नयी दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के लिए अरुण जेटली किसी भी आकस्मिकता से निपटने में सक्षम शख्सियत थे और उनका व्यवहार स्थिति के अनुरूप होता था। वह एक ऐसा रणनीतिकार थे जिसने कई राज्यों में पार्टी के उद्भव की गाथा लिखी। एक शिष्ट एवं उदार चेहरा जिसने पार्टी को कई नये सहयोगी दिए और अपनी बात पर अडिग रहने वाले ऐसे शख्स थे जिनकी समझाने-बुझाने वाली कला उनके नेतृत्व के लिए बहुमूल्य धरोहर थी। करीब डेढ़ दशक तक खासकर 2006 में प्रमोद महाजन के निधन के बाद वह पार्टी को किसी भी संकट से निकालने वाले सबसे अहम व्यक्ति थे।
उनकी कुशलता नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में पूरी तरह नजर आई जब उन्होंने भ्रष्टाचार खासकर राफेल सौदे और घोर पूंजीवादी होने के विपक्ष के आरोपों को लेकर भाजपा का जवाब तैयार किया था तथा हाल में संपन्न हुए आम चुनाव के लिए प्रचार के दौरान सोशल मीडिया के अपने नियमित पोस्ट के जरिए कांग्रेस नीत संप्रग पर निशाना साधा। कई माह तक बीमारी से लड़ने के बाद जेटली का यहां एम्स में शनिवार को निधन हो गया। कई सालों तक भाजपा की कोर टीम के सदस्य रहे, वरिष्ठ वकील संभवत: पार्टी के लिए एकमात्र बड़े नेता थे जिन्होंने 2013 में प्रधानमंत्री पद को लेकर मोदी की दावेदारी का मार्ग प्रशस्त करने में समर्थन किया था।
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राजनीति की गूढ़ समझ रखने वाले जेटली राजनीति के बदलते समीकरणों पर पैनी नजर रखते थे और पार्टी के भीतर मोदी के सबसे शुरुआती समर्थकों में शामिल थे। उन्होंने 2002 के दंगों और फर्जी मुठभेड़ के आरोपों से गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी और उनके घनिष्ठ मित्र अमित शाह को बेदाग बाहर निकालने में अपनी राजनीतिक कुशाग्रता का प्रयोग किया था। उदारवादी नेता के उत्कृष्ट उदाहरण जो हिंदुत्व राजनीति के कट्टरवादी विचारधारा से कभी नहीं जुड़े, जेटली मोदी के विश्वासपात्र मित्र बन गए थे जब उन्होंने भाजपा में गुजरात के नेता के उदय की राह आसान बनाई।
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दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष उन असाधारण राजनीतिज्ञों में से थे जिन्होंने राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर विवाद और तीन तलाक विधेयक जैसे कई अहम मुद्दों पर जोर-शोर से पार्टी का पक्ष रखा और संसद में चर्चा के दौरान वह ऐसे अपनी बात रखते थे कि सामने वाले को कोई तर्क नहीं सूझता था। अन्य राजनीतिज्ञों के उलट वह पार्टी के पक्ष को रखने के लिए तर्कों पर निर्भर रहते थे न कि जुमलेबाजी पर। मेधावी किस्सागो जिनकी दिलचस्पी राजनीति से लेकर बॉलीवुड और खेल में थी, जेटली की अनौपचारिक सभाएं पत्रकारों, दोस्तों और राजनीतिकों से भरी रहती थी।
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जेटली वह पुल थे जिनका प्रयोग भाजपा नये सहयोगियों को जीतने के लिए तथा विपक्षी पार्टियों को प्रमुख मुद्दों पर बात करने के लिए तैयार करने में करती थी। भाजपा के सहयोगी जैसे जद (यू) अध्यक्ष एवं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कई दशकों तक उनके करीबी दोस्त रहे। जेटली ने यह सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी कि कुमार को मुख्यमंत्री पद के लिए गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर पेश किया जाए।
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यहां तक कि जब कुमार ने 2013 में भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया था, फिर भी कुमार के राष्ट्रीय राजधानी आने पर जेटली उनसे मिलने पहुंचते थे। कुमार के 2017 में भगवा पार्टी से फिर से हाथ मिला लेने में भी जेटली की अहम भूमिका रही थी। भाजपा के महासचिव के तौर पर वह बिहार, कर्नाटक और मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों में पार्टी के उदय के लिए अहम रहे। वह एक कुशल प्रशासक भी थे जो हर परिस्थिति को मौके के हिसाब से संभालते थे।
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उनके मीडिया से इतने अच्छे संबंध थे कि कई बार उनके आलोचक उन्हें “ब्यूरो चीफ” कहते थे जो किसी राजनीतिक मामले को आसान तरीके से समझाते थे। जब भी किसी कद्दावर हस्ती का निधन होता है तो यह कहा जाता है कि उनकी जगह नहीं ली जा सकती लेकिन सच यह है कि भाजपा के लिए ऐसे किसी व्यक्ति को तलाशना मुश्किल होगा जो जेटली की तरह लंबे समय तक उसे मुश्किलों से उबारने में मदद करे।