भारत में मई-जून के महीने में 'हीट स्ट्रोक' की एक गंभीर स्थिति उतपन्न हो जाती है, क्योंकि तापमान लगभग 50 डिग्री सेल्सियस/सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है। बढ़ते तापमान की वजह से यदा कदा आंधी के साथ हल्की-फुल्की बारिश भी होती है, जिससे तापमान में कुछ गिरावट दर्ज की जाती है। लेकिन दो-चार दिन बाद फिर वही 'लू' यानी हीट स्ट्रोक चलने लगती है, जिसमें हीट थकावट से लेकर क्लासिकल हीट स्ट्रोक तक का स्पेक्ट्रम होता है।
बहुधा यह तब होता है जब बाहर का तापमान 35 डिग्री सेल्सियस/सेंटीग्रेड से ऊपर हो जाता है। खासकर उत्तर और पश्चिमी भारत में वर्तमान गर्मी की लहरों के साथ, हम दिल्ली-एनसीआर में भी भीषण गर्मी का अनुभव कर रहे हैं। यहां पर तापमान 50 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच चुका है, इसलिए हीट स्ट्रोक के मामले भी सामने आए हैं।
विशेष रूप से बुजुर्ग लोग, लंबे समय से बीमार व्यक्ति और प्रीब्यूबर्टल बच्चे सबसे अधिक जोखिम वाले समूहों में से हैं।
जहां तक बच्चों की बात है तो उनको, उनके अपेक्षाकृत उच्च शरीर की सतह क्षेत्र, कम रक्त मात्रा, बिगड़ा प्रभावी गर्मी, अपव्यय क्षमता और कम पसीने की दर के कारण हीट स्ट्रोक का अधिक खतरा उतपन्न होता है। यह बाहर आने-जाने के समय, स्कूल के खेल के मैदानों में खेलते समय या ग्रीष्म अवकाश के दौरान खेल शिविरों में लगातार सूर्य के संपर्क में रहने के कारण हो सकता है। कार में बंद रहना शिशुओं में एक और महत्वपूर्ण जोखिम कारक है।
चिकित्सकों के मुताबिक, हीट स्ट्रोक का निदान काफी हद तक नैदानिक है। विशिष्ट लक्षणों में उच्च शरीर के तापमान 104 डिग्री सेल्सियस/सेंटीग्रेड तक, तंत्रिका संबंधी असामान्यताएं और हाल के गर्म मौसम के संपर्क में आये बच्चे शामिल हैं। ऐसे बच्चे के दिल की धड़कन में वृद्धि, सिरदर्द, चक्कर आना, भ्रम, उल्टी का अनुभव कर सकते हैं। वे आमतौर पर बुखार, सिरदर्द और लाल, शुष्क त्वचा के साथ उपस्थित होते हैं। बताया जाता है कि एक हॉस्पिटल में हर रोज 10 से 15 बच्चे पीडियाट्रिक ओपीडी में ऐसी ही शिकायतों के साथ पहुंच रहे हैं।
ऐसे बच्चों के उपचार का प्राथमिक उद्देश्य अतिताप का उन्मूलन है, जिसके प्रबंधन में काफी तेजी से और प्रभावी ढंग से शीतलन सबसे महत्वपूर्ण है, जिसे कभी-कभी "कूल एंड रन रणनीति" कहा जाता है। इसे ठंडे पानी में डुबो कर, ठंडे पानी से नहाकर, आइस पैक लगाकर या गीले तौलिये से प्राप्त किया जा सकता है; और फैनिंग जैसे गंभीर मामलों में, ठंडे लवण के जलसेक द्वारा तापमान पर नियंत्रण सुनिश्चित करने, जलयोजन बनाए रखने और संबंधित जटिलताओं की निगरानी के लिए प्रवेश की आवश्यकता होती है।
वर्तमान मौसम की स्थिति को देखते हुए निवारक उपाय अधिक महत्वपूर्ण हैं। खासकर दिन के गर्म समय से बचें, जितना हो सके घर के अंदर रहें, गर्म वातावरण में ज़ोरदार गतिविधि या खेल से परहेज करें। वहीं, उचित जलयोजन आहार बनाए रखें। बाहर निकलते समय हमेशा अपनी पानी की बोतल साथ रखें। आरामदायक सूती कपड़े पहनें और छतरी का उपयोग कुछ उपयोगी सलाह हो सकता है। हीट स्ट्रोक एक जीवन-धमकी की स्थिति हो सकती है, यदि इसे तुरंत न पहचाना जाता है और प्रभावी ढंग से इलाज नहीं किया जाता है। इसलिए कृपया ऊपर में बताए हुए इन सरल आसान युक्तियों पर ध्यान दें और अपने बच्चों में हीट स्ट्रोक और थकावट से संबंधित जटिलताओं से बचें।
