By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Sep 29, 2020
नयी दिल्ली। श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने सोमवार को संसद में पिछले सप्ताह पारित श्रम संहिताओं को लेकर व्यक्त की जा रही शंकाओं को दूर करते हुये इन संहिताओं को एतिहासिक और व्यापक बदलाव लाने वाला सुधारवादी कानून बताया। इसमें कहा गया है, ‘‘इनको लेकर जो आलोचनायें की जा रहीं हैं वह पूरी तरह से निराधार है।’’ कारखानों में काम बंद करने के मामले में इकाइयों में कर्मचारियों की न्यूनतम सीमा को 300 किए जाने के संबंध में स्पष्टीकरण देते हुए मंत्रालय ने कहा है विभाग से संबंधित संसदीय स्थायी समिति ने छंटनी, कामबंदी तथा बंदी के लिए सरकार की पूर्वानुमति लेने के मामले में कामगारों की तय सीमा को 100 से बढ़ाकर 300 करने की सिफारिश की थी। यह प्रावधान केवल सरकार से पूर्वानुमति लेने के मामले में एकमात्र पहलु है। इसमें अन्य लाभ तथा कामगारों के अधिकारों को संरक्षित किया गया है। कामगारों के अधिकार तथा छंटनी से पूर्व नोटिस, सेवा के प्रत्येक पूरे किए गए वर्ष के लिए 15 दिनों के वेतन की दर से प्रतिपूर्ति तथा नोटिस अवधि के बदले में वेतन देने के बारे में कोई समझौता नहीं किया गया है। इसके अलावा, औद्योगिक संबंध संहिता में नवसृजित पुनर्कौशल निधि के अंतर्गत 15 दिनों के वेतन के समान अतिरिक्त आर्थिक लाभ की संकल्पना की गई है।
वक्तव्य में कहा गया है कि ऐसा कोई व्यावहारिक दृष्टांत नहीं है जिसमें यह पता चलता है कि कामबंदी के मामले में पूर्वानुमति लेने संबंधी प्रावधान में कर्मचारियों की सीमा बढ़ाये जाने से उद्योगों में ‘हायर एवं फायर’ को बढ़ावा मिलता है। मंत्रालय ने यह भी कहा है कि आर्थिक सर्वेक्षण, 2019 में भारतीय कंपनियों की मौजूदा लघु संरचना (ड्वार्फिज्म) की पीड़ा का विश्लेषण किया गया है। लघु संरचना से आशय उन कंपनियों से है जो 10 वर्षों से अधिक समय से चल रही हैं लेकिन रोजगार में वृद्धि के रूप में उनमें कोई प्रगति नहीं हुई है। औद्योगिक विवाद अधिनियम के अंतर्गत 100 कामगारों की तय सीमा को रोजगार सृजन के अवरोधकों में से एक पाया गया है। यह भी देखा गया है कि श्रम विधानों के अंतर्गत अवसीमा नकारात्मक प्रभाव डालती हैं जिससे कि कंपनियां आकार में छोटी रह जाती हैं। राजस्थान में वर्ष 2014 के दौरान उन कंपनियों के मामले में जिनमें 300 से कम कामगार नियोजित हैं उनमें अवसीमा को 100 से बढ़ाकर 300 किया गया था तथा छंटनी इत्यादि से पहले पूर्वानुमति की अपेक्षा को समाप्त कर दिया गया था।
सीमा में वृद्धि से राजस्थान में पड़ने वाले प्रभाव यह दर्शाते हैं कि राजस्थान में उन कंपनियों की औसत संख्या, देश के अन्य क्षेत्रों की तुलना में काफी बढ़ी है जिनमें 100 से अधिक कामगार नियोजित हैं तथा उन कारखानों में उत्पादकता में भी काफी वृद्धि हुई है। 15 अन्य राज्यों में पहले ही अवसीमा को बढ़ाकर 300 कामगार तक कर दिया गया है। मंत्रालय ने यह भी कहा कि औद्योगिक संबंध संहिता के पारित होने से पूर्व राजस्थान के उदाहरण का अनुसरण करते हुए राजस्थान सहित 16 राज्यों ने औद्योगिक विवाद अधिनियम के अंतर्गत पूर्वानुमति लेने के मामले में कर्मचारी सीमा 100 कामगार से 300 कामगारों कर दी है। इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मेघालय, ओडिशा शामिल हैं।
मंत्रालय ने किसी तय अवधि के लिये काम पर रखने के साथ ‘हायर और फायर’ शुरू होने की अफवाहों को दरकिनार करते हुए कहा है कि निर्धारित अवधि का नियोजन केन्द्र सरकार तथा 14 अन्य राज्यों द्वारा पहले ही अधिसूचित किया जा चुका है। इन राज्यों में असम, बिहार, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड (परिधान एवं मेड-अप), कर्नाटक, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश (वस्त्र एवं ईओयू) तथा उत्तराखण्ड शामिल हैं। मंत्रालय ने जोर देकर कहा कि निर्धारित समयसीमा के लिये नियुक्ति कामगार-समर्थक है। इससे रोजगार के लिए ठेकेदार के माध्यम से जाने के बजाय कामगार या कर्मचारी के साथ सीधे तय समयसीमा के लिये नियुक्ति का ठेका करना संभव होगा। ऐसे आरोप लगाए गए हैं कि ठेकेदार न्यूनतम मजदूरी और अन्य पात्र लाभों जैसे ईपीएफ, ईएसआईसी के संबंध में नियोक्ता से तो पूरी राशि वसूल करते हैं लेकिन इसे ठेका श्रमिकों को नहीं पहुँचाते हैं।
