By नीरज कुमार दुबे | Jul 26, 2023
करगिल युद्ध की यह 24वीं वर्षगाँठ है। सारा देश तमाम आयोजनों के जरिये करगिल विजय दिवस मना रहा है और मातृभूमि की रक्षा में अदम्य साहस का प्रदर्शन करने वाले देश के वीर सपूतों को नमन कर रहा है। देश उन पलों को फिर से याद कर रहा है जब भारतीय सेना ने लद्दाख में करगिल के ऊंचे पर्वतीय इलाकों में करीब दो महीने तक चले युद्ध के बाद जीत की घोषणा करते हुए 26 जुलाई 1999 को ‘ऑपरेशन विजय’ की सफलता का ऐलान किया था। लेकिन यह जो 'विजय' है यह आसानी से नहीं मिली थी हमारे 20, 22, 25 साल के जवानों ने इस विजय के लिए और अपने देश की धरती की सुरक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। करगिल की दुर्गम पहाड़ियों की चोटियों पर लड़ा गया यह युद्ध दुनिया का सबसे खतरनाक युद्ध माना जाता है। करगिल की सबसे ऊँची चोटी टाइगर हिल से पाकिस्तानी सेना को खदेड़ कर वहाँ तिरंगा फहराते भारतीय सैनिकों की तसवीरें आपके जेहन में ताजा होंगी लेकिन ऊपर बैठकर गोली बरसा रहे पाकिस्तानी सैनिकों से इस क्षेत्र को छुड़ाना कोई आसान काम नहीं था। करगिल युद्ध में भारतीय सेना और वायुसेना ने अपनी जबरदस्त जांबाजी दिखाई लेकिन इस दौरान हमारे लगभग 500 जवानों ने अपनी शहादत भी दी। भारतीय जवानों के लिए सबसे मुश्किल बात यह थी कि वह नीचे थे और दुश्मन ऊँचाई पर बैठ कर हमें साफ-साफ देख भी रहा था और गोलियां बरसा कर नुकसान पहुँचा रहा था। कल्पना करके देखिये कि ऐसे में क्या माहौल होगा जब दुश्मन के गोले और गोलियों से बचते हुए हमारे जवानों के सामने ऊपर चढ़ने की कठिन चुनौती भी है, रसद और गोला बारूद भी साथ लेकर जाना है, दुश्मन को ठिकाने भी लगाना है और उस समय सेना के पास आज की तरह रात में देख सकने वाले अत्याधुनिक उपकरण और कई अन्य प्रकार के साजो-सामान नहीं थे। करगिल की ऊँची पहाड़ियों पर जहाँ सांस लेना भी मुश्किल होता है वहां हिम्मत दिखाते हुए बस आगे बढ़ते जाना बहुत कठिन था।
पाकिस्तान कैसे घुस आया था?
देखा जाये तो करगिल में युद्ध की नौबत इसलिए आयी थी क्योंकि 160 किलोमीटर के दायरे में हमारे निगरानी तंत्र की विफलता के चलते वहां पाकिस्तानी सेना घुस आई थी और हमारी कई चौकियों पर कब्जा जमा लिया था। पाकिस्तानी घुसपैठियों ने मुख्यतः उन भारतीय चौकियों पर कब्जा जमाया था जिनको भारतीय सेना की ओर से सर्दियों के मौसम में खाली कर दिया जाता था। पाकिस्तानी सेना ने यह घुसपैठ 'ऑपरेशन बद्र' के तहत करवाई थी और उसका मुख्य उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख के बीच की कड़ी को तोड़ना और भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटाना था। पाकिस्तान के तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल परवेज मुशर्रफ ने यह घुसपैठ बड़े गुपचुप तरीके से करवाई थी इसलिए जब इसका खुलासा हुआ तब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलजी पाकिस्तान से मिले इस धोखे से स्तब्ध रह गये थे क्योंकि वह एक ओर पाकिस्तान के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे थे, लाहौर तब बस लेकर गये थे लेकिन बदले में पाकिस्तान ने पीठ में छुरा भोंकने का काम किया था। घुसपैठ की बात सामने आते ही अटलजी ने मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की समिति की बैठक बुलाई और कुछ देर बाद ही भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन विजय' का ऐलान कर दिया। भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाली जगहों पर हमला किया और पाकिस्तानी सेना को भारतीय चोटियों को छोड़ कर भागने पर मजबूर कर दिया। आखिरकार 26 जुलाई को वह दिन आया जिस दिन सेना ने इस ऑपरेशन का पूरा कर लिया।
