By अजय कुमार | Nov 05, 2018
पांच राज्यों में से तीन बड़े हिन्दी शासित राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव ने देश का सियासी पारा बढ़ा रखा है, जिन पांच राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं उनमें से तीन राज्यों में बीजेपी की सरकार है और कांग्रेस यहां वापसी के लिये हाथ−पैर मार रही है। इन राज्यों में बीजेपी और कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के लगातार दौरों के चलते यह तीन राज्य खूब चुनावी सुर्खिंया बटोर रहे हैं। इसमें मध्य प्रदेश की 230, राजस्थान की 200 और छत्तीसगढ़ की 90 सीटें शामिल हैं। इन तीन राज्यों के चुनाव में राजस्थान ही एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां भाजपा की सत्ता में वापसी सर्वाधिक मुश्किल मानी जा रही है। यहां 1993 से अदल−बदलकर सत्ता परिवर्तन की परंपरा रही है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को लेकर बीजेपी आलाकमान ही नहीं आश्वस्त नजर आ रहा है, तमाम मीडिया सर्वे भी उसी के पक्ष में आ रहे हैं। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी को बहुमत नहीं भी मिला तो वह सबसे बड़ी पार्टी बन कर जरूर उभरती दिख रही है।
राजस्थान के सियासी माहौल ने बीजेपी नेताओं के दिलों की धड़कने इस लिये बढ़ा रखी हैं क्योंकि यहां की सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया ने अपने पूरे कार्यकाल के दौरान राज्य में अपने पार्टी विरोधियों को लगातार हासिये पर डाले रखा तो, दिल्ली के नेताओं को भी कभी खास तवज्जो नहीं दी। शीर्ष नेतृत्व लोकसभा चुनाव से पूर्व कहीं भी हार का मुंह नहीं देखना चाहता है। असल में राजस्थान में पारम्परिक रूप से एक बार कांग्रेस तो दूसरी बार बीजेपी की सरकार बनती रही है। इस हिसाब से अबकी कांग्रेस की बारी लग रही है, लेकिन बीजेपी शीर्ष नेतृत्व इस मिथक को तोड़ देना चाहता है। कुल मिलाकर इन तीन राज्यों में कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं है तो बीजेपी की पूरी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।
उक्त तीन राज्यों के विधान सभा चुनावों को अगले वर्ष होने वाले आम चुनाव का सेमीफाइनल भी माना जा रहा है। मोदी को यही से घेरने की रणनीति बनाई जा रही है। सत्ता पक्ष और विपक्ष में जो भी यहां जीतेगा, वह अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के मैदान में सिकंदर की तरह उतरेगा। चुनाव भले ही तीन राज्यों का हो, लेकिन यहां कांगे्रस अध्यक्ष राहुल गांधी के राज्य सरकारों के कामकाज की जगह मोदी और उनकी सरकार की चर्चा सबसे अधिक कर रहे है। बीजेपी लगातार 15 सालों से मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज है। कांग्रेस ने कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया का चेहरा आगे कर बीजेपी को चुनौती पेश की है। ऐसे में दोनों पार्टियों के नेताओं के बीच जुबानी जंग भी तेज होती जा ही है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मध्य प्रदेश में अपने चुनावी दौरे के दौरान जगह−जगह जनसभाओं में राफेल डील को भ्रष्टाचार का खुला मामला बता रहे हैं। पीएम मोदी और उद्योगपति अनिल अंबानी के बीच सांठगांठ का आरोप लगा रहे हैं। सीबीआई विवाद को भी हवा दी जा रही है। राफेल पर तो राहुल गांधी यहां तक कहते फिर रहे हैं कि अगर राफेल विवाद मामले की जांच होती है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जेल जाएंगे। राहुल गांधी की इंदौर प्रेस कांफ्रेस के दौरान एक पत्रकार ने बार−बार जनता के बीच 'चौकीदार चोर है' कहने के सवाल किया तो राहुल ने कहा, 'मोदी जी को