By विंध्यवासिनी सिंह | Oct 24, 2020
नवरात्रों का आरंभ हो चुका है और हम इस दौरान देवी माता की कई रूपों में पूजा करते हैं। वहीं आज हम माता रानी के एक ऐसे मंदिर के बारे में बात करेंगे, जिसकी जोत कभी नहीं बुझती है। इस मंदिर को 'जोता वाली मंदिर' कहते हैं और यह मां भवानी के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर को ज्वालामुखी मंदिर के नाम से पूरी दुनिया जानती है।
मंदिर को लेकर क्या है पौराणिक कथा?
पुराणों के अनुसार एक बार राजा दक्ष ने महायज्ञ का आयोजन किया और उसमें उन्होंने अपनी 60 कन्याओं को निमंत्रण दिया। विचित्र बात यह थी कि भगवान शिव से नाराजगी के कारण उन्होंने अपनी पुत्री सती को यज्ञ के लिए निमंत्रण नहीं दिया था।
बावजूद बिना निमंत्रण के, देवी सती पिता का घर समझकर बिना बुलाए वहां पहुंच जाती हैं। जब यज्ञ-स्थल पर माता सती पहुंचती है, तो वहां राजा दक्ष के द्वारा लगातार भगवान शिव का अपमान किए जाने को लेकर वह बेहद दुखी होती हैं और हवन कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग देती हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव माता सती के देहत्याग से विचलित हो गए थे और उनके मृत शरीर को लेकर तीनों लोकों में घूमते रहे। इस दौरान माता सती के शरीर के अंग 51 जगह गिरे और उन्हें 51 शक्तिपीठों के रूप में जाना जाता है। वहीं माता सती की जिह्वा जिस स्थान पर गिरी वह स्थान 'ज्वालामुखी मंदिर' के नाम से जाना जाता है।
9 जोतों के जलने की कथा
कहा जाता है कि ज्वालामुखी मंदिर में 9 जोतें जलती हैं, जो क्रमशः माता के नौ रूपों का प्रतीक हैं। इनमें से जो सबसे बड़ी जोत जलती है, उसे ज्वाला माता का रूप माना जाता है और अन्य 8 जोतों को मां अन्नपूर्णा, मां चंद्रघंटा, मां विंध्यवासिनी, मां महालक्ष्मी, मां हिंगलाज माता, मां सरस्वती, मां अंबिका और माँ अंजी के रूप में पूजा जाता है।
इन ज्वालाओं के जलने के पीछे एक और कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार एक बार माता ज्वाला के प्रचंड भक्त बाबा गोरखनाथ माता की तपस्या में लीन थे। तभी गोरखनाथ को जोरों की भूख लगती है और वह माता को यह कह कर बाहर चले जाते हैं कि हे माता में भिक्षा मांग कर खाने के लिए कुछ ले आता हूं तब तक आप पानी गर्म करके रखें भोजन पकाने के लिए। कहा जाता है कि गोरखनाथ भिक्षा मांगने गए तो वापस नहीं लौटे और तभी से उनकी प्रतीक्षा में यह ज्वाला जल रही है।
ऐसा भी कहा जाता है कि कलयुग के अंत तक गोरखनाथ लौटकर आएंगे तब तक उनके प्रतीक्षा में यह ज्वाला जलती रहेगी।
अकबर ने की थी ज्वाला बुझाने की कोशिश
कहा जाता है कि एक बार मुगल शासक अकबर ने मां ज्वाला के इस चमत्कार को सुना तो वह अपनी पूरी सेना को लेकर माता के मंदिर में पहुंच गया और जोतों को बुझाने की कोशिश करने लगा। लेकिन अकबर की पूरी सेना मिलकर माता रानी की ज्वाला को बुझा नहीं पाई।
अंत में अकबर को माता रानी की शक्ति का एहसास हुआ और उसने माता रानी के मंदिर में सोने का छत्र चढ़ाने का निश्चय किया लेकिन माता रानी ने अकबर के इस चढ़ावे को अस्वीकार कर दिया और सोने का छत्र गिरकर किसी अनजान धातु में तब्दील हो गया और तब से लेकर अब तक उस धातु का पता नहीं लगाया जा सका है।
कैसे पहुंचे माता के धाम?
हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से 30 किलोमीटर दूर ज्वाला देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। यहाँ पठानकोट, दिल्ली, शिमला आदि प्रमुख शहरों से सीधे बस, टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है। यहाँ पहुँचने के लिए नजदीकी एयरपोर्ट गगल में है, जो कि ज्वालाजी से 46 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। नजदीकी रेलवे स्टेशन की बात करें तो पालमपुर नजदीकी स्टेशन है।
कहा जाता है कि माता के मंदिर में जो भी सच्चे मन से मांगता है उसकी हर मुराद पूरी हो जाती है।
- विंध्यवासिनी सिंह