# बढ़ते तापमान से बच्चों में हो रही हीट स्ट्रोक की परेशानी, डॉक्टर से जानें बचाव के तरीके
आमतौर पर बढ़ते तापमान की वजह से बच्चों को हीट स्ट्रोक की समस्या हो रही है। अगर किसी बच्चे को सिरदर्द, चक्कर, उल्टी आना, बेचैनी, स्किन का लाल होना जैसी परेशानी हो रही है, तो उसे तुरंत अस्पताल जाना चाहिए। दरअसल, देश के कई हिस्सों में भीषण गर्मी पड़ रही है। दिल्ली-एनसीआर में लू (हीट वेव) का प्रकोप है, जिससे तापमान 50 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच रहा है। इस वजह से लोगों को हीट स्ट्रोक की समस्या रही है।
अस्पतालों में भी इस समस्या के मरीज काफी संख्या में आ रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि हीट स्ट्रोक एक गंभीर स्थिति है। अमूमन यह तब हो सकता है जब बाहर का तापमान 35°सेल्सियस से ऊपर हो जाता है। लगभग 50 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ते तापमान की वजह से हीट स्ट्रोक के काफी मामले देखने में आ रहे हैं। ऐसे में सबसे ज्यादा परेशानी बुजुर्ग लोग, लंबे समय से बीमार व्यक्ति और बच्चों को हो रही है।
जानकर बताते हैं कि बच्चे कई बार काफी देर तक धूप में खेलते रहते हैं। इस दौरान उनको हीट स्ट्रोक हो जाता है। हालांकि ये गंभीर बीमारी नहीं है। इसके लक्षणों को पहचानकर समय पर इलाज़ कराने से आसानी से बचाव हो जाता है।
कौशाम्बी के यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल की पीडियाट्रिक डिपार्टमेंट की डॉ. दीपिका रस्तोगी ने बताया कि अस्पताल की ओपीडी में रोजाना 10 से 15 बच्चे हीट स्ट्रोक के लक्षणों के साथ आ रहे हैं। पिछले कुछ समय से ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ रही है। तेज गर्मी की वजह से ऐसा हो रहा है। डॉ. दीपिका के मुताबिक, दिल की धड़कन बढ़ना, सिरदर्द, चक्कर आना, उल्टी आना, बेचैनी, स्किन का लाल होना और बेहोशी, ये सब बच्चों में हीट स्ट्रोक के लक्षण होते हैं। अगर किसी बच्चे को यह समस्याएं हो रही हैं, तो माता-पिता को बच्चे को अस्पताल लेकर जाना चाहिए। समय पर इलाज़ होने से हीट स्ट्रोक आसानी से ठीक हो जाता है।
# ऐसे करें हीट स्ट्रोक से अपने बच्चे का बचाव
डॉ. दीपिका का कहना है कि फिलहाल बढ़ते तापमान को देखते हुए हीटस्ट्रोक से बचाव करना बहुत जरूरी है। इसके लिए जितना हो सके घर के अंदर रहें। गर्म वातावरण में एक्सरसाइज या खेल से परहेज करें। डाइट का ध्यान रखें और पानी से भरपूर फलों का सेवन करें। बाहर निकलते समय हमेशा अपने साथ पानी की बोतल साथ रखें। आरामदायक सूती कपड़े पहनें और सूरज की किरणों से बचने के लिए छतरी का उपयोग करें।
# क्या होता है हाइपरथर्मिया
डॉ. दीपिका ने कहा कि गर्मी के इस मौसम में बच्चे को हाइपरथर्मिया की शिकायत भी हो जाती है। ये होने पर शरीर का तापमान अचानक बढ़ जाता है। अगर किसी में हाइपरथर्मिया के लक्षण दिखते हैं, तो उस बच्चे को आईस पैक और ठंडे पानी के माध्यम से प्राथमिक उपचार किया जाता है। अगर समय पर हाइपरथर्मिया का इलाज़ नहीं किया जाता तो इससे कई परेशानियां हो सकती हैं।
- कमलेश पांडेय