ख्वाब और हकीकत में खासा अंतर होता है। देखा हुआ ख्वाब जब हकीकत में तब्दील होता है तो इंसान खुद को धन्य समझता है। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह भी आज ऐसा ही महसूस करते हैं। उन्होंने वर्षों पहले एक अकल्पनीय सपना देखा था। जो सच होने को है। राम मंदिर निर्माण की पहली ईंट पांच अगस्त को लगेगी। कल्याण सिंह 88 वर्ष के हो गए हैं, स्वास्थ्य ज्यादा ठीक नहीं रहता, बोलते हैं तो जुबान लड़खड़ाती है। बावजूद इसके 6 दिसंबर 1992 की तारीख को लिए गय अपने फैसले पर वह गर्व करते हैं। मंदिर निर्माण के लिए होने वाले भूमि पूजन को लेकर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से रमेश ठाकुर ने विशेष बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश-
प्रश्न- राम मंदिर बनाने का आपका सपना सच हो रहा है, कैसा महसूस कर रहे हैं आप?
उत्तर- सपना मात्र मेरे अकेले का नहीं, समूची आवाम का था। प्रत्येक रामभक्तों की एक ही आकांक्षा थी, एक ही सपना और एक ही सामूहिक संकल्प था। अयोध्या में राम मंदिर बनते देखना। सुप्रीम कोर्ट को कोटि−कोटि धन्यवाद जिन्होंने नासूर मसले का हल निकाल कर मंदिर बनने का रास्ता साफ किया। प्रभु श्रीराम केवल भगवान ही नहीं, बल्कि अनगिनत लोगों की आस्था के बिंदु हैं जिनके नाम लेने मात्र से लोगों की सुबह होती है। इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है उनकी जन्मस्थली को सहेजें और उसे सुरक्षित रखें। इसी को ध्यान में रखकर 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में क्रांति हुई। उसे कृत्य समझ लो, या संकल्प?
प्रश्न- मंदिर निर्माण आंदोलन के नायकों में आपकी भूमिका सबसे अलग थी?
उत्तर- आंदोलन में एक सामान्य कारसेवक से लेकर सभी छोटे−बड़े किरदार किसी किवंदती से कम नहीं हैं। सभी की भूमिका एक जैसी है। किसी को कमत्तर आंकने का मतलब उनकी आस्था पर चोट मारने जैसा होगा। भविष्य में जब−जब राम मंदिर के इतिहास के पन्ने पलटे जाएंगे, तो सभी तिलिस्मी आंदोलन के शिल्पीकारों की जय-जयकार होगी। चाहे बाला साहेब ठाकरे हों, रामचंद्र परमहंस, अशोक सिंहल जैसे रामभक्त नेता, जो परलोक चले गए हैं उनकी आत्मा को आज परम प्रलोकिक आनंद मिल रहा होगा। मंदिर निर्माण के लिए इन नेताओं का जुनून और जज्बा देखने लायक हुआ करता था।
प्रश्न- कोरोना के चलते भव्य समारोह के बिना ही मंदिर का पूजन किया जाएगा?
उत्तर- आने वाली पांच अगस्त की तारीख हमारे लिए एतिहासिक होने वाली है। ये तारीख करोड़ों रामभक्तों को सदियों तक माधुर्य का एहसास कराएगी। कोरोना बीमारी भी भव्यता में खलल नहीं डाल सकेगी। तैयारियां जोरों पर हैं, पूरी अयोध्या भक्तों की अगवानी के लिए सजी हुई है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे वनवास पूरा करके मर्यादा पुरुषोतम प्रभु श्रीराम अपने घर को लौट रहे हैं। मेरे जीवन का अंतिम लक्ष्य यही था कि मरने से पहले राम मंदिर का निर्माण होते देखूं। सपना सच हो रहा है, शायद अब शांति से मृत्यु का वरण कर सकूंगा।
प्रश्न- बाबरी मस्जिद ढांचा विध्वंस का कोई अफसोस आपको?
उत्तर- इस अध्याय पर चर्चा ना ही हो तो अच्छा है, क्योंकि चर्चा हमेशा जीव इंसान या निर्जीव वस्तु की होती है जिसका कोई वजूद होता है। एएसआई की किसी रिपोर्ट में विध्वंस स्थल पर मस्जिद होने की बात नहीं कही गई। पर, ये तथ्य सबके सामने जरूर है कि जब−जब वहां खुदाई हुई तो रामयुग के कोई न कोई अवशेष मिले। इससे बड़ा सबूत और भला क्या चाहिए। बिलावजह का बखेड़ा खड़ा किया गया। मैं किसी धर्म−समुदाय का विरोध नहीं करता। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण प्रभु राम के जीवंत के आधार पर किया जा रहा है, न कि किसी की आस्था को आहत करके या जोर जबरदस्ती से।
प्रश्न- मंदिर बनने के बाद आस्था के अलावा अर्थव्यवस्था को भी मतबूती मिलेगी?
उत्तर- आस्था और अर्थव्यवस्था दोनों अलग−अलग बातें हैं। मन के लिए आस्था, तो पेट के लिए अर्थव्यवस्था जरूरी होती है। संसार भर में रहने वाले रामभक्तों व हिंदुस्तानियों में अमन, शांति व एकता का विश्वास जगेगा। साथ ही अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी, क्योंकि मंदिर निर्माण से कई तरह के रोजगार पैदा होंगे। धार्मिक पर्यटन के रूप में अयोध्या को विश्व पटल पर नई पहचान मिलेगी। इससे राज्य व केंद्र सरकार को प्रत्यक्ष रूप से फायदा होगा।
प्रश्न- आप इस ऐतिहासिक क्षण का गवाह बनेंगे या नहीं?
तबियत अगर ठीक रही तो जाउंगा। दशकों से दिल में एक ही तमन्ना थी कि अयोध्या में प्रभु का मंदिर बने और झगड़ा समाप्त हो। प्रधानमंत्री के हाथों से भूमि पूजन का कार्य संपन्न होगा, ये हमारे लिए खुशी की बात है। इसलिए जरूरी नहीं कि उस लम्हों को देखने के लिए इंसान का वहां स्वयं होना जरूरी है। प्रभु राम में प्रत्येक इंसान के भीतर अगाध आस्था और श्रद्धा है। घर में रहकर भी वहां जैसी मौजूदगी का हम एहसास महसूस करेंगे।
प्रस्तुति- रमेश ठाकुर