कनाडा की संसद में कन्नड़ की गूंज, सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा वीडियो

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | May 20, 2022

बेंगलुरु। कनाडा की संसद में वहां के एक सांसद चंद्र आर्य द्वारा अपनी मातृकन्नड़ में दिया गया भाषण सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है और अपनी मातृ से प्रेम करने को लेकर उनकी प्रशंसा हो रही है। कनाडा के नेपियन से सांसद आर्य मूल रूप से कर्नाटक के तुमकुरु जिला स्थित सिरा तालुका के एक छोटे से गांव द्वारालु के रहने वाले हैं। आर्य ने अपने भाषण का वीडियो साझा करते हुए ट्वीट किया, ‘‘मैंने कनाडा की संसद में अपनी मातृकन्नड़ में बोला। यह खूबसूरत है जिसका लंबा इतिहास है और करीब पांच करोड़ लोग इस को बोलते हैं। यह पहली बार है जब भारत के बाहर दुनिया में किसी देश की संसद में कन्नड़ में भाषण दिया गया है।’’ आर्य के भाषण देने पर उनके साथी सांसदों ने अपनी सीट पर खड़े होकर तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनकी सराहना की। आर्य ने संसद में दिए भाषण में कहा, ‘‘ मान्यवर, मैं प्रसन्न हूं कि मुझे कनाडा की संसद में कन्नड़ में बोलने का अवसर मिला। 

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यह पांच करोड़ कन्नड़ भाषी लोगों के लिए गर्व का क्षण है कि भारत के राज्य कर्नाटक के तुमकुरु जिला स्थित सिरा तालुका के द्वारालु गांव में जन्मा व्यक्ति कनाडा की संसद के लिए चुना गया और वह कन्नड़ में बोल रहा है।’’ उन्होंने रेखांकित किया कि कनाडा में रहने वाले कन्नड़ भाषियों ने वर्ष 2018 में कनाडा की संसद में ‘‘राज्योत्सव’’’मनाया था। आर्य के भाषण की प्रशंसा करते हुए कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि उन्होंने कन्नड़ का विश्व मंच पर प्रसार किया है। उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘चंद्र आर्य की दिल से प्रशंसा करता हूं जिन्होंने साबित किया कि वह जीवन में चाहे कितना भी बड़ा मुकाम क्यों न हासिल कर लें, अपनी जड़ों को हमेशा याद रखेंगे।’’ वृहद और मध्यम उद्योग मंत्री मुर्गेश आर निरानी ने कहा, ‘‘यह निश्चित तौर पर सम्मान की बात है कि हमारी कन्नड़ में कनाडियाई सांसद भाषण दे रहा है। यह हमें गर्व से भर देता है।’’ कांग्रेस की कर्नाटक इकाई के अध्यक्ष डी के शिवकुमार ने कहा, ‘‘यह देख कर खुशी होती है कि हमारी महान कन्नड़, कनाडा की संसद में बोली जा रही है। यह श्री चंद्र आर्य का महान विचार है। दुनिया भर में रह रहे कन्नड़ भाषियों को हमारी मातृका पताका ऊंचा रखना चाहिए।’’ आर्य ने हाल में कनाडा के लोगों और सरकार से अपील की थी कि वे हिंदुओें के प्राचीन प्रतीक ‘स्वास्तिक’ और 20 सदी में नाजी प्रतीक ‘ हेकेनक्रेउज़ो’ के अंतर को समझें। उन्होंने कहा था कि दोनों प्रतीकों में कोई समानता नहीं है।

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