By डॉ. रमेश ठाकुर | Nov 30, 2020
देश की राजधानी बीते कुछ दिनों से किसानों से घिरी है। खेती-किसानी छोड़ अन्नदाता इस समय दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। आंदोलन केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि सुधार अधिनियम के खिलाफ हो रहा है जिसमें पंजाब सहित उत्तर भारत के लाखों किसान शामिल हैं। जनाक्रोश को देखते हुए केंद्र सरकार ने फिलहाल बातचीत का पासा फेंका है। किसानों के दिल्ली कूच करने और उनकी क्या हैं मांगे आदि को जानने के लिए डॉ रमेश ठाकुर ने भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत से विस्तृत बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश।
प्रश्न- इस बार का मूवमेंट आर-पार की लड़ाई में दिखाई पड़ता है?
उत्तर- जी बिल्कुल! अब आश्वासन का झुनझुना नहीं चाहिए हमें। मुकम्मल लिखित जवाब चाहिए। ये आंदोलन नहीं, बल्कि किसान क्रांति है। दिल्ली बॉर्डर पर हमारा काफिला पहुंचा तो पता चला कि हमें रोकने के लिए चारो ओर से पुलिस-आर्मी का पहरा बिछा दिया। लेकिन अबकी बार हम मरने से भी पीछे नहीं हटेंगे। सर्दी में हम पर वाटर कैनन से भिंगोया गया, आंसू गैस के गोले दागे गए, पानी की बौछारें छोड़ी गईं। किसानों पर लाठियां तक भांजी गई। शर्म आनी चाहिए केंद्र सरकार को हम किसान हैं, कोई आतंकवादी नहीं। हम अपना हक-हकूक मांग रहे हैं, आपसे दुआ या भीख नहीं? मोदी जी इतना समझ लेना इस बार हम खाली हाथ दिल्ली से नहीं लौटेंगे।
प्रश्न- मांगों के एजेंडे में नए कृषि सुधार अधिनियम ही हैं या कुछ और?
उत्तर- पहली बात तो ये है कि केंद्र सरकार द्वारा पारित तीनों नए कृषि सुधार अधिनियम को हम लागू नहीं होने देंगे। क्योंकि इससे किसान निश्चित रूप से उजड़ जाएंगे, खेतीविहीन हो जाएंगे। सड़कों पर आ जाएंगे। दूसरी मांग है स्वामी नाथन आयोग की सिफ़ारिशें लागू करना। जिस पर सरकार ने विचार करने का पिछले साल हमें आश्वासन दिया था। उस समय मांग को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार ने थोड़ा समय मांगा था। लेकिन अब मियाद खत्म हो गई है। सरकार अपने वादे से मुकर गई। इन्हीं मांगों को पूरा करने के लिए हमारा आंदोलन हो रहा है।
प्रश्न- ये पांचवां बड़ा आंदोलन है, पूर्व की तरह सरकार ने फिर बातचीत का पांसा फेंका है?
उत्तर- अब हम झांसे में नहीं आने वाले। किसानों ने पटकथा आर-पार की लिख दी है। सरकार के पास इस बार आखिरी मौका है। इस बार अगर सरकार ने पलटी मारी, तो देख लेना अन्नदाता किस तरह से सबक सिखाएंगे। नरेंद्र मोदी को एक बात नहीं भूलनी चाहिए। 2014 और 2019 में उनकी जीत में किसानों की भूमिका सबसे बड़ी रही। उसके बदले सरकार ने किसानों को सिर्फ कोरे आश्वासनों के अलावा कुछ नहीं दिया। फसली समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की बात में भी बेमानी दिखी। दिल्ली का तख्ता पलटने में किसान अब देरी नहीं करेगा। किसानों का गुस्सा अब अपनी चरम सीमा को पार कर चुका है। हमें आश्वासन का झुनझुना नहीं चाहिए। अन्नदाताओं को अपनी किसानी का मेहनताना चाहिए।
प्रश्न- आंदोलन को खालिस्तान से जोड़ा जा रहा है?
उत्तर- खालिस्तान आतंकी हैं जो गतिविधियों में लिप्त रहते हैं। ये अन्नदाता हैं जो आपका पेट भरते हैं। शर्म आनी चाहिए उन लोगों को जो इनके दामन पर दाग लगाते हैं। पूरा मूवमेंट अहिंसक तरीके से हो रहा है। आंदोलित किसानों को हिदासतें दी गई हैं कि वह किसी भी सुरक्षाकर्मी से न उलझें। देखिए, वातानुकूलित कमरों में बैठकर किसानों की असल समस्याओं को नहीं समझ सकते। समझने के लिए खेतों में उतरना होगा। लेकिन ऐसा सफ़ेदपोश कर नहीं सकते, उससे उनके सफेद कपड़े मैले हो जाएंगे। आजादी के बाद से किसान इस वक्त सबसे बड़ी समस्याओं से गुजर रहे हैं। मंडियों में धान की ब्रिकी नहीं हो रही। किसान मारे-मारे फिर रहे हैं। शासन-प्रशासन सभी आँखें मूंदे हैं।
प्रश्न- सूचना ऐसी भी है कि मौजूद किसान आंदोलन में कुछ स्वार्थी तत्व भी शामिल हैं?
उत्तर- ये दुष्प्रचार मात्र है। आंदोलन में जितने भी संगठन शामिल हैं सभी खाटी के किसान हैं। मेरे पिता जी महेंद्र सिंह टिकैत ने किसानों के हितों के लिए कितना संघर्ष किया। अन्नदाताओं की लड़ाई लड़ते-लड़ते अपने प्राण न्योछावर कर दिए। देश के किसान उनकी कुर्बानी को कभी नहीं भूल पाएंगे। हमारे भीतर भी उनका ही खून है। इसलिए आखिरी दम तक हम भारत के किसानों हितों के लिए निस्वार्थ लड़ते रहेंगे।
प्रश्न- उम्मीद है आपको, केंद्र सरकार इस बार मांगें मान लेगी?
उत्तर- हर हाल में मानना पड़ेगा। वरना ख़ामियाज़ा भुगतने की लिए तैयार रहें। तख्त ताज उखाड़ फेंक देंगे। किसानों ने अपनी मांगे मनवाने का ब्लू प्रिंट तैयार किया हुआ है। इसके बाद समूचे भारत में किसान क्रांति आ जाएगी। दूध, सब्जी-राशन के अलावा ग्रामीण अंचल की सभी सामग्रियों की सप्लाई बंद कर देंगे। ऐसा करने के बाद देश में जो अराजकता फैलेगी, उसकी जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ केंद्र सरकार होगी। दिल्ली इस बार हम आर-पार की लड़ाई लड़ने पहुंचे हैं। खाली हाथ नहीं जाएंगे। हमें पता है आंदोलन को खत्म करने के लिए कोशिशें हो रही हैं। लेकिन हम डटे हैं, दिल्ली छोड़कर नहीं जाएंगे।
-फोन पर किसान नेता राकेश टिकैत ने जैसा डॉ. रमेश ठाकुर से कहा।