जानिए, कोर्ट मैरिज और सिविल मैरिज में क्या अंतर है? इसके क्या-क्या लाभ हैं?

By कमलेश पांडे | Aug 10, 2024

भारत में हिंदू धर्म से लेकर अन्य धर्मों तक में शादी-विवाह को लेकर विभिन्न प्रकार के रीति-रिवाज बनाए गए हैं, जिनका सामाजिक प्रचलन बहुत ज्यादा है। लिहाजा, इन्हीं मान्यताओं और परम्पराओं के तहत भारतीय युवक और युवती का विवाह संपन्न होता है। जहां हिंदू धर्म में अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लिए जाते हैं, वहीं मुस्लिम संप्रदाय में मौलवी के द्वारा निकाह पढ़ा जाता है। इसी तरह से अन्य धर्मों में भी शादी-विवाह को लेकर अलग-अलग नियम बने हुए हैं, जो प्रचलित हैं। वहीं, धर्म के साथ-साथ हमारे संविधान में भी इसको लेकर कई नियम कानून बनाए गए हैं, जिसके तहत शादी-शुदा लोगों के बीच बहुधा उतपन्न होने वाली समस्याएं सुनी जाती हैं।


भारत में एक-दूसरे विपरीत लिंगी से शादी-विवाह करने को लेकर भी कई कानून बनाए गए हैं, जिनमें कोर्ट मैरिज और सिविल मैरिज प्रमुख हैं। हालांकि, बहुतेरे लोगों को ये दोनों नियम कानून एक ही लगते हैं। लेकिन आपको पता होना चाहिए कि यह दोनों अलग कानून है। इस विषय को लेकर मैंने सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता सुधांशु चौधरी से बात की और यह समझने का प्रयास किया कि इन दोनों कानूनों का वैधानिक अधिकार क्या है और ये हमारे समाज और परंपरा को किस हद तक प्रभावित करते हैं।

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# समझिए, सिविल मैरिज और कोर्ट मैरिज में क्या है अंतर


कोर्ट मैरिज और सिविल मैरिज को लेकर अधिवक्ता सुधांशु चौधरी ने बताया कि मैरिज एक्ट 1954 के मुताबिक, कोर्ट मैरिज एक या अन्य जाति, धर्म के युवक-युवती के बीच न्यायालय में होता है। जबकि सिविल मैरिज दो लोगों की आपसी सहमति से बिना कोर्ट की मदद से गांव-समाज में प्रचलित परम्पराओं के तहत होती है। हमारे देश में प्रावधान है कि विवाहित जोड़ी यानी कपल किसी भी सक्षम सरकारी ऑफिस में जाकर सिविल मैरिज कर अपनी शादी-विवाह को रजिस्टर करवा सकता है।


# जानिए, क्या होता है कोर्ट मैरिज में 


कोर्ट मैरिज बिना किसी परंपरागत समारोह व रीति-रिवाज के न्यायालय में मैरिज ऑफिसर के सामने कराई जाती है। यह विवाह स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत संपन्न कराई जाती है। कोर्ट मैरिज किसी भी जाति, धर्म, संप्रदाय के बीच के युवक-युवती के बीच पारस्परिक सहमति के बाद हो सकती है। यहां तक कि इसमें एक विदेशी युवक-युवती और दूसरा इंडियन युवक-युवती भी हो सकता है। खास बात यह है कि इस तरह के मैरिज में किसी भी प्रकार की धार्मिक पद्धति या रीति-रिवाज नहीं अपनाई जाती है। कोर्ट मैरिज में रजिस्ट्रार के सामने सिर्फ तीन गवाहों की मौजूदगी अनिवार्य होती है। शर्त बस यह कि ऐसी शादी-विवाह के लिए आवेदन करने वाले युगल जोड़ी (कपल) में से किसी की भी पहले से शादी नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा, दूल्हे की उम्र 21 वर्ष और दुल्हन की उम्र 18 साल से कम नहीं होनी चाहिए। इन पात्रताओं को पूरा करने के बाद कोर्ट मैरिज में किसी को दिक्कत नहीं आती है।


# जानिए, क्या होता है सिविल मैरिज में


वहीं, सिविल मैरिज के अंतर्गत युगल जोड़ी (कपल्स) बिना किसी न्यायालय के ही शादी-विवाह कर सकते हैं। इस प्रकार के विवाह के दौरान दो लोगों की सहमति सबसे ज्यादा महत्व रखती है। इसके अंतर्गत आप किसी भी सक्षम सरकारी कार्यालय में जाकर शादी-विवाह कर सकते हैं। इस तरह के विवाह में प्रमाण पत्र (सर्टिफिकेट) आवश्यक होता है। इस तरह से संपादित सिविल विवाह को भी कानून द्वारा मान्यता प्राप्त है। यह युगल जोड़ी मतलब कपल्स को कानूनी सुरक्षा और लाभ प्रदान करता है। इसमें संपत्ति का अधिकार, विरासत लाभ, कर लाभ, स्वास्थ्य सेवा और अन्य लाभ भी शामिल है।


# जानिए, कोर्ट मैरिज में किन-किन डॉक्यूमेंट्स की होती है जरूरत


पहला, कंप्लीट आवेदन पत्र।

 

दूसरा, कोर्ट मैरिज के लिए लगने वाली फीस, जो हर राज्य में अलग-अलग होती है।

 

तीसरा, दूल्हा-दुल्हन के पासपोर्ट साइज चार-चार फोटोग्राफ।

 

चौथा, पहचान प्रमाण पत्र के रूप में आधार कार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस की कॉपी।

 

