महज 14 साल की उम्र से पिता के कारोबार में बंटाते थे हाथ, ताज होटल बनवाकर जमशेदजी टाटा ने ऐसे लिया था अंग्रेजों से बदला

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By अनन्या मिश्रा | Mar 03, 2023

महज 14 साल की उम्र से पिता के कारोबार में बंटाते थे हाथ, ताज होटल बनवाकर जमशेदजी टाटा ने ऐसे लिया था अंग्रेजों से बदला

भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति और औद्योगिक घराने टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा का आज जन्म दिन है। जमशेदजी ने भारतीय औद्योगिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। जमशेदजी को भारतीय उदंयोग जगत का भीष्म पितामह के तौर पर जाना जाता है। भारत में जब जमशेदजी ने औद्योगिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया, उस दौरान सिर्फ यूरोपीय और अंग्रेज ही उद्योग स्थापित करने में कुशल समझे जाते थे। उन्होंने टाटा स्टील, ताज होटल और IISC बैंग्लोर जैसे ऑर्गनाइजेशन की स्थापना की। कहा जाता है है कि जमशेदजी के अंदर भविष्य को भांपने की क्षमता थी। आइए जानते हैं उनके जन्मदिन पर उनसे जुड़ी कुछ खास बातें...


जन्म और शिक्षा

जमशेद का जन्म 3 मार्च 1839 को गुजरात के नवसारी परिवार में हुआ था। वह पारसी परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता नुसीरवानजी और मां का नाम जीवनबाई टाटा था। जमशेदजी के पिता नुसीरवानजी टाटा अपने परिवार के पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने व्यापार करना शुरू किया था। वहीं महज 14 साल की उम्र से जमशेदजी ने भी अपने पिता का हाथ बंटाना शुरू कर दिया था। 17 साल की उम्र में जमशेदजी ने मुंबई के एलफ़िंसटन कॉलेज में एडमिशन लिया। वहीं 2 साल बाद 1858 में ग्रेजुएशन तक पढ़ाई करने के बाद पूरी तरह से अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाने लगे। इसके बाद हीरा बाई दबू के साथ जमशेदजी की शादी हुई।


उद्योग में प्रवेश

जमशेदजी ने व्यापार के सम्बन्ध में अमेरिका, यूरोप और इंग्लैंड समेत कई अन्य देशों की यात्रा की। इस दौरान उन्होंने व्यापार संबंधी महत्वपूर्म बातों को ध्यान से समझा और जाना। इन यात्राओं से जमशेदजी यह बात अच्छे से समझ गए थे कि ब्रिटिश आधिपत्य वाले कपड़ा उद्योग में भारतीय कंपनियां भी सफल हो सकती हैं। उन्होंने अपने पिता की कंपनी में 29 साल की उम्र तक काम किया। इसके बाद 1868 में 21 हजार रुपए के निवेश से ट्रेडिंग कंपनी शुरू की। सन 1869 में जमशेदजी ने बंबई के इंडस्ट्रियल हब चिंचपोकली में एक दिवालिया तेल मिल खरीदा। फिल उसका नाम बदलकर एलेक्जेंडर मिल रख दिया।

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इस दिवालिया हो चुके तेल मिल को करीब दो साल बाद जमशेदजी ने मुनाफे के साथ बेचा और उसी पैसों से नागपुर में एक कॉटन मिल स्थापित की। जमशेदजी भविष्य को बारीकी से समझते थे। इसलिए न सिर्फ उन्होंने देश में औद्योगिक विकास का मार्ग खोला बल्कि अपने कारखानों में काम करने वाले कारीगरों का भी ख्याल रखते थे। वह हमेशा श्रमिकों और मजदूरों के कल्याण के मामले में समय से काफी आगे थे। वह सफलता का श्रेय सिर्फ ही नहीं बल्कि उनके लिए काम करने वालों को भी देते थे। जमशेदजी के फिरोजशाह मेहता और दादाभाई नौरोजी जैसे अनेक राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी नेताओं से अच्छे संबंध थे। वहीं दोनों पक्षों की सोच और कार्यों ने सभी को बहुत प्रभावित किया।


औद्योगिक क्षेत्र का विकास

जमशेदजी का मानना था कि राजनीतिक स्वतंत्रता का आधार आर्थिक स्वतंत्रता है। उनके लक्ष्यों में स्टील कंपनी, जलविद्युत परियोजना, ताज होटल और एक प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान खोलना शामिल था। लेकिन उनके जीवन में उनका एक ही लक्ष्य पूरा हो सका और वह था ताज होटल की स्थापना करना। दिसंबर 1903 में होटल ताज के निर्माण में 4,21,00,000 रुपये का खर्च आया था। उस समय का यह एक ऐसा होटल था, जहां पर बिजली की व्यवस्था थी। इस होटल के निर्माण के पीछे भी जमशेदजी की राष्ट्रवादी सोच थी। क्योंकि बेहतरीन यूरोपिय होटलों में भारतीयों को घुसने नही दिया जाता था। वहीं इस होटल का निर्माण अंग्रेजों की दमनकारी नीति का करारा जवाब था।


देश के विकास में योगदान

देश के औद्योगिक क्षेत्र में जमशेदजी का महत्वपूर्ण योगदान था। देश जब गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था, उस दौरान उन्होंने भारत में औद्योगिक विकास की नीवं डालनी शुरू की थी। एक सफल उद्योगपति और व्यवसायी होने के साथ वह उदार व्यक्ति थे। वह हमेशा लोगों के साथ बेहद नरमी के साथ पेश आते थे। वहीं उनके कारखानों और मिलों में काम करने वाले मजदूरों और कामगारों का भी वह ध्यान रखते थे। उन्होंने मजदूरों और कामगारों के लिए कई कल्याणकारी नीतियां भी लागू की। जमशेदजी ने मजदूरों और कामगारों के लिए पुस्तकालयों, पार्कों, आदि की व्यवस्था के साथ मुफ्त दवा की भी सुविधा प्रदान की।


मृत्यु 

1900 में जमशेदजी टाटा बिजनेस यात्रा के लिए जर्मनी गए हुए थे। इस यात्रा के दौरान उनका स्वास्थ्य कमजोर हो गया और वह बीमार हो गए थे। वहीं 19 मई 1904 में जर्मनी के बेड नौहेइम शहर में जमशेदजी टाटा की मृत्यु हो गई। उस दौरान उनकी आयु 65 वर्ष थी। मृत्यु के बाद उन्हें इंग्लैंड के वोकिंग शहर के ब्रूकवूड सिमेट्री में पारसी दफ़न में दफ़नाया गया।

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