'इंदिरा की तानाशाही के आगे न्यायपालिका ने टेके थे घुटने', आपातकाल पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का बड़ा बयान

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By अंकित सिंह | Aug 10, 2024

'इंदिरा की तानाशाही के आगे न्यायपालिका ने टेके थे घुटने', आपातकाल पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का बड़ा बयान

आपातकाल को लेकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का बड़ा बयान सामने आया है। जगदीप धनखड़ ने कहा कि यदि उच्चतम स्तर पर न्यायपालिका इंदिरा गांधी की तानाशाही के आगे झुकी नहीं होती, तो आपातकाल की स्थिति नहीं आती। उन्होंने कहा कि हमारा देश बहुत पहले ही अधिक विकास कर चुका होता। हमें दशकों तक इंतजार नहीं करना पड़ता। जगदीप धनखड़ ने आज कानून के शासन के प्रति न्यायपालिका की दृढ़ प्रतिबद्धता की सराहना की, साथ ही भारत के इतिहास के एक दर्दनाक अध्याय - जून 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा लगाया गया आपातकाल - पर भी विचार किया। 

 

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आपातकाल के दौर को आजादी के बाद का "सबसे क्रूर और काला दौर" बताते हुए, धनखड़ ने चिंता व्यक्त की कि इस दौरान न्यायपालिका का सर्वोच्च स्तर, जो आमतौर पर "बुनियादी अधिकारों का एक दुर्जेय गढ़" होता है, "निर्लज्ज तानाशाही शासन" के आगे झुक गया। उपराष्ट्रपति ने कहा, "सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि आपातकाल के दौरान कोई भी व्यक्ति अपने अधिकारों के लिए किसी भी न्यायालय में नहीं जा सकता।" उन्होंने असंख्य नागरिकों की स्वतंत्रता पर इस फैसले के गंभीर प्रभावों की ओर इशारा किया। 


उन्होंने कहा कि सरकार ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने का संकल्प लिया है, ताकि यह याद दिलाया जा सके कि जब एक व्यक्ति ने भारत के संविधान को लापरवाही से रौंद दिया था, तब क्या हुआ था। संविधान के किसी भी हिस्से का पालन नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान, एक व्यक्ति ने स्वतंत्रता को बंधक बना लिया था। बिना किसी गलती के गिरफ्तार किए गए लोगों को न्यायिक मदद लेने से रोक दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने 9 उच्च न्यायालयों के उन फैसलों को पलट दिया, जिन्होंने पीड़ितों के पक्ष में फैसला सुनाया था। यह न्यायालय 9 उच्च न्यायालयों की उस सचित्र सूची में था। मुझे वास्तव में इस संस्था का हिस्सा होने पर गर्व है!!


उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति ने स्वतंत्रता को बंधक बना लिया और देश भर में हजारों लोगों को बिना किसी गलती के गिरफ्तार कर लिया गया, सिवाय इसके कि वे भारत माता और राष्ट्रवाद में दिल से विश्वास करते थे। भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) ने क्रमशः भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह ली है और ये एक जुलाई से प्रभावी हो गए हैं। 

 

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उन्होंने कहा, ‘‘ये कानून हमें औपनिवेशिक विरासत से मुक्त करने और उसकी मानसिकता से छुटकारा दिलाने के लिए हैं। ये कानून हमारे द्वारा, हमारे लिए हैं...।’’ धनखड़ ने जोधपुर में एक राज्य स्तरीय सम्मेलन में न्यायिक अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘ (नए कानूनों को लेकर) ‘मिशन मोड’ में रहें, इनके प्रति जुनूनी बनें, लोगों को इनकी जरूरत है। क्रांतिकारी बदलाव आए हैं। इन कानूनों को लागू करने में आपकी तैयारी और भागीदारी ही इस क्रांतिकारी कदम की सफलता को निर्धारित करेगी।’’ 

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