By नीरज कुमार दुबे | Nov 24, 2021
कश्मीरी केसर की बात ही अलग है। इसे कश्मीर का गोल्ड भी कहा जाता है। पूरी दुनिया में अपनी शुद्धता और गुणवत्ता के लिए मशहूर कश्मीरी केसर मुख्य रूप से घाटी के पुलवामा और बडगाम जिलों में उगाया जाता है। जीआई टैग हासिल हो जाने से कश्मीरी केसर वैश्विक मानचित्र पर अपनी खास जगह बना चुका है लेकिन लगातार इसकी उपज घटती जा रही है जोकि चिंता की बात है। वैसे कश्मीर की भूमि पर वर्षों से खिलने वाले केसर को दुनिया के सबसे महंगे मसालों में से एक माना जाता है। स्थानीय भाषा में इसे जाफरान भी कहा जाता है।
आइये सबसे पहले बात करते हैं इंडिया इंटरनेशनल कश्मीर सैफरन ट्रेडिंग सेंटर की। कश्मीरी केसर को पूरी दुनिया के बाजारों में पहुँचाने का जिम्मा संभालने वाले इस सरकारी संस्थान को लोग सैफरन पार्क या स्पाइस पार्क के नाम से भी जानते हैं। यह संस्थान कश्मीर के कृषि विभाग के मातहत काम करता है। केसर की फसल जब उग जाती है तो इस संस्थान का कार्य होता है कि कैसे फूल में से केसर को निकालना है, कैसे उसको सुखाना है, कैसे उसकी पैकिंग करनी है, केसर की गुणवत्ता की जाँच कर उसे श्रेणीबद्ध भी करना होता है। इंडिया इंटरनेशनल कश्मीर सैफरन ट्रेडिंग सेंटर के ई-ऑक्शन पोर्टल की मदद से केसर उत्पादकों को अपनी फसल बेचने में मदद भी दी जाती है। प्रभासाक्षी संवाददाता ने संस्थान के अधिकारी से बात कर जाना कि केसर की खेती क्यों कम होती जा रही है और संस्थान की ओर से केसर उत्पादकों को क्या सहूलियतें प्रदान की जाती हैं। यदि आप भी कश्मीरी केसर की पहचान को लेकर आशंकित हैं तो इस संस्थान की मदद ली जा सकती है।
इस समय केसर की फसल की कटाई का मौसम है। आपको सभी ओर खेतों में केसर के फूल तोड़ते हुए लोग नजर आ जाएंगे। प्रभासाक्षी संवाददाता ने जब केसर उत्पादकों से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि पिछले साल की तुलना में केसर की फसल का उत्पादन कम हुआ है और इसका कारण जलवायु परिवर्तन, सिंचाई सुविधाओं की कमी और केसर के बीजों की कम उपलब्धता है। हम आपको बता दें कि साल 2020 में केसर की 13 टन से अधिक की बंपर फसल हुई थी। केसर उत्पादकों की सरकार से मांग है कि स्प्रिंकल सिंचाई सुविधा जल्द से जल्द मुहैया करानी चाहिए क्योंकि इसका वादा किये हुए काफी दिन हो गये हैं।