राष्ट्रपिता महात्मा गांधी मानते थे कि देश की संस्कृति देश के लोगों के हृदय और आत्मा में बसती है। भारत की संस्कृति कहती है कि व्यक्ति से बड़ा परिवार होता है, परिवार से बड़ा समाज और समाज से बड़ा राष्ट्र... लेकिन क्या ये भावना वाकई भारत के लोगों के दिलों में बसती है?
24 दिसंबर 1999 ये तारीख तो आपको अच्छे से याद होगी। ये वो दिन है जिसने भारत की राजनीति बदली, तालिबान नाम के आतंक की ग्लोबल शक्ल आपको दिखाई दी। साथ ही भारत और पाकिस्तान संबंधों से लेकर भारत की अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक समझ की एक नई परिभाषा लिखी गई। ये नेपाल से उड़े इंडियन एयरलाइंस के विमान IC 814 के अपहरण का दिन था। दरअसल हरेक खबर की उम्र इतनी नहीं होती की उसे 20 सालों तक याद रखा जाए। आज हम बात करेंगे भारत के इतिहास की सबसे बड़ी घटना की जब 8 दिन तक चले विमान अपहरण के ड्रामे के बाद 3 खंखार आंतकियों को छोड़ना पड़ा था।
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20 साल पहले, 24 दिसंबर की वो शाम, दिन था शुक्रवार और घड़ी में बज रहे थे साढ़े चार। काठमांडू के त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट से इंडियन एयरलाइंस की फ़्लाइट संख्या आईसी 814 नई दिल्ली के लिए रवाना होती है। लेकिन दिल्ली जा रही विमान आईसी 814 शाम पांच बजे लाहौर की तरफ मोड़ी जा चुकी थी। कैप्टन देवी शरण ने आतकंवादियों से कहा कि विमान में लाहौर तक जाने का ईंधन नहीं है। इसी बीच कैप्टन देवी शरण प्लेन में लगा इमरजेंसी बटन दबा चुके थे। जिससे भारत के अधिकारियों को ये पता चल गया था कि विमान का अपहरण हो गया है। विमान में सभी सवार यात्रियों को आतंकवादियों ने बंधक बना लिया था। विमान को लाहौर में उतरने नहीं दिया गया था और उसका ईंधन खत्म हो रहा था। विमान के कैप्टन देवी शरण ने आतंकवादियों से कहा कि उन्हें किसी भी हालत में विमान को अमृतसर में उतारना ही पड़ेगा। इधर भारत सरकार की क्राइसेस मैनेजमेंट की बैठक हो रही थी। शाम छह बजे विमान अमृतसर में ईंधन भराने के लिए थोड़ी देर के लिए रुकता है। अमृतसर में ये बात कही गई कि एनएसजी को भेजा जा रहा है। तब तक विमान को अमृसतर में रोक कर रखा जाए। आधे घंटे तक विमान अमृतसर के एयरपोर्ट पर खड़ा रहा लेकिन कोई टैंकर नहीं आया। कैप्टन देवी शरण ने बिना ईंधन भराए विमान को उड़ाने से इंकार कर दिया। लेकिन आतंकवादी समझ गए कि वो ज्यादा देर तक रूके तो फंस सकते हैं। आंतकवादी 30 से 0 तक की गिनती करेंगे। अगर विमान नहीं उड़ा तो वो सबको गोली मार देंगे। बिना ईंधन भराए ही आईसी 814 और वहां से लाहौर के लिए रवाना हो जाता है। भारत ने आतंकवादियों के कब्जे से विमान को छुड़ाने का एक बड़ा मौका गंवा दिया था। विमान में ईंधन बिल्कुल भी नहीं बचा था। लाहौर एयरपोर्ट विमान को उतरने इजाजत नहीं दे रहा था। यहां तक कि एयरपोर्ट की सभी लाइट बुझा दी गई। विमान को मिलने वाला सिगन्ल भी बंद कर दए गए। कैप्टन के पास कोई चारा नहीं बचा और वो विमान को लाहौर की चलती सड़क पर उतारने लगें। विमान को क्रैश होने की हालत में देखकर