आतंक ने उठाया नया हथियार, जवाबी हमले को हिंद भी तैयार, फ्लाइंग टेरर की तबाही तय, जानें ड्रोन से संबंधित हरेक जानकारी

By अभिनय आकाश | Jul 02, 2021

14 सितंबर 2019 को सऊदी अरब के अवकैत में कच्चे तेल के प्लांट में भयंकर आग लग गई थी। ये दुनिया का सबसे बड़ा क्रूड ऑयल प्रोसेसिंग प्लांट था। इसमें आग लगने की वजह कोई हादसा नहीं था। हमला ड्रोन से हुआ था। सऊदी अरब से यमन की सीमा लगती है। यमन के हूती विद्रोहियों ने एक दर्जने से ज्यादा ड्रोन एक साथ उड़ाकर तेल के प्लांट पर हमला किया था। इस एक दर्जन ड्रोन के हमले से सऊदी अरब का बड़ा नुकसान हुआ। कई दिनों तक प्लांट को बंद रखना पड़ा। दुनिया में तेल की सप्लाई कम हुई। पूरी दुनिया में कच्चे तेल की कीमतों में 10 फीसदी का उछाल आया। यानी ईरान समर्थित कुछ विद्रोहियों ने कुछ लाख रूपए के ड्रोन से सऊदी अरब का हजारों करोड़ का नुकसान करा दिया। यही ड्रोन की खासियत है क्योंकि बड़ी आसानी से ड्रोन से हमला हो सकता है। न ज्यादा खर्चा न ज्यादा रिस्क। ये तो हो गई विदेश की कहानी लेकिन इसे सुनाने का मकसद इसलिए भी खास हो जाता है क्योंकि इसका खतरा अब हमारे दरवाजे तक आ पहुंच चुका है।  मुल्क की सरजमीं एक बार फिर पाक की नापाक साजिश का गवाह बनी। पैंतरेबाज पाकिस्तान की ये वो नाकाम साजिश थी जिसने सुरक्षाकर्मियों को एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया। हालांकि दहशतगर्दों के दुस्साहस का हर मर्तबा हमारे जवानों ने जवाब दिया है। लेकिन चोरी-छिपे रात के अंधेरे में पाकिस्तान की कायराना करतूत एक बार फिर सामने आई है। महफूज माने जाने वाले एयरफोर्स स्टेशन की छत पर पहला धमाका 27 जून को रात के 1 बजकर 35 मिनट पर होता है। सुरक्षा में तैनात जवान जबतक कुछ समझ पाते ठीक पांच मिनट बाद दूसरा धमाका रात के 1 बजकर 42 मिनट पर होता है। पहला धमाका बिल्डिंग की छत पर हुआ जबकि दूसरा धमाका जमीन पर। दोनों धमाकों के बाद ये समझते देर नहीं लगी कि ये सरहद पार की साजिश है। सुरक्षाकर्मियों ने हमले के पीछे ड्रोन के इस्तेमाल की बात कही। इतना ही नहीं फौरी तौर पर जांच के बाद ये तस्दीक भी हो गई कि ये पैंतरेबाज पाकिस्तान की ड्रोन साजिश थी। गनीमत रही कि इन ड्रोन हमलों में किसी के हताहत होने की कोई खबर नहीं आई। लेकिन हमले के फौरन बाद पठानकोट, अंबाला के साथ-साथ तमाम एयरबेस को अलर्ट कर दिया गया। धमाके की खबर के बाद आनन-फानन में एनएसजी और एनआईए की टीम मौके पर पहुंच गई। सुरक्षा एजेंसियों द्वारा जांच में इस बात की आशंका जताई गई कि आतंकियों ने एयरबेस के नजदीक से ड्रोन लॉच किया था। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार हमले में इस्तेमाल किए गए ड्रोन क्वाडकॉक्टस थे और संभवत: एयरबेस की नजदीक से ड्रोन के जरिये विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया। 

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पाकिस्तान की तरफ से हथियार गिराए गए

जम्मू कश्मीर में ड्रोन दिखना नई बात नहीं है। पिछले दो-तीन सालों में कई बार पाकिस्तान की तरफ से हथियार गिराए गए या ड्रग्स सप्लाई करने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल हुआ। अगस्त 2019 से इस साल तक पाकिस्तान से ड्रोन आने के कई मामले सामने आ चुके हैं। 