कैसे करगिल में भारतीय सेना ने बनाया रिकॉर्ड
करगिल युद्ध को भारतीय सेना की एक बड़ी विजय के रूप में दुनिया इसलिए भी देखती है क्योंकि हमारी सेना के लिए सबसे बड़ी मुश्किल बात यह थी कि दुश्मन ऊँची पहाड़ियों पर बैठा था और वहां से गोलियां बरसा रहा था। इसलिए हमारे जवानों को आड़ लेकर या रात में चढ़ाई कर ऊपर पहुँचना पड़ता था जोकि बहुत जोखिमपूर्ण था। यही नहीं, करगिल की लड़ाई सेना और वायुसेना के आपसी समन्वय और सम्मिलित प्रयास का भी अनुपम उदाहरण थी। करगिल के युद्ध में जहाँ भारतीय सेना की बोफोर्स तोपें दुश्मनों पर कहर ढा रही थीं तो 30 वर्ष बाद 1999 में ऐसा समय आया था जब भारतीय वायुसेना को हमले करने के आदेश दिये गये थे। दरअसल करगिल की लड़ाई में भारतीय जवान बड़ी संख्या में शहीद होते जा रहे थे जिससे एनडीए सरकार को आलोचना झेलनी पड़ रही थी। तब 25 मई 1999 को दिल्ली में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति की एक अहम बैठक हुई जिसमें तय किया गया कि पाकिस्तानी घुसपैठियों के खिलाफ हवाई हमले किये जाएं। इसके बाद करगिल युद्ध में वायुसेना के 300 विमानों को शामिल किया गया था। वायुसेना की मदद मिलने से हमारी सेना की स्थिति काफी मजबूत हो गयी थी। हम आपको बता दें कि करगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना के 2700 से ज्यादा सैनिक मारे गये थे। इस लड़ाई में पाकिस्तान को 1965 और 1971 से भी ज्यादा नुकसान हुआ था।
करगिल युद्ध के दौरान का नजारा
करगिल युद्ध से जुड़ी एक और खास बात यह है कि आजादी के बाद यह पहली ऐसी लड़ाई थी जिसकी तस्वीरें टीवी समाचार चैनलों के माध्यम से घर-घर तक पहुँच गयी थीं और भारतीयों में पाकिस्तान के विरोध में गुस्सा उबाल ले रहा था। भारतीय सेना जब धड़ाधड़ पाकिस्तानी सेना को नुकसान पहुँचाये जा रही थी तो नवाज शरीफ सरकार भी हिल गयी थी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को मदद मांगने के लिए तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से मिलने के लिए वाशिंगटन भागना पड़ा था। नवाज शरीफ ने जब अपनी सेना की पिटाई की बात बिल क्लिंटन को बताई तो उन्होंने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को फोन लगा दिया और कहा कि आप भी यहाँ आ जाइये, बैठ कर बातें करते हैं। लेकिन अटलजी ने साफ इंकार कर दिया। तब बिल क्लिंटन ने बताया कि परेशान पाकिस्तानी सेना भारत पर परमाणु हमला भी कर सकती है तो अटलजी ने साफ कह दिया कि पाकिस्तानी सेना यदि ऐसा करेगी तो हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन पाकिस्तान अगले दिन का सूरज नहीं देख पायेगा।
बहरहाल, करगिल की विजय एक ओर जहां हमारी सेना के अदम्य साहस, शौर्य और सर्वोच्च बलिदान से मिली वहीं हमारी तत्कालीन सरकार के दृढ़ रुख का भी इसमें महत्वपूर्ण योगदान रहा और सबसे खास योगदान हर भारतीय ने दिया जो एकजुट होकर मुश्किल समय में देश और सेना के साथ डट कर खड़ा रहा, हर शहीद परिवार के लिए मदद देने में कोई कसर नहीं छोड़ी, सीमा पर जाकर मर मिटने की खातिर लोग घरों से निकलने को आतुर दिखे। देखा जाये तो तिरंगे की आन बान और शान को बरकरार रखना हर भारतीय का फर्ज है। साथ ही हमें शहीदों के परिवारों की भी सुध सदैव लेते रहने की आवश्यकता है।
-नीरज कुमार दुबे