By अभिनय आकाश | Jan 01, 2021
उनकी नियुक्ति 5/10 बलूच रेजिमेंट में थी। जहां उन्होंने देश की आजादी तक सेवाएं दी। बंटवारे के वक्त उन्हें पाकिस्तान की सेना के प्रमुख के तौर पर नियुक्ति वाला ऑफर मिला। लेकिन एक सच्चे देशभक्त की तरह उन्होंने ये ऑफर ठुकरा दिया। इसके साथ ही उन्होंने उसी मिट्टी की सेवा करने का फैसला किया जहां जन्म लिया था। ये लाइनें उस कब्र पर लिखीं हैं जहां नौशेरा का शेर कहे जाने वाले ब्रिगेडियर उस्मान मौत की आगोश के बाद धरती की चादर ओढ़ आराम से सोये हैं। उसी कब्र पर ब्रिगेडियर को अंतिम विदाई देने के लिए देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू खुद आए थे। लेकिन बीते दिनों एक तस्वीर सामने आई जब ये पाया गया कि ब्रिगेडियर उस्मान की कब्र जर्जर हालत में है।
ब्रिगेडियर उस्मान की कब्र
दक्षिण दिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के अधिकार क्षेत्र में आने वाले कब्रिस्तान में कब्र को हाल ही में जर्जर स्थिति में पाया गया। कब्र की बदहाल अवस्था के बारे में जानकर सैन्यकर्मियों और पूर्व कर्मियों को गहरा दुख हुआ। उस्मान देश के नायक थे और केवल सेना के नायक नहीं थे, इसलिए अपने नायक का सम्मान करना हर किसी का फर्ज है। सेना ने उस्मान की कब्र की मरम्मत का काम शुरू कराया। एब वेब पोर्टल पर कब्र की स्थिति के बारे में कुछ तस्वीरों के बाद बदहाल स्थिति का पता चला जिसके बाद सेना ने मामले का संज्ञान दिया। सेना के सूत्र के अनुसार यह कब्रिस्तान जामिया मिल्लिया इस्लामिया के अधिकार क्षेत्र में आता है इसलिए प्रशासन के पास इस कब्र की देखरेख की जिम्मेदारी है। और अगर वे यह काम नहीं कर सकते तो सेना अपने नायक की कब्र की देखरेख करने में पूरी तरह सक्षम है।’
भारतीय सेना में तैनाती
वर्ष 1912 में उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में ब्रिगेडियर उस्मान का जन्म हुआ था। ब्रिगेडियर उस्मान ने 1934 में ब्रिटेन के सैंडहर्स्ट की रायल मिलिट्री एकेडमी से सैन्य ट्रेनिंग लेकर सेना में शामिल हुए थे। अंग्रजी शासन के वक्त भारत के सैन्य अधिकारी ब्रिटेन की मिलिट्री एकेडमी में ही ट्रेनिंग लेकर आते थे। उसके बाद से भारतीय अधिकारियों को उसी वर्ष देहरादून में खुली भारतीय सैन्य अकादमी में प्रशिक्षण दिया जाने लगा। मार्च 1935 में ब्रिगेडियर उस्मान की नियुक्ति भारतीय सेना में हुई और उन्हें 10वीं बलूच रेजिमेंट की 5वीं बटालियन में तैनात किया गया। एक साल बाद 1936 में लेफ्टिनेंट रैंक पर प्रमोशन मिला। 1941 आते-आते मोहम्मद उस्मान ने अपनी मेहनत और साहस के बल पर कैप्टन की रैंक हासिल की। 