By अनन्या मिश्रा | Mar 15, 2025
आज ही के दिन यानी की 15 मार्च को कांशीराम का जन्म हुआ था। उनको भारतीय राजनीति में कई नामों से जाना जाता है। कांशीराम को बहुजन नायक, मान्यवर या साहेब आदि नामों से जाना जाता है। उन्होंने दलितों के लिए सादगी को अपनाते हुए अपना पूरा जीवन उन्हें समर्पित कर दिया था। कांशीराम के राजनीतिक किस्से भी काफी हैं। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर कांशीराम के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और परिवार
पंजाब के एक गांव में 15 मार्च 1934 को रैदासी सिख परिवार में कांशीराम का जन्म हुआ था। कांशीराम का नाम भारतीय राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक के रूप में लिया जाता है। उन्होंने दलितों के लिए सरकारी नौकरी छोड़ दिया था और दलितों के लिए आंदोलन शुरू किया। कांशीराम ने दलितों के उत्थान के लिए अपना घर भी छोड़ दिया था। उन्होंने घर छोड़ने से पहले अपने परिवार को एक चिट्ठी लिखी थी। जिसमें उन्होंने लिखा था कि वह अब घर कभी वापस नहीं आएंगे। क्योंकि गरीबों दलितों का घर ही मेरा भी घर है। साथ ही उन्होंने लिखा कि वह कोई नौकरी नहीं करेंगे, जब तक बाबा साहब आंबेडकर का सपना पूरा नहीं हो जाता। तब तक वह चैन से नहीं बैठेंगे।
राजनीतिक सफर
साल 1964 में कांशीराम ने रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया ज्वॉइन की। लेकिन कुछ कारणों की वजह से कांशीराम ने वह पार्टी छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने दलित शोषित संघर्ष समिति अपना संगठन भी बनाया। बाद में उन्होंने बामसेफ बनाया और साल 1984 में बीएसपी की स्थापना की, जो आज के समय में राष्ट्रीय स्तर की पार्टी है। कांशीराम दलितों के उत्थान के लिए जाने जाते थे और उन्होंने दलितों के हक के लिए लड़ाई लड़ी। राजनीति में वह बहुजन नायक के नाम से जाने गए। राजनीति में कुछ किस्से ऐसे भी रहें, जो उनको राजनीति का अजातशत्रु बनाते हैं।
मुलायम सिंह से किया था गठबंधन
यूपी में कांशीराम और मुलायम सिंह यादव ने गठबंधन किया था और इस गठबंधन के बाद यूपी की राजनीति में एक नारा आया था कि मिले मुलायम और कांशीराम हवा में उड़ गए जय श्री राम।
ठुकराया था राष्ट्रपति बनने का ऑफर
देश के भूतपूर्व राष्ट्रपति वाजपेयी चाहते थे कि कांशीराम राष्ट्रपति बनें और उन्होंने इसका ऑफर भी दिया था। लेकिन कांशीराम ने इस ऑफर को ठुकरा दिया था। साल 1996-98 के समय जब शंकर दयाल शर्मा का राष्ट्रपति का कार्यकाल खत्म हो रहा था, तब कांशीराम को राष्ट्रपति बनने का ऑफर मिला था। लेकिन उन्होंने ऑफर ठुकराते हुए कहा कि वह इस देश के प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं, क्योंकि कांशीराम जानते थे कि प्रधानमंत्री की कुर्सी में असली सत्ता है।
तीन बार हारे थे लोकसभा चुनाव
बता दें कि कांशीराम ने पहला लोकसभा चुनाव छत्तीसगढ़ की जांजगीर चंपा सीट से लड़ा था। इस दौरान उनको हार का सामना करना पड़ा था। फिर साल 1988 में वह इलाहाबाद से चुनाव लड़े थे। तब भी उनको हार का सामना करना पड़ा था। फिर साल 1989 में ईस्ट दिल्ली लोकसभा से चुनाव लड़ा और इस दौरान भी उनको हार मिली थी। साल 1991 में बसपा-सपा गठबंधन के बाद वह यूपी की इटावा सीट से जीते और पहली बार लोकसभा पहुंचे।