लाहौर एयरपोर्ट ने आखिरकार रनवे देने की इजाजत दे दी। ये विमान रात आठ बजकर सात मिनट पर लाहौर में लैंड करता है। यहां विमान में ईंधन भराया गया और फिर रात को दस बजे के करीब लाहौर से दुबई के रास्ते ले गए। भारत ने दुबई में कमांडो आपरेशन का प्लान बनाया लेकिन यूएई की सरकार ने इसकी इजाजत नहीं दी। आतंकियों ने यहां पर विमान में ईंधन भरवाया और 27 यात्रियों को छोड़ भी दिया। दुबई से आतंकवादी इंडियन एयरलाइंस के अपहृत विमान को अफगानिस्तान लेकर गए। अगले दिन सुबह के तकरीबन साढ़े आठ बजे अफगानिस्तान में कंधार की जमीन पर उतरता है। उस दौर में कंधार पर तालिबान की हुकूमत थी।
विमान पर कुल 180 लोग सवार थे। विमान अपहरण के कुछ ही घंटों के भीतर आतंकवादियों ने एक यात्री रूपन कात्याल को मार दिया। 25 साल के रूपन कात्याल पर आतंकवादियों ने चाकू से कई वार किए थे। कंधार में पेट के कैंसर से पीड़ित सिमोन बरार नाम की एक महिला को कंधार में इलाज के लिए विमान से बाहर जाने की इजाजत दी गई और वो भी सिर्फ 90 मिनट के लिए।
उधर, बंधक संकट के दौरान भारत सकरार की मुश्किल भी बढ़ रही थी। मीडिया का दबाव था, बंधक यात्रियों के परिजन विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। और इन सब के बीच अपरहरणकर्ताओं ने अपने 36 आतंकवादी साथियों की रिहाई के साथ-साथ 20 करोड़ अमेरिकी डॉलर की फिरौती की मांग रखी थी।
अपहरणकर्ता एक कश्मीरी अलगाववादी के शव को सौंपे जाने की मांग पर भी अड़े थे लेकिन तालिबान की गुजारिश के बाद उन्होंने पैसे और शव की मांग छोड़ दी। लेकिन भारतीय जेलों में बंद आतंकवादियों की रिहाई की मांग मनवाने के लिए वे लोग बुरी तरह अड़े हुए थे।
पेट के कैंसर की मरीज सिमोन बरार की तबियत विमान में ज्यादा बिगड़ने लगी और तालिबान ने उनके इलाज के लिए अपहरणकर्ताओं से बात की। तालिबान ने एक तरफ़ विमान अपहरणकर्ताओं तो दूसरी तरफ भारत सरकार पर भी जल्द समझौता करने के लिए दबाव बनाए रखा।
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वर्ष 1999 में इंटेलिजेंस ब्यूरो के तत्कालीन एडिशनल डायरेक्टर और वर्तमान में देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल आतंकवादियों से बात करने कांधार गए थे।
एक वक्त तो ऐसा लगने लगा कि तालिबान कोई सख्त कदम उठा सकता है। लेकिन बाद में गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा, "तालिबान ने ये कहकर सकारात्मक रवैया दिखाया है कि कंधार में कोई रक्तपात नहीं होना चाहिए नहीं तो वे अपहृत विमान पर धावा बोल देंगे। इससे अपहरणकर्ता अपनी मांग से पीछे हटने को मजबूर हुए।"
यात्रियों के परिवार लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे थे और किसी भी कीमत पर अपनों को वापस पाना चाहते थे। लोगों का कहना था चाहे कश्मीर दे दो, चाहे कुछ भी दे दो...