अंतर-राज्यीय प्रवासी कामगार की परिके बारे में वक्तव्य में कहा गया है कि अंतर-राज्यीय प्रवासी कामगार अधिनियम, 1979 को ओएसएच कोड में शामिल कर लिया गया है। पूर्ववर्ती अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों को ओएसएच कोड में और अधिक सशक्त किया गया है। इस संबंध में, मंत्रालय ने प्रवासियों सहित असंगठित कामगारों का नामांकन करने के लिए राष्ट्रीय डेटाबेस विकसित करने के भी उपाय किए हैं, जो अन्य बातों के साथ-साथ परस्पर प्रवासी कामगारों को नौकरी दिलाने, उनका कौशल मापन करने और अन्य सामाजिक सुरक्षा लाभ दिलाने में सहायक होगा। यह सामान्य रूप से असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए बेहतर नीति निर्माण में भी सहायक होगा।
महिलाओं के लिए रात की पालियों की अनुमति के प्रावधान की आलोचना के बारे में, केन्द्रीय श्रम मंत्री ने कहा है कि यह स्पष्ट रूप से गलत है क्योंकि ओएसएच कोड नए भारत में लैंगिक समानता पर आधारित है। इस कोड में यह परिकल्पना कि गई है कि महिलाएं सभी प्रकार के कार्यों के लिए सभी प्रतिष्ठानों में नियोजित किए जाने की पात्र होंगी तथा उन्हें रात के दौरान भी काम पर लगाया जा सकता है।रात में महिलाओं को नियोजन के लिए उनकी सहमति को अनिवार्य बनाया गया है। इसके अलावा,सरकारें महिलाओं को रात में काम करने की अनुमति देने से पहले सुरक्षा, अवकाश और कार्य के घंटों की शर्तें निर्धारित करेगी।
मंत्रालय ने यह भी कहा कि श्रमजीवी पत्रकारों के प्रावधान इन्हें सशक्त करने के लिए बनाए गए हैं। इनमें इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया में कार्यरत पत्रकारों को शामिल करने के लिए श्रमजीवी पत्रकारों की परिका विस्तार करना तथा “श्रमजीवी पत्रकारों”के लिए सेवा अवधि के कम-से-कम ग्याहरवें हिस्से के बराबर पूर्ण वेतन के समतुल्य अर्जित छुट्टी की अनुमति देना शामिल है। इन छुट्टियों का संचय किया जा सकता है और संचित छुट्टियों का नकदी मुआवजा लिया जा सकता है या ये छुट्टियां ली जा सकती हैं। इसमें आगे कहा गया कि श्रमजीवी पत्रकारों के कल्याण हेतु मौजूदा प्रावधानों को कायम रखा गया है। सामाजिक सुरक्षा संहिता और ओएसएच कोड में अंतर-राज्यीय प्रवासी कामगारों की परिसमान है। मजदूरी संबंधी संहिता के अंतर्गत बनाए गए प्रारूप नियमों में श्रमजीवी पत्रकार एवं अन्य समाचार-पत्र कर्मी (सेवा शर्तें) और विविध प्रावधान अधिनियम, 1955 की धारा 2 के खण्ड (एफ) में यथा परिभाषित श्रमजीवी पत्रकार के लिए संहिता के अंतर्गत न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने के लिए श्रमजीवी पत्रकार की तकनीकी समिति के गठन का प्रावधान है। सामाजिक सुरक्षा संहिता के अंतर्गत, श्रमजीवी पत्रकार के लिए ग्रेच्युटी की पात्रता बनाकर नहीं रखी गई है लेकिन पात्रता की अवधि में सुधार करके अन्यों के लिए पांच वर्षों के बजाय सेवा की अवधि तीन वर्ष तक कर दी गई है।
मंत्रालय ने यह भी कहा कि ओएसएच संहिता के तहत नए कल्याणकारी प्रावधान पेश किए गए हैं – जोखिमपूर्ण और खतरनाक व्यवसाय चलाने वाले प्रतिष्ठान के लिए, सरकार तय सीमा से कम कामगार रखने वाले प्रतिष्ठानों पर भी कवरेज को अधिसूचित कर सकती है। ईएसआईसी का विस्तार बागान कामगारों तक कर दिया गया है। नियुक्ति पत्र अनिवार्य कर दिया गया है।नि:शुल्क वार्षिक स्वास्थ्य चेकअप आरम्भ किया गया है। जोखिमकारी फैक्ट्रियों के स्थान पर फैक्ट्री, खानों और बागानों में प्रतिष्ठानों के लिए द्विपक्षीय सुरक्षा समिति शुरू की गई है। कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे बागान कामगारों की गतिविधियों को जोखिमकारी गतिविधियों में शामिल किया गया है। इसके साथ ही अंतर-राज्यीय प्रवासी कामगार से संबंधित प्रावधानों को सुदृढ़ बनाना और गृह नगर जाने हेतु वार्षिक यात्रा भत्ता के प्रावधान को शामिल किया गया है।
मंत्रालय ने यह भी कहा है कि विकेंद्रीकृत पंजीकरण प्रक्रिया आरम्भ करने से ट्रेड यूनियनों की स्थिति मजबूत हुई है। मंत्रालय ने 14 दिन की नोटिस अवधि के विषय से संबंधित अफवाहों को निराधार बताया है। इसमें कहा गया है कि हड़ताल पर जाने से पूर्व यह श्रमिक की शिकायत का समाधान करने का एक और अवसर प्रदान करते हैं ताकि प्रतिष्ठान अनिवार्य रूप से मुद्दों का समाधान ढूंढ़ पाए।