By अनन्या मिश्रा | Jun 17, 2023
शिवाजी महाराज जैसे शूरवीर को जन्म देने वाली जननी जीजाबाई का आज के दिन यानी की 17 जून को निधन हो गया था। वह शिवाजी की माता होने के साथ ही उनकी मार्गदर्शक, मित्र और प्रेरणस्त्रोत थीं। उनका सारा जीवन त्याग और साहस के भरा हुआ था। उन्होंने अपने जीवन में कई विपरीत परिस्थितियों का सामना किया। लेकिन इस दौरान जीजाबाई ने कभी धैर्य नहीं खोया। उन्होंने अपने बेटे शिवाजी को वह संस्कार दिए। जिसके कारण वह आगे चलकर हिंदू समाज के संरक्षक और शूरवीर शिवाजी महाराज कहलाए। आइए जानते हैं जीजाबाई की डेथ एनिवर्सिरी के मौके पर उनके जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में...
जन्म और परिवार
महाराष्ट्र के बुलढाणा में 12 जनवरी 1598 को जीजाबाई का जन्म हुआ था। जीजाबाई के पिता लखुजी जाधव सिंदखेड नामक गांव के राजा हुआ करते थे। बचपन में सभी जीजाबाई को 'जिजाऊ' कहकर बुलाते थे। बताया जाता है कि वह अपने पिता के घर पर काफी कम समय रही। क्योंकि काफी छोटी उम्र में जीजाबाई की शादी कर दी गई थी। बता दें कि उस दौरान छोटी उम्र में शादी करने की प्रथा थी। जीजाबाई की मंगनी 6 साल की उम्र में कर दी गई थी।
जानिए ये प्रसंग
बताया जाता है कि होली वाले दिन लखुजी के घर पर उत्सव मनाया जा रहा था। तभी मोलाजी अपने 7-8 साल के बेटे के साथ इस उत्सव में शामिल हुए थे। जिसके बाद अचानक से लखुजी जाधव ने जीजाबाई और मोलाजी के बेटे शाहजी को एकसाथ देखा। तभी लखुजी जाधव के मुंह से निकला कि वाह क्या जोड़ी है। इस बात को मोलाजी ने सुन लिया। फिर शाहजी और जीजावाई की मंगनी कर दी गई। उस दौरान मोलाजी सुल्तान के यहां पर सेनापति के तौर पर कार्य कर रहे थे। वहीं सुल्तान के कहने पर जीजाबाई और शाहजी की शादी करवा दी गई।
शिवनेरी के दुर्ग में जन्में शिवाजी
विवाह के बाद शाहजी बीजापुर दरबार में राजनायिक थे। शाहजी की मदद से बीजापुर के महराज ने अनेक युद्ध में विजय प्राप्त की। इस खुशी में बीजापुर के सुल्तान ने शाहजी को कई सारे जागीर तोहफे में दिए थे। इन्हीं तोहफों में एक जागीर शिवनेरी का दुर्ग भी शामिल था। जीजाबाई ने यहीं पर अपने 6 बच्चों को जन्म दिया था। जिनमें से एक शिवाजी थे। शाहजी ने जीजाबाई और बच्चों को शिवनेरी के दुर्ग में रखते थे। क्योंकि शाहजी को शत्रुओं का भय था। शिवाजी के जन्म के समय मुस्तफा खां ने शाहजी को बंदी बना लिया थी। जिसके बाद शिवाजी और शाहजी की मुलाकात 12 साल बाद हुई थी।
शाहजी की मृत्यु
शाहजी अपने कामों में जीजाबाई की मदद लिया करते थे। जीजाबाई के सबसे बड़े बेटे का नाम संभाजी था। बता दें कि संभाजी और शाहजी की मृत्यु अफजल खान के साथ हुए युद्ध में हो गई थी। जिसके बाद जीजाबाई ने अपने पति के साथ सती होने का प्रयास किया। लेकिन शिवाजी ने उन्हें सती होने से बचा लिया। वह अपनी मां को अपना प्रेरणास्त्रोत मानते थे। यही कारण है कि शिवाजी अपने कर्तव्यों को काफी कम उम्र में ही समझ गए थे। अपनी मां के मार्गदर्शन में शिवाजी ने हिन्दू साम्राज्य स्थापित करने की शुरुआत छोटी उम्र में ही कर दी थी।
जीजाबाई चतुर और बुद्धिमान महिला थीं। उन्होंने मराठा साम्राज्य के हित में तमाम ऐसे फैसले लिए। जिसके चलते शिवाजी स्वराज को स्थापित कर सके। जीजाबाई महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों को देखते हुए मां भवानी के मंदिर जाती थीं। वह मां भवानी से पुकार करती थीं कि महिलाओं की दुर्दशा को दूर करने के लिए कोई उपाय बताएं। जिस पर मां खुश होकर उन्हें वरदान देती हैं कि उनके पुत्र द्वारा अबलाओं की लाज और उन पर किए जा रहे अत्याचारों को रोका जाएगा।
अपनी मां की तरह ही शिवाजी भी मां भवानी की पूजा करते थे। वह हमेशा अपनी मां से मिली शिक्षा का पालन करते थे। इतिहास में इस बात का वर्णन मिलता है कि शिवाजी के पास जो तलवार थी। वह उन्हें मां भवानी के आशीर्वाद से प्राप्त हुई थी। शिवाजी को जीजाबाई ने माराठा साम्राज्य के लिए कई ऐसी कहानियां सुनाईं। जिससे शिवाजी को अपने धर्म और अपने कर्म का ज्ञान हुआ। इसी वजह से शिवाजी ने महज 17 साल की उम्र में मराठा सेना का निर्माण किया। साथ ही अपने पराक्रम का परिचय देते हुए विजय भी प्राप्त की। एक समय बाद शिवाजी और जीजाबाई को उनका शिवनेरी दुर्ग वापस मिल गया।
जीजाबाई ने शिवाजी को ऐसी शिक्षा और संस्कार दिए। जिसके कारण शिवाजी ने अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीवन जीना शुरू किया। वह अपने धर्म की खातिर लड़ने लगे। तभी आज भी शिवाजी का नाम बड़े गौरव के साथ लिया जाता है। उन्हें शिवाजी छत्रपति महाराज के नाम से जाना जाता है। बता दें कि जीजाबाई पहली ऐसी महिला थी, जिन्होंने मराठा यानि हिंदुत्व की स्थापना में दक्षिण भारत में अबूतपूर्व योगदान दिया था।
मृत्यु
जीजाबाई की मेहनत और संस्कारों की वजह से ही शिवाजी ने मराठाओं के लिए अपने हाथ में हथियार ले लिए थे। शिवाजी ने हिंदुत्व की स्थापना करने में सफलता पाई थी। शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के 12 दिन बाद 17 जून 1674 में जीजाबाई ने आखिरी सांस ली। मानों ऐसा लग रहा था कि जीजाबाई की मौत भी शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक का इंतजार कर रही थी जीजाबाई की मौत से न सिर्फ शिवाजी महाराज बल्कि मराठाओं को भी गहरा आघात पहुंचा था।