  • 13 अगस्त 2019 को पंजाब के अमृतसर में पुलिस को जमीन पर गिरा ड्रोन मिला।
  • सितंबर 2019 में पंजाब के सीमावर्ती इलाकों में पाकिस्तान की तरफ से आठ बार ड्रोन्स से हथियार गिराए गए (तब तरनतारण से गिरफ्तार आतंकियों से पूछताछ में ये बात पता चली)
  • जून 2020 में जम्मू के कठुआ में बीएसएफ ने एक जासूसी ड्रोन को मार गिराया
  • 19 सितंबर 2020 में जम्मू कश्मीर में लश्कर के कुछ आतंकवादी हथियारों के साथ गिरफ्तार हुए। उनसे ये जानकारी मिली की ड्रोन से उनके लिए हथियार गिराए गए थे।
  • 22 सितंबर 2020 को जब जम्मू के अखरूर सेक्टर में कुछ हथियार मिले, जिन्हें ड्रोन से गिराये जाने का संदेह था। 

क्यों ड्रोन है सुरक्षा के लिए चुनौती?

एक्सपर्ट्स का कहना है कि ड्रोन के तौर पर भारत के सामने एक नया सुरक्षा खतरा पैदा हुआ है। इसके जरिए सीमा पार बैठे आतंकवादी भारत के महत्वपूर्ण ठिकानों को निशाना बना सकते हैं। ऐसा पहली बार है जब भारत में किसी सैन्य प्रतिष्ठान को निशाना बनाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया। ड्रोन के जरिए आतंकी संगठन की ओर से टारगेट की जाने की कोशिश इस मुद्दे को भारत ने संयुक्त राष्ट्र में भी उठाया। डिफेंस के जानकारों के अनुसार ड्रोन पर जो काम हुआ है वो ज्यादातर ऑफेंसिव ऑपरेशंस के लिए यानी अटैक करने के लिए हुआ है। लेकिन ड्रोन के हमले से किस तरह निपटा जाए इस पर अभी बहुत कम काम हुआ है। भारतीय सेना अभी दुश्मन के किसी ड्रोन को गिराने के लिए या तो स्मॉल ऑर्म्स का इस्तेमाल करती है या कभी एयर डिफेंस गन का भी इस्तेमाल होता है। एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल का भी इस्तेमाल ड्रोन के लिए किया जा चुका है। 

किस हद तक खतरनाक है ड्रोन हमला?

ड्रोन से दो तरीको से हमला किया जा सकता है। पहला ऐसे ड्रोन पर बम या विस्फोट लगे होते हैं। इसका टारगेट पहले से सेट रहता है। यह काम जीपीएस जैसी तकनीक से किया जा सकता है। ड्रोन लोकेशन या टारगेट पर बम ड्रॉप करता है यह बम भी ऐसे होते हैं जो गिरने के साथ ही ब्लास्ट होते हैं। इसके अलावा इसकी टाइमिंग भी सेट की जा सकती है। दूसरा ड्रोन टारगेट पर खुद बम के साथ ड्रॉप हो जाते हैं।

आतंकियों द्वारा ड्रोन का इस्तेमाल

दुनिया में सबसे पहले आतंकी संगठनों द्वारा इस्तेमाल की बात साल 2004 में सामने आई। हिजबुल्ला नामक संगठन ने इजरायल के ऊपर से मिरसाद 1 ड्रोन उड़ाया। हालांकि इस ड्रोन को भेजे जाने का उद्देश्य आतंकी हमला करना नहीं बल्कि जानकारी प्राप्त करना था। लेकिन तभी से ड्रोन के रूप में आतंकियों को एक नया आधुनिक हथियार मिल गया। साल 2006 में इजरायल और लेबनान युद्ध के वक्त हिजबुल्ला ने 40 से 50 किलो विस्फोटक के साथ अबाबील नामक तीन ड्रोन की मदद से तबाही मचानी चाही। लेकिन इजरायली एफ-16 ने इन्हें पहले ही मार गिराया। 

कहां-कहां हो रहा ड्रोन का आतंक इस्तेमाल

इस्लामिक स्टेट के अलावा फलस्तीन, लेबनान में सक्रिय हिजबुल्ला, हूती विद्रोही, तालिबान के साथ पाकिस्तान में सक्रिय कई आतंकी संगठन हमलों के लिए ड्रोन का इस्तेमाल करते हैं।

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ड्रोन को हम पकड़ क्यों नहीं पाते?

