By अभिनय आकाश | Nov 20, 2019
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एक तरफ शहर कोतवाल के संतरी थे दूसरी तरफ कलम-किताब के धुरंधर जिनकी मुलाकात की अर्जियां विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर के दरवाजे पर ही दम तोड़ गई। जेएनयू के छात्रों ने जिद ठान ली थी कि अपनी बात संसद के हाकिमों तक पहुंचाएंगे। लेकिन जवानों की पलटन अड़ गई कि संसद के सामने तुम्हारा बोलना गुनाह है। कैंपस के बाहर जाने वाले हर रास्ते पर पुलिस ने पीली पाइपों वाली कतारे तान दी थी। आसपास के कई जिलों की पुलिस छात्रों के जत्थे को रोकने के लिए तैनात थी। बड़े-बड़े अफसर, अर्धसैनिक बलों की कंपनियां तैनात थी। लेकिन जवानों से बड़ी साबित हुई नौजवानों की जिद। हक के लिए तनी हुई मुट्ठियों के आक्रोश ने व्यवस्था की बंदिशों को मानने से इंकार कर दिया।
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जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय दुनिया की प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक है। 2017 में जेएनयू को NAAC में A++ ग्रेड दिया गया। देश की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण, विदेश मंत्री एस जयशंकर और अर्थशास्त्र में नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी भी जेएनयू के छात्र रहे हैं। QS रैकिंग 2019 में पहले 500 यूनिवर्सिटी में शामिल है जेएनयू। 2016 में National Institutional Ranking में जेएनयू को दूसरा स्थान मिला। जेएनयू में मलेरिया का वैक्सीन बनाने की दिशा में सफल रिर्सच किया।
अब आपको बताते हैं कि विश्वविद्यालय ने किया क्या है? छात्र मांग क्या रहे हैं? और बीच का रास्ता क्या निकला है।
जेएनयू के छात्रों के भड़कने की क्या वजह रही
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अब जरा नजर डालते हैं कि फीस वापसी क्या हुई थी। सिंगल बेडरुम का किराया 20 रुपए था जिसे बढ़ाकर 600 रुपए कर दिया गया था उसे 200 कर दिया गया। डबल बेडरुम का किराया 10 रुपए था उसे तीन सौ रुपए किया गया था। फिर उसे 100 रुपए किया गया। मेस कि सिक्योरिटी 5500 रुपए से बढ़ाकर 12000 की गई थी जिसे वापस से 5500 कर दी गई। छात्र अड़ गए कि ये तो धोखा है क्योंकि जो असल मांग थी वो तो मानी ही नहीं गई। क्या थी वो मांगे- पानी बिजली के लिए पहले छात्रों को कोई पैसा नहीं देना होता था। लेकिन अब छात्रों को पानी और बिजली का बिल भरना होगा। पहले सर्विस चार्ज नहीं लगता था और अब 1700 रुपए हर महीने लगेगा। जिससे नाराज छात्रों ने शीतकालीन सत्र के पहले दिन संसद का घेराव करने का फैसला किया। सुरक्षाबलों की भारी तैनाती के बावजूद उनहोंने चारों बैरिकेड तोड़ दिए। सड़क की दुकान को छात्रों ने सभा में तब्दील कर दिया था। छात्रों के इस प्रदर्शन से दिल्ली की सड़के जाम रही और मेट्रो के भी कई स्टेशन बंद करने पड़े। लेकिन ये छात्र फीस बढ़ाने के लिए प्रदर्शन करते रहे।
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वर्तमान में जेएनयू के हालात वापस दुरुस्त हों, इसके लिए स्टूडेंट्स यूनियन के प्रतिनिधियों को एचआरडी मिनिस्ट्री ने मीटिंग के लिए बुलाया। शास्त्री भवन में यह मीटिंग हाई पावर कमिटी की ओर से रखी गई, जिसे जेएनयू में हॉस्टल फीस बढ़ोतरी के मामले की जांच के लिए बनाया गया है। कमिटी ने सभी हॉस्टल के प्रेजिडेंट को भी बुलाया गया।
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जहां तह बात फीस बढोत्तरी और प्रदर्शन की करें तो हमारे जीवन में दो तरह के अधिकार होते हैं- एक वे, जिनको हम अर्जित करते हैं, दूसरे वे, जो हमें प्रदान किए जाते हैं। जो अधिकार हम अर्जित करते हैं, उन्हें पाकर हमें संतोष होता है। और जो अधिकार हमें किसी और के द्वारा प्रदान किए जाते हैं, उन्हें पाकर हममें अनुग्रह होता है। ऐसे में अगर ये दिया जाने वाला अधिकार बाधित हो जाए, तो हमें क्या करना चाहिए? विनय से उसके लिए याचना करनी चाहिए या उद्दंडता से उसकी मांग करनी चाहिए? ये एक बड़ा सवाल है। लोक कल्याण सरकार का दायित्व है, यह तो निश्चित है। रियायती दर पर शिक्षा उपलब्ध कराना सरकार का फ़र्ज़ है। केवल शिक्षा ही नहीं, स्वास्थ्य और आहार भी रियायती दरों पर उपलब्ध करना एक वेलफ़ेयर स्टेट का मानदण्ड है। वैसी रियायत केवल जेएनयू को ही क्यों मिले, भारत-देश के दूसरे केंद्रीय विश्वविद्यालयों को क्यों नहीं मिले, वह भी एक बड़ा सवाल है। जब जेएनयू के छात्र कहते हैं कि हम बिजली-सफ़ाई का 1700 रुपया और कमरे का 300 रुपया नहीं दे सकते, तो उन्हें इसके साथ ही अपने आय-व्यय का ब्योरा भी सरकार के सामने रखना चाहिए कि उनकी आमदनी के स्रोत क्या हैं, वे महीने में कितना अर्जित करते हैं, कितना ख़र्च करते हैं। उसी से उनकी यह दुर्दशा प्रमाणित होगी कि वो तो बेचारे इतने निर्धन और दुखियारे हैं कि यह पैसा नहीं दे सकते हैं।
शोध या देश-विरोध
14 नवंबर 1969 को जब जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के उद्घाटन की खबर आई थी और जिसके दायरे में हर आचार-विचार को जगह मिलनी थी उस जेएनयू को कई बार देश-विरोधी चश्में से भी देखा जाता रहा है। जिसकी कल्पना इसके निर्माण के वक़्त किसी ने भी नहीं की होगी। देश के दायरे में रचा बसा एक शिक्षण संस्थान जिसका निर्माण इसी देश की विरासत और सामाजिक संस्कृति को ऊचाईयों पर ले जाने तथा उच्च शिक्षा में शोध कार्यों को बढ़ावा देने के लिए हुआ था। उसी जेएनयू को कई बार सवालों के कटघरे में खड़ा किया जाता रहा है। इन तमाम विवादों के पीछे एक लंबी फेहरिस्त है जो किसी भी आम इन्सान को यह सोचने पर मजबूर कर देती है की यह विश्विद्यालय क्या सच में सिर्फ भारत विरोधियों का क़िला बन कर रह गया है।