मुझे बचपन का एक किस्सा याद आता है। जब मैं छोटा था और क्रिकेट खेलने जाता था तो हमारे पास खुद का बैट नहीं होता था। हम इलाके के अमीर बच्चे पर टकटकी लगाए रहते थे जिसके पास बैट से लेकर सारा किट होता था। खुद का बैट होने के चलते वो पहले बल्लेबाजी करता था और आउट होते ही बहाने बनाना शुरु कर देता था। हद तो तब होती थी जब वो अपना बैट लेकर घर भाग जाता था। मुझे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का रवैया भी कुछ ऐसा ही लगा। चुनाव में जब आम आदमी पार्टी को जीत मिल रही थी तो सब कुछ ठीक था...लेकिन जैसे ही हार का सामना करना पड़ा उसे ईवीएम में खराबी नजर आने लगी।
दिल्ली की जनता ने एमसीडी चुनाव में बीजेपी को बंपर मतों से जीत दिलाई...लेकिन आम आदमी पार्टी को बीजेपी की इस बड़ी जीत में साजिश नजर आई। जनता का जनादेश स्वीकार करने के बजाए दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने सीधे-सीधे कह दिया कि ईवीएम में छेड़छाड़ के बिना बीजेपी की जीत संभव नहीं। ये पहली बार नहीं है जब आम आदमी पार्टी ने ईवीएम में गड़बड़ी का आरोप लगाया है। चुनाव से पहले पंजाब में ताल ठोंककर सरकार बनाने का दावा करने वाले केजरीवाल को जब वहां की जनता ने नकार दिया तो उन्होंने अपनी हार के लिए ईवीएम को जिम्मेदार ठहरा दिया।
एमसीडी चुनाव से पहले दिल्ली में राजौरी गार्डन विधानसभा उपचुनाव में भी करारी शिकस्त मिलने के बाद आम आदमी पार्टी तिलमिला उठी थी। आपको बता दें कि 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव के बाद जब ईवीएम को लेकर सवाल उठे तो चुनाव आयोग ने सियासी दलों और विशेषज्ञों को ईवीएम हैक करने की खुली चुनौती दे डाली। साख पर सवाल उठने के बाद चुनाव आयोग की टेक्निकल टीम ने आईआईटी भिलाई में जब ईवीएम पर जांच की तो उसे पूरी तरह से भरोसेमंद पाया।
मुझे स्कूल के दिनों से अगर देश में किसी सरकारी संस्था पर नाज है तो वो है चुनाव आयोग...मैं उस बिहार से आता हूं जहां किसी जमाने में बूथ कैप्चरिंग के बल पर चुनाव जीते जाते थे, लेकिन टीएन शेषण, लिंगदोह जैसे अधिकारियों ने इस पर पूरी तरह लगाम लगा दी। हमारे देश का चुनाव आयोग कितना निष्पक्ष और बेहतर काम करता है इसकी तारीफ अमेरिका जैसे मुल्कों में होती है। लेकिन अफसोस केजरीवाल और मायावती जैसे नेताओं को इस पर जरा भी भरोसा नहीं।
एमसीडी चुनाव में 270 वार्डों में आम आदमी पार्टी को 48 वार्ड में जीत मिली...अगर ईवीएम से छेड़छाड़ हुई होती तो क्या उन्हें इतनी सीटें मिलतीं? अगर ईवीएम में गड़बड़ी कर आम आदमी पार्टी को हराना होता तो फिर उसे 5 सीटों पर भी तो रोका जा सकता था। चुनाव में हार के बाद पार्टियां बहाने बनाती हैं...लेकिन हार के लिए ईवीएम पर सवाल उठाना उस जनता का अपमान करना है जो लोकतंत्र के महापर्व में मतदान करने जाता है।
जब विधानसभा चुनाव में केजरीवाल की पार्टी को 70 में 67 सीटें हासिल हुई थीं तब ईवीएम में गड़बड़ी नहीं थी..लेकिन आज उसे गड़बड़झाला नजर आ रहा है। अन्ना के मंच से राजनीति में आए केजरीवाल ने दिल्ली की जनता को बड़े-बड़े सपने दिखाए थे...लेकिन सत्ता में आने के बाद वो अपने ही बनाए आदर्शों से भटक गए। केजरीवाल सरकार आने के बाद दिल्ली की जनता को पानी और बिजली के बिलों में तो राहत मिली...लेकिन उनकी दूसरी सुविधाओं को नजरअंदाज कर दिया गया।
बात-बात पर एलजी से लड़ाई...हर छोटी चीज में प्रधानमंत्री को घसीटना, जनता की गाढ़ी कमाई को खुद के विज्ञापन पर लुटाना...फर्जी मामलों में अपने मंत्रियों को बचाना...आखिरकार दिल्ली की जनता ये सब कब तक बर्दाश्त करती। अब आम आदमी पार्टी को भले ही ये खराब लगे लेकिन दिल्ली की ज्यादातर जनता ये मान बैठी है कि केजरीवाल को ना ही सरकार चलाना आता है और ना ही सरकार चलाने की उनकी कोई मंशा है।
जब केजरीवाल ने खुद की पार्टी बनाकर दिल्ली में चुनाव में उतरने का एलान किया था तो क्या उन्हें पता नहीं था कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल नहीं है। दिल्ली में वही सरकार अच्छे तरीके से काम कर सकती है जो केंद्र के साथ कदम से कदम मिलाकर चले। लेकिन इसे केजरीवाल का अहंकार कहिए या फिर उनका अड़ियल रवैया वो हमेशा केंद्र सरकार के साथ टकराव की स्थिति में नजर आते हैं। केजरीवाल के पास अभी दिल्ली में 3 साल का समय है...केजरीवाल नकारात्मक राजनीति छोड़ अपना ध्यान उस काम में लगाएं जिसके लिए उन्हें दिल्ली की जनता ने चुना है।
मनोज झा
(लेखक एक टीवी चैनल में वरिष्ठ पत्रकार हैं)