ड्रोन का साइज छोटा होता है। इसलिए रडार की पकड़ में आना आसान नहीं। 18 से 20 किलोमीटर तो रडार का ब्लाइंड जोन होता है। इतनी कम दूरी से उड़कर आता ऑबजेक्ट रडार की पकड़ में आना मुश्किल है। इसके अलावा ड्रोन कम ऊंचाई पर उड़ान भरने से भी ये रडार की पकड़ में नहीं आता। थोड़ा वजन कैरी करने वाले ड्रोन आराम से उपलब्ध भी हैं। कोई भी इनका इस्तेमाल कर सकता है। इन्हें कोई भी अपने घर की बालकॉनी से भी लॉन्च कर सकता है। 

ड्रोन कितने तरह के होते हैं?

  • नेनो ड्रोन- 250 ग्राम तक
  • माइक्रो ड्रोन- 250 ग्राम से 2 किलो तक
  • मिनी ड्रोन- 2 किलो से 25 किलो तक
  • स्मॉल ड्रोन- 25 किलो से 150 किलो तक
  • लार्ज ड्रोन- 150 किलो से ज्यादा

ड्रोन पर क्या गाइडलाइन है?

ड्रोन के वजन और साइज के मुताबिक प्रतिबंधों को कई कैटेगरी में बांटा गया है। 

नेनो ड्रोन- इसको उड़ाने के लिए आपको लाइसेंस की जरूरत नहीं पड़ेगी।

माइक्रो ड्रोन- इसको उड़ाने के लिए USB operator permit-I से परमिशन लेनी होती है और ड्रोन पायलट को एसओपी को फॉलो करना होता है। इनसे बड़े ड्रोन उड़ाने के लिए डीजीसीए से परमिट की जरूरत पड़ती है।

ड्रोन के लिए हवाई क्षेत्र को तीन भागों में बांटा गया है

  •  रेड ज़ोन (जहां पर ड्रोन उड़ाने की अनुमति नहीं है)
  • येलो ज़ोन (जहां पर कुछ नियमों के साथ ड्रोन उड़ाने की अनुमति है) 
  •  ग्रीन ज़ोन (इस ज़ोन में ड्रोन उड़ाने की अनुमति है) 

ड्रोन उड़ाने का लाइसेंस कैसे मिलेगा?

नैनो ड्रोन के अलावा किसी तरह के ड्रोन को उड़ाने के लिए लाइसेंस या परमिट की जरूरत पड़ती है। ड्रोन उड़ाने के लिए दो तरह के लाइसेंस दिए जाते हैं। 

पहला- स्टूडेंट रिमोट पायलट लाइसेंस

दूसरा- रिमोट पायलट लाइसेंस

उम्र- ड्रोन ऑपरेटर की न्यूनतम उम्र 18 साल और अधिकतम 65 साल होनी चाहिए। 

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किस तरह के रडार कि निगरानी की जाए जिससे ड्रोन के इस तरह के हमले रोके जा सके

