एक तरफ चुनाव का माहौल है तो दूसरी तरफ जब से नागरिकता संशोधन कानून आया है तब से जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। लेकिन अब हालात थोड़े असामान्य हो गए हैं। क्योंकि जो पार्टियां संसद में सीएए के पक्ष में थी उन्हीं में अब विरोध के स्वर दिखाई दे रहे हैं। हम बात जेडीयू की कर रहे हैं। ये तो वहीं बात हुई कि चुनाव आए तो स्थानीय मुद्दे याद आने लगे क्योंकि पिछले कई विधानसभा चुनावों में देखा भी गया है कि केंद्र के मुद्दों पर स्थानीय मुद्दे भारी पड़े और स्थानीय मुद्दों के आधार पर चुनावी नतीजे देखने को मिले।
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क्या है जेडीयू का मत
वैसे तो जेडीयू ने संसद में मोदी सरकार का साथ दिया लेकिन बाहर जेडीयू उपाध्यक्ष और चुनावी रणनीति बनाने वाले प्रशांत किशोर ने सीएए का विरोध किया। या कहें कि उन्होंने मोदी सरकार के खिलाफ असंतोष जाहिर करते हुए यह दर्शा दिया वो जेडीयू के स्टैंड के खिलाफ हैं। ऐसे में उन्होंने पार्टी को मुश्किल में भी डाल दिया कि पार्टी गठबंधन धर्म निभाए या फिर अपने लोगों के साथ खड़ी हो। प्रशांत किशोर के बाद जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव पवन वर्मा ने पत्र लिखकर अपना असंतोष जाहिर कर दिया।
पवन वर्मा ने नीतीश कुमार क्यों लिखा पत्र ?
पवन वर्मा परेशान हैं कि जेडीयू ने दिल्ली चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन किया है। जबकि भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली अकाली दल ने गठबंधन से इनकार कर दिया। इसके लिए उन्होंने 2 पन्नों का पत्र लिखा और उसे ट्विटर पर भी साझा किया। पवन वर्मा परेशान हैं कि पहली बार बिहार के बाहर जेडीयू ने भाजपा के साथ गठबंधन किया है। हालांकि पवन वर्मा जेडीयू के उन नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने सीएए को लेकर पार्टी के स्टैंड के खिलाफ बोला है।
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इतना ही नहीं उन्होंने नीतीश कुमार को भाजपा की विभाजनकारी नीतियों के खिलाफ अपनी विचारधारा और रुख स्पष्ट करने के लिए कहा है। इस बात से आप यह तो अंदाजा लगा सकते हैं कि जेडीयू में दरार अब चौड़ी होने लगी है। पहले प्रशांत किशोर तो अब पवन वर्मा...
प्रशांत किशोर ने क्या कहा ?
पीके ने तो सीएए और एनआरसी को लेकर गृह मंत्री अमित शाह को खुली चुनौती ही दे दी और कह दिया कि अगर आप विरोध करने वालों की परवाह नहीं करते हैं तो CAA-NRC की क्रोनोलॉजी पर आगे बढ़िए। जिस तरीके से आपने देश को इसकी क्रोनोलॉजी समझाई थी। भईया क्या है न कि प्रशांत किशोर ने जो ये बात बोली है वो एक्शन का रिएक्शन था। क्योंकि बीते दिन लखनऊ में गृह मंत्री ने विरोधियों को चुनौती दी कि जिसको विरोध करना है करे लेकिन सीएए वापस नहीं होने वाला है।
मतलब कि आप लोग करते रहिए विरोध प्रदर्शन अब जो लागू हो गया है सरकार उसको वापस नहीं लेने वाली है। पीके भईया इसी बात को दिल पर ले लिए और उन्होंने भी एक थो चुनौती दे दी। एक थो और बात बता देते हैं कि जेडीयू में प्रशांत किशोर को शामिल करने के पीछे किसी का हाथ है तो वह पवन वर्मा का ही है क्योंकि उस वक्त पार्टी के कई नेता पीके को शामिल करने के खिलाफ थे।
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नीतीश क्या सोचते हैं ?
बिहार विधानसभा सत्र के दौरान सीएए के मामले को विपक्ष ने सदन में उठाया था और तेजस्वी यादव ने चर्चा कराए जाने की मांग की थी। हालांकि तेजस्वी की इस मांग से नीतीश कुमार का स्टैंड भी सामने आया। नीतीश कुमार ने कहा था कि हर चीज पर चर्चा होनी चाहिए। अगर किसी चीज को लेकर लोगों के मन में अलग-अलग राय है, उसपर चर्चा होनी चाहिए। हालांकि आश्वासन भी दे दिया कि अगले सत्र में जरूर चर्चा करेंगे। लेकिन नीतीश भूल गए कि उन्हें सदन से पहले अपने नेताओं के साथ चर्चा करनी चाहिए।
रही बात प्रशांत किशोर की तो उन्होंने सभी विपक्षियों से कहा ही है कि आप सीएए का विरोध करें। लेकिन विपक्षियों में केजरीवाल भी आते है तो फिर वो भी विरोध या समर्थन क्यों नहीं कर रहे हैं। जबकि दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में तो महिलाएं प्रदर्शन कर रही हैं।
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जानकार मानते हैं कि केजरीवाल सीएए को बारे में कुछ बोलकर या प्रदर्शनस्थल पर जाकर मामला बिगाड़ना नहीं चाह रहे हैं क्योंकि चुनावों का वक्त है। ऐसे में चुप्पी ही बेहतर है। अगर कुछ बोल दिया या चले गए तो समर्थन करने वाले लोगों की नाराजगी भी झेलनी पड़ सकती है। फिर सवाल तो यह भी है कि नहीं जाकर भी तो नाराजगी झेलेंगे। ऐसा कुछ नहीं है क्योंकि जानकार बताते हैं कि अमानुतुल्ला खां का प्रभाव उस इलाके में बहुत है और विरोध प्रदर्शन को उनका समर्थन प्राप्त है।
हालांकि राजनीतिक गलियारों में चर्चा इस बात की भी है कि पीके पार्टी का विरोध करके अपना बिजनेस चला रहे हैं। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि दिल्ली चुनावों में 2 सीटों पर जेडीयू लड़ रही है जबकि प्रशांत किशोर आम आदमी पार्टी का चुनावी कैंपेन देख रहे हैं। हां, प्रशांत किशोर का मतलब उनकी कम्पनी आईपैक... सच्चाई कितनी है ये तो पीके ही बेहतर बता पाएंगे।