By अनन्या मिश्रा | Feb 22, 2024
महात्मा गांधी का नाम बच्चा-बच्चा जानता है। न सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी गांधीजी की लोकप्रियता पाई जाती है। उन्हें राष्ट्रपिता कहा जाता है। उनके द्वारा सिखाए गए सत्य और अहिंसा मार्ग के बारे में तो आप सब ने सुना होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मोहनदास करमचंद गांधी के महात्मा गांधी, बापू और राष्ट्रपिता बनने के पीछे एक महिला का बेहद अहम रोल है। अगर यह महिला न होती तो शायद आज गांधी जी महात्मा न होते। आपको बता दें कि इन्होंने अपना पूरा जीवन गांधीजी के नाम कर दिया। हरपल उनके साथ साए की तरह खड़ी रहीं और उनका मनोबल बढ़ाती रहीं। आपको बता दें कि यह महिला और कोई नहीं बल्कि महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी हैं। एक सपंन्न घराने की बेटी गांधीजी के साथ पग-पग पर उनका साथ देती रही। आज ही के दिन यानि की 22 फरवरी 1944 को देश की बा यानि की कस्तूरबा गांधी का निधन हुआ था। आइए जानते हैं उनके बारे में कुछ रोचक बातें...
जन्म और विवाह
कस्तूरबा गांधी का जन्म गुजरात के काठियावाड़ में 11 अप्रैल 1869 को एक संपन्न परिवार में हुआ था। महात्मा गांधी के पिता और कस्तूरबा के पिता करीबी दोस्त थे। ऐसे में मात्र 7 साल की उम्र में उनकी गांधीजी से शादी तय कर दी गई थी। वहीं मात्र 13 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी। इस दौरान न तो गांधीजी को और न ही कस्तूरबा गांधी को शादी का मतलब पता था। हालांकि बाद में गांधीजी बाल विवाह के विरोध में हो गए। कई जगह यह भी दावा किया गया कि शुरूआती दिनों में कस्तूरबा गांधी के प्रति गांधीजी का रवैया अच्छा नहीं था।
शिक्षा
कम उम्र में शादी होने के कारण वह कभी शिक्षा के लिए स्कूल नहीं जा सकीं। जबकि गांधीजी अपनी शिक्षा के लिए विदेश भी गए थे। वहीं वह घर पर ही रह कर पढ़ाई करती थीं। एक लेख में दावा किया गया था कि जब गांधीजी इंग्लैंड में वकालत की पढ़ाई कर रहे थे। तब कस्तूरबा गांधी ने अपने गहने बेचकर उनकी पढ़ाई के लिए पैसे जुटाए थे।
विपरीत समय में दिया साथ
कस्तूरबा गांधी का जीवन कठिन संघर्षों में बीता। संपन्न परिवार में जन्मी कस्तूरबा गांधी नाजों से पली-बढ़ी थीं। लेकिन उन्होंने शादी के बाद काफी संघर्ष देखें। उन्होंने कभी भी गांधीजी से पति और पिता के कर्तव्यों को पूरा करने के लिए नहीं कहा। जहां गांधीजी ने अपना पूरा जीवन देश सेवा में लगा दिया तो वहीं बा ने कभी उनसे शिकायत नहीं की। जब गांधीजी स्वतंत्रता संग्राम के लिए जेल गए तो कस्तूरबा गांधी हर पल उनके साथ खड़ी रहीं।
निधन
गांधीजी के उपवास के दौरान, धरना प्रदर्शन के दौरान कस्तूरबा गांधी उनकी सच्चे मन से सेवा करती थीं। आपको बता दें कि कस्तूरबा गंभीर ब्रोंकाइटिस रोग से पीड़ित थीं। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। हालांकि गांधी जी साथ स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष में उनकी तबियत तेजी से बिगड़ने लगी। बता दें अगस्त 1942 में गांधीजी को कस्तूरबा के साथ पुणे के आगाखान पैलेस में भी नजर बंद किया था। इसी महल में कस्तूरबा गांधी ने अपनी अंतिम सांस ली थी। उनके निधन के बाद इसी भवन में उनकी समाधि भी बनाई गई।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
कस्तूरबा गांधी केवल महात्मा गांधी की पत्नी ही नहीं बल्कि हर देशवासी की बा बन गईं। उनके कामों और संघर्षों के कारण उन्हें यह उपाधी दी गई। भले ही दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ आंदोलन महात्मा गांधी ने छेड़ा था। लेकिन पहली बार इस पर कस्तूरबा गांधी का ही ध्यान गया था। जब कस्तूरबा गांधी ने इसके खिलाफ आवाज उठाई तो उन्हें 3 महीने की जेल हो गई थी। लेकिन जेल में भी वह कैदियों का दुख-दर्द बांटा करती थीं। उनके सेवा भाव को देखते हुए लोग उन्हें बा कहकर पुकारने लगे।