ड्रोन से अगर कोई जम्मू के एयरबेस पर बम गिरा सकता है तो कही भी इस तरह के हमले के होने की आशंका हो सकती है। किसी भी स्तर पर इसका इस्तेमाल हो सकता है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल कि हम इससे कैसे निपटेंगे? अब आपको एक और कहानी सुनाता हूं। इजरायल और गाजा पट्टी पर शासन चलाने वाले चरमपंथी संगठन हमास ने इजरायल पर कासम रॉकेट से हमला किया था। जिसमें एक साथ ही 200-300 की संख्या में रॉकेट दागे जाते थे। एक सप्ताह में डेढ़ हजार रॉकेट दागे गए। लेकिन इतने रॉकेट के दागे जाने के बावजूद हमास के दागे गए रॉकेट्स का इजरायल पर बहुत ही कम असर हुआ क्योंकि इजरायल के आइरन ड्रोन ने रॉकेट को हवा में ही डिटेक्ट करके मार गिराया था। हालांकि कुछ रॉकेट इजरायल में भी गिरे थे लेकिन ज्यादा नुकसान इसमें इजरायल का नहीं हुआ था। इसी बीच पूरी दुनिया ने इजरायल की जबरदस्त तकनीक का नजारा भी देखा। अब भारत ने पाकिस्तान के ड्रोन अटैक को नाकाम करने के लिए एक एंटी ड्रोन सिस्टम की सहायता लेने का प्लान बनाया है। इजरायल से भारत एंटी ड्रोन सिस्टम आ रहे हैं। इजरायल के एंटी ड्रोन सिस्टम स्मैश-2000 प्लस को भारत लाया जा रहा है। ये एंटी ड्रोन सिस्टम ड्रोन हमलों को हवा में नाकाम करने का माद्दा रखता है। इजरायल को एंटी ड्रोन सिस्टम का ऑर्डर दे दिया गया। इजरायल के ड्रोन में कंप्यूटराइज्ड फायर कंट्रोल सिस्टम है। इसके साथ ही ये ड्रोन इलेक्ट्रो ऑप्टिक साइट सिस्टम से लैस है। ड्रोन को राइफल के ऊपर फिट किया जा सकता है। स्मैश-2000 प्लस छोटे ड्रोन को हवा से हवा में मार गिरा सकता है। इसके अलावा भारत की कई प्राइवेट फॉर्म भी एंटी ड्रोन गन बनाने पर काम कर रही है। इसके साथ ही इंडियन आर्मी के एयर डिफेंस कॉलेज में भी कुछ प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है। 

DRDO का एंटी ड्रोन सिस्टम

भारतीय सेना में इनोवेशन के तहत ड्रोन जैमिंग सिस्टम पर भी काम हो रहा है। भारतीय सेना ने कॉडकॉप्टर जैमिंग सिस्टम तैयार किया गया जिसकी रेंज करीब 3 किलोमीटर तक है। इसको बंकर के जरिये बैठकर रिमोट के जरिये कंट्रोल कर सकते हैं। वही डीआरडीओ ओर से विकसित एंटी-ड्रोन सिस्टम को लेकर भी खासा चर्चा है। बता दें कि  तीन किलोमीटर के दायरे में आने वाले छोटे ड्रोन का पता लगाकर उसे जाम कर देने की क्षमता वाले इस एंटी ड्रोन सिस्टम की तैनाती 2020 के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर वीवीआईपी लोगों को सुरक्षा देने के लिए हुई थी। इसके अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जब अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम पहुंचे थे उस समय भी इस सिस्टम को वहां लगाया गया था। यह सिस्टम 1 से 2.5 किमी के दायरे में आए ड्रोन को अपनी लेज़र बीम से निशाना बनाते हुए उसे नीचे गिरा देता है। सूत्रों के अनुसार अगले 6 महीनों में ये सेनाओं को मिल सकता है। 

ड्रोन पॉलिसी को मिलेगी केंद्र की मंजूरी

जम्मू में ड्रोन हमले के बाद इसे लेकर स्पष्ट नीति को जल्द से जल्द अमल में लाने की पहल तेज हो गई। प्रस्तावित ड्रोन पॉलिसी को लेकर पीएम मोदी ने गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप पुरी से बात की है। केंद्र की ये चिंता है कि इसके दुरुपयोग और खतरों पर किस तरह रोक लगाई जाए। कुछ साल पहले से ही गृह मंत्रालय ड्रोन के अवैध तरीके से उड़ने पर रोक लगाने के लिए एक खास नीति पर काम कर रही है। सूत्रों के अनुसार पहले से ही ड्रोन को ट्रैक करने के लिए एक ब़ड़ा सिस्टम तैयार किया जा रहा है। इसे तमाम अहम और सामरिक महत्व वाले जगहों पर लगाया जाएगा। फिलहाल किसी इलाके में ड्रोन के उड़ाने और उसकी गतिविधि को ट्रैक करने के लिए सरकार के पास सिस्टम नहीं है। जो खास सिस्टम तैयार होगा वो किसी भी तरह के ड्रोन के उड़ान को रियल टाइम ट्रैक कर लेगा। प्रस्तावित नीतियों में इन बातों पर स्पष्ट गाइडलाइन होगी। ड्रोन कहां-कहां उड़ सकता है और कहां नहीं, इसके लिए पहले ही सरकार लिस्ट जारी कर चुकी है। -अभिनय आकाश

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