नायाब थे। वहीं लाल-बाल और पाल की इस तिकड़ी ने अंग्रेजों के रात की नींद हराम कर दी थी। वहीं साल 1917 में लाला लाजपत राय अमेरिका पहुंचे। उन्होंने न्यूयॉर्क शहर में इंडियन होम रूल लीग ऑफ अमेरिका नाम से एक संगठन की स्थापना की थी।
इस संगठन के जरिए वह लगातार स्वाधीनता की चिंगारी को हवा देते रहे। जब तीन साल बाद साल 1920 को लाला लाजपत राय भारत वापस लौटे, तब तक वह भारतीयों के लिए एक महान नायक बन चुके थे। कांग्रेस के खास सत्र की अध्यक्षता करने के लिए लाजपत राय को आमंत्रित किया गया। वहीं जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ पंजाब में उग्र प्रदर्शन किया। वहीं जब साल 1920 में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन छेड़ा तो लाजपत राय ने पंजाब में इस आंदोलन का नेतृत्व किया और कांग्रेस इंडिपेंडेंस पार्टी बनाई।
साइमन कमीशन का विरोध
जब 3 फरवरी 1928 को साइमन कमीशन भारत पहुंचा, तो लालाजी भी अन्य विरोधिय़ों के साथ इस कमीशन का विरोध करने लगे। इसका पूरे देश में काफी जबरदस्त विरोध देखने को मिला। भारत में साइमन कमीशन के आने के साथ ही इसके विरोध की आग भी पूरे देश में फैल गई। लोग इसके विरोध में सड़कों पर निकलने लगे और देखते ही देखते पूरा देश 'साइमन गो बैक' के नारों से गूंज उठा।
क्रांतिकारियों ने 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध में एक विरोध प्रदर्शन का आयोजन कर रखा था। इस आंदोलन का नेतृत्व लाला लाजपत राय कर रहे खे। इस प्रदर्शन में उमड़े जनसैलाब को देखकर ब्रिटिश सेना बुरी तरह से बौखला उठी। जनसैलाब को हटाने के लिए अंग्रेजों द्वारा लाठीचार्ज किया गया। जिसमें युवाओं को अंग्रेज सैनिकों द्वारा बुरी तरह से पीटा गया। इस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय भी बुरी तरह से जख्मी हो गए थे।
मौत
लाठी चार्ज में बुरी तरह से घायल हुए लाजपत राय का स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ने लगा। वहीं 17 नवंबर 1928 को भारत मां के इस वीर सपूत ने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया। बता दें कि चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव आदि क्रांतिकारी लाला लाजपत राय को अपना आदर्श मानते थे। जब इन क्रांतिकारियों को पता चला कि अंग्रेजों की लाठीचार्ज के कारण लालाजी की मौत हो गई, तो गरम दल के नेताओं ने उनकी मौत का बदला लेने के लिए 17 दिसंबर 1928 को ब्रिटिश पुलिस अफसर सांडर्स की गोली मारकर हत्या कर दी गई।