बस घरवालों को वापस लाओ। जब उस वक्त के विदेश मंत्री जवसंत सिंह ने इन लोगों को ये समझाने की कोशिश की कि सरकार को देश के हित का भी ख्याल रखना होता है। तो वहां मौजूद भीड़ शोर मचाने लगी और एक व्यक्ति ने तो यहां तक कह दिया कि भाड़ में जाए देश और भाड़ में जाए देश का हित। इस घटना का जिक्र उस वक्त प्रधानमंत्री कार्यालय में काम करने वाले पत्रकार कंचन गुप्ता ने अपने एक Blog में भी किया था। वर्ष 2008 में -The Truth Behind Kandahar नामक Blog में कंचन गुप्ता लिखते हैं कि इसी दौरान..एक शाम कारगिल के हीरो शहीद Squadron Leader अजय आहुजा की पत्नी प्रधानमंत्री कार्यलाय पहुंचीं। उन्होंने अधिकारियों से निवेदन किया कि उन्हें विमान में मौजूद लोगों के रिश्तेदारों से बात करने दी जाए। प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास पर शहीद की पत्नी ने मीडिया और लोगों से बात की। उन्होंने लोगों को समझाने की कोशिश की भी कोशिश की कि भारत को आतंकवादियों के आगे नहीं झुकना चाहिए। उन्होंने अपनी आप-बीती भी सुनाई और लोगों को समझाया कि कोई भी पीड़ा राष्ट्रहित से बड़ी नहीं हो सकती। लेकिन तभी भीड़ में से कोई चिल्लाया और कहा कि ये खुद एक विधवा हैं और चाहती है कि दूसरी महिलाएं भी विधवा हो जाए। फिर भीड़ में से किसी ने कहा कि ये कहां से आई हैं और इसके बाद लोग उनके साथ धक्का-मुक्की करने लगे।
उस वक्त सरकार पर दबाव डालने का काम सिर्फ जनता ने ही नहीं किया बल्कि विपक्षी राजनीतिक पार्टियां भी लगातार सरकार पर दबाव बना रही थी और मीडिया ने उनका भरपूर साथ भी दिया। वामपंथी नेता वृंदा करात उस वक्त अक्सर बंधकों के परिवार वालों से मिलने 7 रेस कोर्स जाया करती थी। यह देश के प्रधानमंत्री का आधिकारिक आवास है और उस वक्त बंधकों के परिवार प्रधानमंत्री के आवास के अंदर ही कैंपेन कर रहे थे। पत्रकार कंचन गुप्ता के मुताबिक बृंदा करात अक्सर बंधकों के रिश्तेदारों से मिलने जाया करती थीं और धीरे धीरे वहां ऐसा माहौल बनने लगा कि सरकार को किसी भी कीमत पर बंधकों को रिहा कराना चाहिए। ये नेता विमान में फंसे लोगों के घरवालों को रोज ही अटलजी के निवास के सामने इकट्ठा कर लाते थे और उनका प्रदर्शन टेलीविजन पर लाइव दिखाया जाता था, ताकि सरकार पर आतंकवादियों की रिहाई के लिए दबाब बने। एक बार भी किसी चैनल ने यह नहीं दिखाना जरूरी समझा कि जिन आतंकवादियों की रिहाई की माँग की जा रही है, उन्होंने कितने निर्दोष लोगों की हत्यायें की थीं और उनको गिरफ्तार करने में भारतीय सुरक्षा बलों को क्या-क्या पापड़ बेलने पड़े थे। कई आतंकवादी तो अनेक सैनिकों के बलिदान के बाद ही पकड़े जा सके थे।
आखिरकार तत्कालीन एनडीए सरकार को यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चत करने के लिए तीन आतंकवादियों को कंधार ले जाकर रिहा करना पड़ा था। तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के विदेश मंत्री जसवंत सिंह खुद तीन आतंकवादियों को अपने साथ कंधार ले गए थे। छोड़े गए आतंकवादियों में जैश-ए -मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर, अहमद जरगर और शेख अहमद उमर सईद शामिल थे। 31 दिसंबर को सरकार और अपहरणकर्ताओं के बीच समझौते के बाद दक्षिणी अफगानिस्तान के कंधार एयरपोर्ट पर अगवा रखे गए सभी 155 बंधकों को रिहा कर दिया गया।
