By अनन्या मिश्रा | Apr 13, 2025
जलियांवाला बाग का नाम सुनते ही स्वतंत्रता संग्राम का खौफनाक मंजर आंखों के सामने आ जाता है। इस बार में सैकड़ों निर्दोष भारतीयों को बिना की चेतावनी के मौत के घाट उतार दिया दया था। जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना देश के स्वतंत्रता आंदोलन का एक अहम मोड़ बन गई थी। बता दें कि 13 अप्रैल को जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था। यह दिन गुलाम भारत के इतिहास का एक ऐसा काला अध्याय है, जिसके किस्से आज भी लोगों को रोंगटे खड़े कर देता है।
बता दें कि पंजाब के अमृतसर शहर में जलियांवाला बाग स्थित है, जोकि स्वर्ण मंदिर से महज कुछ ही दूरी पर स्थित है। जलियांवाला एक सार्वजनिक स्थल था, जहां पर अक्सर लोग एकत्र होते थे। लेकिन जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद से लेकर अब तक यह स्थान काफी बदल गया है। आज ही इस काले दिन के निशान यहां की दीवारों पर मौजूद हैं।
इतिहास
साल 1919 में ब्रिटिश सरकार ने भारत में 'रॉलेट एक्ट' को लागू किया था। इस एक्ट के तहत बिना मुकदमा चलाए किसी भी भारतीय को गिरफ्तार किया जा सकता है। इस एक्ट के लागू होने पर देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे। वहीं अमृतसर में भी लोग शांतिपूर्वक इस एक्ट का विरोध जता रहे थे। इसी दिन बैसाखी का पर्व था, जोकि पंजाब का एक बड़ा पर्व माना जाता है।
सैकड़ों भारतीयों की हत्या
बैसाखी के लिए हजारों लोग जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा के लिए एकत्र हुए थे। तभी ब्रिटिश सेना के जनरल रेजिनाल्ड डायर ने बिना किसी चेतावनी के बाग के मुख्य द्वार को बंद करवा दिया। उन्होंने अपने सिपाहियों को गोली चलाने का आदेश दे दिया। इस दौरान करीब 10 मिनट तक 1650 गोलियां चलाई गईं। इस निर्मम हत्याकांड में करीब 1000 से ज्यादा लोग मारे गए और हजारों लोग घायल हो गए थे।
जलियांवाला बाग हत्याकांड की दुनियाभर में निंदा हुई थी और इसके विरोध में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया था। रवींद्रनाथ टैगोर ने इस हत्याकांड के बाद नाइटहुड सम्मान वापस कर दिया था। इस घटना ने भारतीयों के दिलों में ब्रिटिश सरकार के खिलाश आक्रोश की ज्वाला तेज कर दी थी। आज भी यहां पर उस काले दिन की निशानी मौजूद है।
जलियांवाला बाग स्मारक
बता दें कि अब यह एक राष्ट्रीय स्मारक बन चुका है। अब यहां पर आप एक संग्रहालय, शहीदी कुआं और गोलियां के निशान मौजूद है। जो उस दिन के दर्द को जीवंत बनाए रखते हैं। हर साल हजारों लोगों की संख्या में यहां पर श्रद्धांजलि देने आते हैं।