भ्रष्ट सिर्फ कहा नहीं जा रहा है, बल्कि वह वाकई भ्रष्ट हैं। इस पर कंफ्यूजन नहीं होना चाहिए।' राहुल गांधी ही मोदी और बीजेपी पर हमला नहीं कर रहे हैं। उनको भी उन्हीं की भाषा में बीजेपी द्वारा जबाव दिया जा रहा है। राहुल के ऊपर मानहानि तक का केस दर्ज हो चुका है। गत दिनों झाबुआ में रैली के दौरान राहुल गांधी ने पनामा पेपर और व्यापम का जिक्र करते हुए शिवराज सिंह चौहान और उनके पुत्र की जोड़ी पर निशाना साधा था। इसपर पलटवार करते हुए सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि पिछले कई वर्षों से कांग्रेस मेरे और मेरे परिवार के ऊपर अनर्गल आरोप लगा रही है। शिवराज ने कहा कि राहुल गांधी ने पनामा पेपर्स में मेरे बेटे कार्तिकेय का नाम लेकर सारी हदें पार कर दीं। मध्य प्रदेश के सीएम ने ट्वीट में कहा था कि वह राहुल गांधी पर मानहानि केस करने जा रहे हैं। इसके बाद राहुल गांधी की तरफ से सफाई सामने आ गई, लेकिन कार्तिकेय ने राहुल के खिलाफ मानहानि का केस दर्ज करा ही दिया।
राहुल के ऊपर बीजेपी वाले तो हमलावर हैं ही उन्हें अपना 'घर' भी संभालना पड़ रहा है। कांग्रेस की मध्य प्रदेश में वापसी की सुगबुगाहट ने कांग्रेस के दिग्गज नेताओं दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ जैसे नेताओं के बीच खाई पैदा कर दी है। हद तो तब हो गई जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक के दौरान मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच तीखी कहासुनी हो गई। शुरुआती बहस कुछ ही देर में तीखी नोक−झोंक में बदल गई। दोनों में काफी समय तक तू−तू−मैं−मैं भी चलता रहा। दोनों के बीच जब बात नहीं बनी तो विवाद सुलझाने के लिए राहुल गांधी को तीन सदस्यीय समिति बनानी पड़ी। सिंधिया और दिग्विजय की खुली जंग से राहुल के चेहरे पर गुस्सा साफ दिखाई दिया। सिंधिया और दिग्गी राज के बीच में छिड़ी जंग की तह में जाया जाए तो पता चलता है कि सिंधिया स्वयं सीएम बनने का सपना पाले हैं, इस लिये वह अपनी पसंद के अधिक से अधिक नेताओं को टिकट दिलाना चाहते हैं, जबकि दिग्गी राज मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के बेटे पर हाथ रखे हुए हैं। वह अर्जुन के पुत्र को सीएम बनाने का सपना पाले हुए हैं।
उधर, चुनावी संग्राम के बीच राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के नेताओं के बीच दल−बदल का दौर जारी है। बीते दिनों आप नेता नेहा बग्गा बीजेपी में शामिल हुई थीं और कई बीजेपी नेता कांग्रेस के खेमे में शामिल हुए थे। इसके बाद से लगातार नेता यहां पार्टी बदल रहे हैं। इसी क्रम में भाजपा के विधायक संजय शर्मा और पूर्व विधायक कमलापत आर्य इन्दौर में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की उपस्थिति में कांग्रेस में शामिल हो गये। इससे प्रदेश में सत्तारुढ़ भाजपा को बड़ा झटका लगा। मध्य प्रदेश में 28 नवंबर को विधानसभा चुनाव होने हैं।
एक बार फिर बात राजस्थान की। राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी के समाने मुश्किलें पहाड़ की तरह खड़ी हैं। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के प्रति जनता की नाराजगी तो चरम पर है ही पार्टी के भीतर भी उनके खिलाफ आवाज उठ रही हैं। केन्द्रीय आलाकमान डैमेज कंट्रोल में लगा जरूर है, लेकिन बीजेपी की वापसी दूर की कौड़ी लग रही है। बीजेपी की हार का मतलब वसुंधरा राजे का कद छोटा होना है। वसुंधरा ऐसी नेत्री हैं जिनको लेकर मोदी भी कभी सहज नहीं हो पाए हैं। दोनों के बीच की दूरियां किसी से छिपी नहीं हैं। यहां हार−जीत का अंतर काफी बड़ा दिखाई दे रहा है। यहां नतीजा कुछ भी आए, यह तय माना जा रहा है कि राजस्थान विधान सभा चुनाव नतीजों के बाद बीजेपी लोकसभा चुनाव नए नेता के साथ लड़ेगी। दरअसल, जाट नेता हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व में राजस्थान तीसरे मोर्चे का उदय देख रहा है। यह पिछले तमाम महीनों में बीजेपी के लिए सबसे अच्छी खबर है। नई पार्टी न सिर्फ आने वाले विधान सभा चुनाव में, बल्कि अगले साल लोक सभा चुनाव में भी बीजेपी के लिए मददगार साबित होगी।
बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) मुख्य तौर पर ऐसे पूर्व बीजेपी नेताओं का एक साथ आना है, जो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नेतृत्व में अपने लिए कोई भविष्य नहीं देखते। इन लोगों का सामूहिक लक्ष्य खुद को ऐसी जगह ले जाना है, जहां से वो कांग्रेस और राजे दोनों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। उनकी राजनीति का खेल कुछ ऐसा है, जहां राजे को खत्म किया जा सके और राजस्थान में नया पावर सेंटर बनकर बीजेपी में वापसी की जा सके।
चुनाव आयोग के लिये नक्सल प्रभावित राज्य छत्तीसगढ़ में विधान सभा चुनाव कराना कभी आसान नहीं रहा है। इस बार भी नक्सली चुनाव का माहौल खराब करने में लगे हैं। दंतेवाड़ा में नक्सली हमला इस बात की ताकीद करता है। छत्तीसगढ़ विधानसभा की 90 सीटों के लिए दो चरणों में चुनाव होंगे। पहले चरण में राज्य के नक्सल प्रभावित 12 विधानसभा सीटों पर 12 नवंबर को वोट डाले जाएंगे, जबकि 78 सीटों पर 20 नवंबर को मतदान होगा। वोटों की गिनती 11 दिसंबर को होगी। इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही मुख्य मुकाबला माना जा रहा है, हालांकि अजीत जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जकांछ) और मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के बीच हुए गठबंधन ने इस मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। बीजेपी सत्ता विरोधी लहर से परेशान है तो कांग्रेस इस बात को लेकर दुखी है कि जोगी कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं। मुश्किलें अजीत जोगी ने बढ़ा रखी है।
15 साल के मुख्यमंत्री पद पर आसीन रमन सिंह इस बार भी अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिए कोई कोर−कसर छोड़ते नहीं दिख रहे। हालांकि 15 साल के मुख्यमंत्री पद पर आसीन रमन सिंह इस बार भी अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिए कोई कोर−कसर छोड़ते नहीं दिख रहे हैं। इस बार बीजेपी, कांग्रेस और जकांछ−बसपा गठबंधन के अलावा आम आदमी पार्टी ने भी सभी 90 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। वहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, सपा, जेडीयू, स्वाभिमान मंच, सीपीआईएम सहित अन्य क्षेत्रीय दल भी अलग अलग सीटों से चुनावी मैदान में हैं। छत्तीसगढ़ की कुल 90 में से 31 सीटें अनुसूचित जनजाति, 10 अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं।
तेलंगाना की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस गठबंधन के तहत 119 विधान सभा सीटों में से 95 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस ने बाकी की 24 सीट तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) और महागठबंधन के अन्य घटक दलों के लिए छोड़ी है। तेलंगाना की 119 सदस्यीय विधानसभा के लिए 7 दिसंबर को चुनाव होने हैं। सीट बंटवारे के समझौते के तहत, कांग्रेस ने टीडीपी को 14 सीट और बाकी दस सीट तेलंगाना जन समिति (टीजीएस) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) को देने का फैसला किया है। इसी बीच टीडीपी सुप्रीमो