बाद में इसी मसूद अज़हर ने आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद की स्थापना की और ये आतंकवादी संगठन अब तक तीन सौ से ज्यादा भारतीयों की जान ले चुका है। जैश ए मोहम्मद के आतंकवादियों ने ही 2001 में संसद भवन और जम्मू-कश्मीर की विधानसभा पर हमला किया था। 2019 में पुलवामा में CRPF के 40 जवानों की जान लेने वाले आतंकवादी संगठन का नाम भी जैश-ए-मोहम्मद ही है। लेकिन सवाल यही है कि आखिर मसूद अज़हर समेत तीन खूंखार आतंकवादियों को छोड़ने की नौबत क्यों आई ? इसका जवाब ये है कि आज भी हमारे देश में आम लोगों के लिए परिवार से बड़ा कुछ नहीं है और राजनेताओं के लिए राजनीति से बड़ा कुछ नहीं है।
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अजहर के संगठन जैश-ए-मोहम्मद का मकसद केवल कश्मीर को भारत से अलग करना है। इसकी स्थापना मसूद अज़हर ने मार्च 2000 में की थी। भारत में हुए कई आतंकी हमलों के लिए ज़िम्मेदार जैश-ए-मोहम्मद को पाकिस्तानी सरकार ने दिखावे के लिए जनवरी 2002 में बैन कर दिया था। लेकिन इसका सरगना मसूद अजहर इतना शातिर है कि उसने जैश-ए-मुहम्मद का नाम बदलकर 'ख़ुद्दाम-उल-इस्लाम' कर दिया था। इस आतंकवादी संगठन को भारत के अलावा संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन ने भी आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल कर रखा था।
कौन है मसूद अजहर
मोस्ट वॉन्टेड आतंकवादी मौलाना मसूद अज़हर का जन्म बहावलपुर, पाकिस्तान में 10 जुलाई 1968 को हुआ था। उसके 9 अन्य भाई-बहन थे। कुछ एजेंसियां उसके जन्म की तारीख 7 अगस्त, 1968 बताती हैं। अजहर के पिता अल्लाह बख्श शब्बीर एक सरकारी स्कूल का प्रधानाध्यापक था। उसका परिवार डेयरी और पॉल्ट्री के कारोबार से जुड़ा था। इस आतंकी ने बानुरी नगर, कराची के जामिया उलूम उल इस्लामिया नामक मदरसे से तालीमा हासिल की और वहीं उसका सम्पर्क हरकत-उल-अंसार नामक संगठन से हुआ जो उस वक्त अफगानिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठन था। वह उर्दू पत्रिका साद-ए-मुजाहिद्दीन और अरबी पत्रिका सावत-ए-कश्मीर का संपादक भी था।
मौलाना फजलुर रहमान मसूद अजहर से प्रभावित हुआ और उसने उसे आतंकवाद के लिए फंड रेजिंग का काम सौंप दिया और मसूद अजहर भी इस काम में अच्छा निकला और उसने हरकत उल मुजाहिदीन को खूब फायदा पहुंचाया. फंड रेजिंग के दौरान अपने द्वारा दिए गए भाषणों ने मसूद अजहर को लोकप्रिय बना दिया। 1999 में मौलाना मसूद अजहर ने आईएसआई की मदद से अपना खुद का संगठन जैश-ए-मोहम्मद बनाया। संगठन का रूप कितना विभात्स है वो आज हमारे सामने है।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस कहा करते थे- हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा, ताकि भारत जी सके। नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा कही गई ये बातें सिर्फ देश के सैनिकों और उनके परिवार पर लागू नहीं होती। ये भारत के हर आम नागरिक के मन में एक मंत्र की तरह जीवित रहने चाहिए। लेकिन अफसोस की बात ये है कि, 20 साल पहले, कंधार हाईजैक के दौरान भारत के लोगों की मज़बूत इच्छाशक्ति, कमज़ोर पड़ गई।
- अभिनय आकाश