शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 07 अक्टूबर (गुरुवार) से हो चुकी है। नवरात्रि पर्व के नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों के पूजन का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार इन नौ दिनों में नवदुर्गा को पूजा-उपासना से प्रसन्न करके मनवांछित फल प्राप्त किए जा सकते हैं। प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के साथ ही नवरात्रि पूजन की शुरुआत हो जाती है। नवरात्रि में हर दिन का अपना एक अलग महत्व है और अलग-अलग दिनों में माँ दुर्गा के अलग-अलग स्वरुपों की उपासना से अलग फल मिलते हैं। नवरात्रि के प्रथम दिन माता शैलपुत्री के पूजन के साथ ही यह पर्व शुरू हो जाता है और अंतिम दिन यानि नवमी के दिन माता सिद्धिदात्री के पूजन के साथ नवरात्रि पूजन समाप्त होता है। नवरात्रि में अष्टमी और नवमी तिथि का विशेष महत्त्व है क्योंकि इन दोनों दिन भक्त अपने घरों में कन्या पूजन करते हैं। शारदीय नवरात्रि में नवमी के बाद दशमी तिथि को दशहरा पर्व मनाया जाता है। कई वर्षों से ऐसा हो रहा है कि नवरात्रि में एक दिन कम होता है। ऐसी स्थिति में भक्तों के मन में इस बात को लेकर संशय रहता है कि नवरात्रि के बाद हवन और कन्या पूजन किस दिन किया जाए। आज के इस लेख में हम आपको बताएँगे कि इस बार अष्टमी, नवमी और दशमी तिथि किस दिन है-
कब है अष्टमी, नवमी और दशमी
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार अष्टमी तिथि 12 अक्टूबर रात 9 बजकर 47 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 13 अक्टूबर रात्रि 8 बजकर 6 मिनट तक रहेगी।
अष्टमी तिथि मानने वाले लोग 13 अक्टूबर को बुधवार के दिन व्रत रखेंगे और कन्या पूजन करेंगे।
इसके बाद नवमी तिथि लग जाएगी, जो कि 13 अक्टूबर रात 8 बजकर 7 मिनट से लेकर 14 अक्टूबर शाम 6 बजकर 52 मिनट तक रहेगी। नवमी मानने वाले लोग गुरुवार, 14 अक्टूबर को पूजन करेंगे।
इसके बाद 15 अक्टूबर को दशहरा का पर्व मनाया जाएगा। दशमी तिथि 14 अक्टूबर को शाम 06 बजकर 52 बजे से शुरू होकर 15 अक्टूबर शाम 06 बजकर 02 बजे तक रहेगी।
अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन का है विशेष महत्व
नवरात्रि के बाद अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व है। इस दिन छोटी कन्याओं को माता का रूप मानकर उनका पूजन किया जाता है और उन्हें भोजन करवाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि नवरात्रि के बाद कन्या पूजन करने से माता प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को सुख-समृद्धि और दीर्घायु का आशीर्वाद देती हैं। वहीं कई लोग अष्टमी या नवमी के बजाय नवरात्रि के बीच में ही किसी दिन कन्या पूजन कर देते हैं जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए। कन्या पूजन हमेशा नवरात्रि समाप्त होने के बाद अष्टमी या नवमी तिथि के दिन ही करना चाहिए। नवरात्रि के बीच में ही कन्या पूजन कर देने से नवरात्रि पूजन और व्रत का पूर्ण फल नहीं मिल पाता है। नवरात्रि के बीच में ही कन्या पूजन कर देना का मतलब यह भी बनता है कि आपने नवरात्रि समाप्त होने से पहले ही माता की विदाई कर दी। इसलिए कन्या पूजन हमेशा अष्टमी या नवमी के दिन ही करना चाहिए।
- प्रिया मिश्रा