1945-46 में उन्होंने 10वीं बलूच रेजिमेंट की 14वीं बटालियन की कमान संभाली। वर्ष 1947 में देश के आजाद होने के बाद देश का बंटवारा हुआ था। देश की अलग-अलग रियासतों का भारत या पाकिस्तान में विलय हो गया था। तब पाकिस्तान ने कबाईलियों की मदद से जम्मू कश्मीर पर हमला बोल दिया था। इस हमले के बाद जम्मू कश्मीर के तत्कालीन शासक महाराजा हरि सिंह ने भारत में विलय के दस्तावेजों पर दस्तख्त किए थे। जम्मू कश्मीर की रक्षा करने के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच पहला युद्ध हुआ था। जम्मू कश्मीर की रक्षा के लिए भारत ने अपनी सेना भेजी थी। अक्टूबर 1947 में पाकिस्तानी सेना की मदद से कबाइलियों ने जम्मू कश्मीर पर हमला करके झंगर इलाके पर कब्जा कर लिया था। उस वक्त ब्रिगेडियर उस्मान 50 पैरा ब्रिगेड के कमांडर थे। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने शपथ ली थी कि जब तक वो पाकिस्तान को झंगर से खदेड़ नहीं देंगे, तब तक खाट पर नहीं सोएंगे। उस जमाने में सोने या आराम करने के लिए खाट का ही इस्तेमाल किया जाता था।
ऑपरेशन विजय और नौशेरा की जंग
मार्च 1948 में जम्मू कश्मीर के नौशेरा में एक महत्वपूर्ण लड़ाई हुई थी। वहां ब्रिगेडियर उस्मान ने कबाइलियों का डटकर मुकाबला किया था। नौशेरा की लड़ाई के बाद ब्रिगेडियर उस्मान को नौशेरा का शेर कहा जाने लगा था। इस अभियान का नाम ऑपरेशन विजय था और 18 मार्च 1948 को नौशेरा के झंगर इलाके पर भारतीय सेना ने अपना कब्जा जमा लिया था। इसके बाद नजदीक के एक गांव से उधार में मांगकर एक चारपाई लाई गई। जिसके बाद ब्रिगेडियर उस्मान ने अपनी शपथ पूरा किया।
ठुकरा दिया जिन्ना का ऑफर
आजादी से पहले ब्रिगेडियर उस्मान बलूच रेजिमेंट में थे। मोहम्मद अली जिन्ना और लियाकत अली खां ने उनको मुस्लिम होने का वास्ता देकर पाकिस्तानी सेना नें आने का ऑफर दिया। इसके साथ ही पाकिस्तान की सरकार की तरफ से उन्हें सेना प्रमुख बनाने तक का वादा किया गया। लेकिन एक सच्चे देशभक्त की भांति ब्रिगेडियर उस्मान ने ये ऑफर सिरे से नकार दिया। जब बलूच रेजिमेंट पाकिस्तान को दी गई तो ब्रिगेडियर उस्मान डोगरा रेजिमेंट में स्थानांतरित कर दिए गए।
पाकिस्तानी सरकार ने रखा था 50 हजार का ईनाम
ब्रिग्रेडियर उस्मान ने नौशेरा हमले के दौरान पाकिस्तानी घुसपैठियों को जमकर क्षति पहुंचाई थी। जिसमें दुश्मन देश के 2000 लोग हताहत हुए और 1000 लोग मारे गए। इसके बाद से ही ब्रिगेडियर उस्मान को नौशेरा का शेर के नाम से पुकारा जाने लगा। जिसके बाद पाकिस्तान सरकार ने ब्रिगेडियर उस्मान पर 50 हजार का इमान रखा था।
मैं जा रहा हूं, इलाके को दुश्मन के कब्जे में न जाने दें
पहली बार अपने मंसूबों में बुरी तरह विफल होने के बाद पाकिस्तान ने अपनी सेना भेजी। पाकिस्तानी सेना ने झांगर इलाके पर कई जोरदार हमले किए। लेकिन ब्रिगेडियर उस्मान ने पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को पूरा नहीं होने दिया। इसी दौरान 3 जुलाई 1948 को ब्रिगेडियर उस्मान का निधन हो गया। उनके अंतिम शब्द थे- मैं जा रहा हूं लेकिन उस इलाके को दुश्मन के कब्जे में न जाने दें जिसके लिए हम लड़ रहे थे। ब्रिगेडियर उस्मान को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।- अभिनय आकाश