और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चन्द्रबाबू नायडू ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से दिल्ली स्थित उनके आवास पर मुलाकात की है। मुलाकात में ही दोनों नेताओं ने आगामी लोकसभा और विधान सभा के चुनाव साथ लड़ने का फैसला किया। इस मुलाकात के बाद ही दोनों पार्टियों के बीच तेलंगाना में सात दिसंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए गठबंधन और सीट बंटवारे का ऐलान किया गया था। यहां बीजेपी का कोई भी विधायक नहीं है। सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) ने वर्ष 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में 63 सीटें जीती थीं। कांग्रेस 26, जबकि भाजपा ने पांच सीटें जीती थीं। यहां के सीएम राव ने समय पूर्व विधान सभा भंग कर दी थी। इसका कारण था, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की तरफ से कराया गया एक सर्वेक्षण, जिसके मुताबिक विधान सभा का निर्धारित समय पूर्ण होने के बाद के वर्ष 2019 में राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव अभी करा लिये जाएं तो टीआरएस की सत्ता में वापसी हो जायेगी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को एक भी सीट नहीं मिलेगी, वहीं कांग्रेस को मात्र दो सीटें मिलेंगी। इसी के बाद राव ने विधान सभा भंग करके जल्द चुनाव करा लिए।
मिजोरम में क्षेत्रीय पार्टियां विधानसभा चुनाव से पूर्व एकजुट होकर सत्ता का युद्ध लड़ने जा रही है। पूर्वोत्तर के 40 सीटों वाले इस छोटे से राज्य में क्षेत्रीय पार्टियों के मैदान में आने से मुकाबले के दिलचस्प होने के आसार बढ़ गए हैं। पीपुल्स रिप्रजेंटेशन ऑर आइडेंडिटी एंड स्टेट और मिजोरम, सेव मुजोरम फ्रंट एंड ऑपरेशन मिजोरम ने चुनाव से पहले गठबंधन किया है। इसके साथ ही जोराम राष्ट्रवादी पार्टी और जोराम एक्सोदस मूवमेंट ने राज्य के सत्ता के समीकरणों को बदलने के लिए एकसाथ आए हैं जब से मिजोरम की स्थापना हुई है।
यहां पर तीन दल कांग्रेस, मिजो नेशनल फ्रंट और मिजोरम पीपुल्स कांफ्रेंस ही मुख्य रूप से एक−दूसरे से जोर अजमाइश करते हैं। फिलहाल राज्य में ललथनहवला के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार है। कांग्रेस 2008 से यहां की सत्ता पर काबिज है। यहां पर एमएनएफ भी दो बार सरकार बना चुकी है। उसने 1998 और 2003 में सत्ता हासिल की थी। एमएनएफ सुप्रीमो जोरामथांगा ने बीजेपी के साथ गठबंधन से इंकार किया है। हालांकि एमएनएफ बीजेपी के नेतृत्व में गठित पूर्वोत्तर गठबंधन का हिस्सा है। अभी राज्य में चुनाव के पहले और बाद के गठबंधन की सूरत पर कुछ भी कहना मुश्किल होगा।
जैसे−जैसे पांचो राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की तारीखें नजदीक आ रही हैं वैसे−वैसे सटोरिए भी ऐक्टिव होते जा रहे हैं। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में किसकी बनेगी सरकार इसपर बाजार में सट्टा लगना शुरू हो चुका है। सटोरियों का मानना है कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी फिर से जीत सकती है वहीं, राजस्थान में कांग्रेस की वापसी हो सकती है। सट्टेबाजों के अनुसार, अगर कोई शख्स बीजेपी पर 10 हजार रुपये लगाता है और अगर पार्टी फिर से सत्ता में आती है तो उसे 11 हजार रुपये मिलेंगे। वहीं, अगर कांग्रेस पर कोई 4,400 रुपये लगाता है और अगर कांग्रेस की सत्ता में लौटती है तो उसे 10 हजार रुपये मिलेंगे। बता दें कि हर चुनाव में करोड़ों रुपये का सट्टा लगता है। फोन, वेबसाइट और अॉनलाइन मोबाइल अप्लीकेशन के जरिए सट्टा लगते हैं। इसके कारण पुलिस के लिए इस रैकिट को पकड़ पाना मुश्किल हो जाता है।
- अजय कुमार