पांचवां, जोड़े की दसवीं या बारहवीं की मार्क्सशीट।

 

छठा, लड़का-लड़की दोनों के जन्म-प्रमाण पत्र (बर्थ सर्टिफिकेट)।

 

सातवां, शपथ पत्र, जिससे यह साबित हो कि दूल्हा-दुल्हन में कोई भी किसी अवैध रिश्ते में नहीं है। आठवां, गवाहों की फोटो व पैन कार्ड। 


# कोर्ट मैरिज के ये-ये हैं लाभ


पहला, आम तौर पर ऑनलाइन कोर्ट मैरिज एक सरल व सीधी प्रक्रिया है, जिसमें पारंपरिक शादी की तुलना में कम औपचारिकताएं तथा आवश्यकताएं होती हैं। यह उन जोड़ों के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है जो शादी करने के लिए कम-महत्वपूर्ण, बिना किसी झंझट के दृष्टिकोण पसंद करते हैं। 


दूसरा, कोर्ट मैरिज, पारंपरिक शादी की तुलना में ज़्यादा किफ़ायती हो सकती है। इसमें आम तौर पर कम खर्च होता है। यह उन जोड़ों के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है जिनका बजट सीमित है। 


तीसरा, कोर्ट मैरिज पारंपरिक शादी की तुलना में ज़्यादा गोपनीयता प्रदान कर सकती है। यह आमतौर पर किसी सार्वजनिक स्थल के बजाय सरकारी कार्यालय में आयोजित की जाती है। यह उन जोड़ों के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है जो अपनी शादी को कम महत्वपूर्ण और अंतरंग रखना पसंद करते हैं। 


चतुर्थ, कोर्ट मैरिज किसी भी समय की जा सकती है जो जोड़े और समारोह को संपन्न कराने वाले कोर्ट या सरकारी अधिकारी के लिए सुविधाजनक हो। यह उन जोड़ों के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है जिनका शेड्यूल व्यस्त है या जिन्हें जल्दी से शादी करनी है। 


पंचम, कोर्ट मैरिज कानून के तहत विवाह को कानूनी सुरक्षा और मान्यता प्रदान करती है। यह उन जोड़ों के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है जो यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके रिश्ते को कानूनी मान्यता और सुरक्षा मिले। 


छठा, कई देशों में, कोर्ट मैरिज में जोड़े के लिंग या यौन अभिविन्यास की परवाह किए बिना कानून के तहत समान व्यवहार प्रदान किया जाता है। यह उन जोड़ों के लिए एक महत्वपूर्ण विचार हो सकता है जिन्हें पारंपरिक विवाह या विवाह करने में भेदभाव या कानूनी बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।


# सिविल विवाह के ये-ये हैं लाभ


पहला, सिविल विवाह को कानून द्वारा मान्यता प्राप्त है और यह जोड़े को कानूनी सुरक्षा और लाभ प्रदान करता है। इसमें संपत्ति का अधिकार, विरासत, कर लाभ, और स्वास्थ्य सेवा और अन्य लाभों तक पहुँच शामिल है।


दूसरा, सिविल विवाह कई तरह की सेटिंग में किया जा सकता है, जिसमें कोर्ट हाउस, सिटी हॉल या अन्य सरकारी कार्यालय शामिल हैं। यह स्थान, समय और अन्य तार्किक विचारों के संदर्भ में लचीलापन प्रदान करता है।


तीसरा, सिविल विवाह एक धर्मनिरपेक्ष संस्था है जो किसी विशेष धार्मिक परंपरा या आस्था से जुड़ी नहीं है। यह उन जोड़ों के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है जो अलग-अलग धार्मिक पृष्ठभूमि से आते हैं या जो धार्मिक समारोह नहीं करना चाहते हैं। 


चौथा, सिविल विवाह कानून के तहत जोड़े के लिंग या यौन अभिविन्यास की परवाह किए बिना समान व्यवहार प्रदान करता है। यह समान-लिंग वाले जोड़ों के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है जो कुछ देशों या अधिकार क्षेत्रों में पारंपरिक धार्मिक विवाह प्राप्त करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं। 


पंचम, सिविल विवाह अक्सर पारंपरिक विवाह की तुलना में कम खर्चीला होता है, क्योंकि इसमें आमतौर पर कम औपचारिकताएं होती हैं। इसे किसी सरकारी कार्यालय या अन्य साधारण स्थान पर किया जा सकता है।


उल्लेखनीय है कि कोर्ट मैरिज शब्द का इस्तेमाल अक्सर सरकारी प्राधिकरण द्वारा किए गए कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त विवाह का वर्णन करने के लिए किया जाता है। जबकि सिविल मैरिज शब्द का इस्तेमाल आमतौर पर होने वाली शादी के संदर्भ में किया जाता है। हालांकि, कुछ संदर्भों में इनमें थोड़ा बहुत अंतर हो सकता है, जिनमें कानूनी अधिकार क्षेत्र, प्रक्रिया, स्थान, अधिकारी, लागत और मान्यता शामिल हैं। हालाँकि, दोनों प्रकार के विवाह कानूनी मान्यता, लचीलापन, समानता और कम लागत जैसे लाभ प्रदान करते हैं और अंततः जोड़ों को एक आधिकारिक और कानूनी रूप से संरक्षित संघ प्रदान करते हैं। यह बात दीगर है कि सिविल मैरिज और कोर्ट मैरिज के बीच का चुनाव अंततः जोड़े की प्राथमिकताओं के साथ-साथ उनके कानूनी और सांस्कृतिक संदर्भ पर निर्भर करता है, जिसमें वे एक सुखी जीवन के लिए विवाह कर रहे हैं। 


- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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